जैसा कहा…वैसा लिखा…हां, अयोध्या में संपन्न स्वास्थ्य संसद-24 में शिक्षाविद, उद्यमी और विधायक पवन सिंह चौहान ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।
अच्छी बात सुनने और उसे समझने के लिए स्रोता होने चाहिए ताकि लोगों तक बात पहुंच सके। मैं 60 साल का हूं। मुझे पता नहीं मेडिसीन और एलोपैथी क्या है? हमारा पूरा परिवार स्वस्थ है। हमारी पुरानी परंपरा आहार विहार और मानव शरीर में वात, पित्त और कफ पर काम करता है। वात वाले को कफ वाली दवा काम नहीं करती। एलोपैथी में भी अलग शरीर और प्रकृति के व्यक्ति को एक ही दवा जाती है। यही समस्या है। हमें अपने शरीर और उसकी प्रकृति को समझना चाहिए। अपना आहार विहार और नियम और आदत ठीक रखना चाहिए। लोक भारती का अध्यक्ष हूं। 7 साल से स्वास्थ्य, पर्यावरण और जमीन और जल की व्यवस्था पर काम कर रहा हूं। हमें अपने आसपास के वातावरण और समाज से सामंजस्य बिठाने की जरूरत है। हमें क्रोध जैसे क्लेश पर नियंत्रण रखने और लोगों को समझने की जरूरत है। हम क्या खाते हैं, क्या सुनते हैं, उसमें से कितना अपनाते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। दूसरे को सुन के उसकी बात पचाना काफी अहम है। जो सुन के पचा लेता है, उसका धैर्य अच्छा है इसलिए उसका स्वास्थ्य अच्छा ही होगा। हमारे शरीर में ज्यादा बीमारी मन के कारण आती है। हम अपने स्वभाव के विपरीत जब सुनते हैं और वैसे माहौल में जाते हैं तब हमारा मन खिन्न होता है। हम उन बातों को पचा नहीं पाते, उसमें समता नहीं बिठा पाते इसलिए आजकल लोगों को माइग्रैन जैसी बीमारी होती है। आहार में असंतुलन के कारण माइग्रैन होता है। मेरा मानना है कि हर बीमारी हमारे मनोभाव से जुड़ी है। अगर हम अच्छे लोगों का साथ रखें, अच्छा सुनें और अच्छा पढें और खाएं और अच्छे स्थान पर विहार करें तो कोई बीमारी हमें छू भी नहीं सकती।