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Swasthya sansad-24 : सारे रोगों की जननी आपका मन-पवन सिन्हा

जैसा कहा, वैसा लिखा….जी हां, अयोध्या में संपन्न स्वास्थ्य संसद-24 में आध्यात्मिक गुरु पवन सिन्हा ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।

मन को साधने में हमारा व्यवहार, भोजन और दिनचर्चा का काफी योगदान होता है। इस स्वास्थ्य संसद 2024 में बुजुर्ग के स्वास्थ्य के संदर्भ में बात की जा रही है। बचपन से हमारी यह सोच निर्धारित कर दी जाती है कि बच्चा वो जो समस्या से लड़े यानि फाइट बैक करता है और बुजुर्ग वो जिसमें इसकी कमी या अनिच्छा होती है। अगर किसी समस्या से फाइट बैक करने की इच्छा किसी में मरने लगे तो इसका मतलब है कि हार्माेनल डिसॉर्डर की समस्या शुरू हो गई है। ऐसे में आप कुछ भी खाएं और आपकी दिनचर्या कैसी भी हो, आपके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर नहीं होगा, यह मेरा अनुभव कहता है। यह जो जीवन के लिए लड़ने वाली मनोस्थिति है, इसके द्वारा आप न केवल अपने जीवन के लक्ष्य को पाते हैं बल्कि आप कई बीमारियों से जूझ कर ठीक भी होते हैं।
ऋषि पतंजलि ने योग दर्शन में वर्णन किया है कि योग से, तन-मन-वायु के नियंत्रण से जीवन में संतुलन आता है। अब वो अर्थ बदल गया है। आज केवल हम व्यायाम करते हैं। यह योग नहीं है। योग में व्यायाम के नाम पर आसन किया और कराया जा रहा है। प्राणायाम स्वांस पर नियंत्रण के लिए किया जाता है। इसके बाद धारण, ध्यान, समाधि की ओर बढ़ते हैं। यहाँ मैं योग की चर्चा नहीं कर रहा लेकिन मुझे यह कहना है कि हमारा मन सब रोगों की जननी है। मन ही वो केंद्र है जिससे हम बहुत सारे रोगों से जूझ पाते हैं।

आज के युग में तनाव हर जगह है। यह तनाव लेने के लिए किसी को कोई कहता नहीं है लेकिन हम स्वयं इसे लेते हैं। यह हर व्यक्ति स्वयं से ग्रहण करता है। जब तक आप तनावग्रस्त हैं तब तक न आप शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, न अपना कार्य कर सकते हैं, न ही घर का कोई कार्य पूर्ण क्षमता में निभा सकते हैं। हम सब स्वास्थ्य संसद के लिए यहाँ जुटे हैं। मुझे लगता है हमें शरीर के स्वस्थ से ज्यादा मन के स्वास्थ्य के विषय में चर्चा करने की जरूरत है। जब हमारा मन खराब होता है तब हम डिप्रेशन के शिकार होते हैं। जब हमारी चिंता बढ़ने लगती है जैसे पैसे का इंतजाम नहीं हुआ, घर नहीं बना और गाड़ी नहीं ली आदि, तब यह मन हम पर हावी होने लगता है।
विडंबना देखिए, हम सब ईश्वर को साक्षी मानते हैं और स्वयं को कर्ता समझते हैं। यह भी बहुत बड़ा कारण है डिप्रेशन और चिंता का। इसमें व्यक्ति फाइट और प्राइड जैसी मनोस्थिति से जूझता है। मन पर इसका विपरीत प्रभाव होता है। मन पर कार्य करने के साथ विशुद्ध विचार पर कार्य करने की जरूरत है। इस अहम पहल से हम दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में हमारा स्वस्थ होना संभव नहीं है, हम कितनी भी दवा खा लें। यदि एक बार हमने बीमारी से या किसी समस्या से हारना शुरू कर दिया या हार को स्वीकार कर लिया तब जीतना और मुश्किल हो जाता है। यही वो परिस्थिति है जब हमारे शरीर में मेजर हार्माेन्स बिगड़ने लगते हैं। इसके बाद शरीर पर कोई भी दवा काम नहीं करती। ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।‘ ऐसे में हम जीवन का आनंद नहीं लेते, खुलकर नाच नहीं पाते, गाना गाते नहीं, कुछ अच्छा पढ़ते नहीं, सत्संग नहीं करते, अच्छी बात नहीं सुनते। जीवन से दूर होकर नकारात्मकता का शिकार होते जाते हैं। इस बीमारी से कोई भी आपको नहीं बचा सकता।
आयुर्वेद दिमाग को जगाने पर जोर देता है। इसकी औषधि आपके दिमाग को जगाती है, आपको हर समया से लड़ने के लिए सक्षम बनाती है। यहाँ जागरूकता ही जागृति है। अगर यह दोनों हमारे भीतर नहीं है तो बुढ़ापे में बीमारी से रिकवरी संभव नहीं। अनेक लोग मुझसे मिलते हैं तब अपने जोड़ों में दर्द की दवा मांगते हैं। मैं कहता हूँ कि डॉक्टर के पास जाओ लेकिन मुझे पता है उसका कोई फायदा नहीं क्योंकि इस दर्द की शुरुआत आज से 25 साल पहले तब हुई थी जब शरीर में वात बिगड़ रहा था। वो वात बनती रही। वो आपके जोड़ों में प्रवेश कर गई इसलिए इस रोग को संधिवात कहते हैं। अब जोड़ खराब हो गए हैं। इस पर दवा काम नहीं करेगी क्योंकि कोई दवा तभी काम करती है जब आप मन में ऐसा आत्मसात करें कि इसको खाकर आपके जोड़ नए होंगे और मजबूत होंगे। आपको ठीक होना है, ऐसा विचार अगर आप मन में पैदा करते हैं तो यह मन की स्थिति को बदल सकता है। अगर मरीज का मन अभी भी जुझारू है तो वो ठीक हो सकता है। बाहरी दवा तभी काम करती है जब मन उसे स्वीकार करता है।
यह भी सत्य है कि एलोपैथ की दवा से आप ठीक नहीं होंगे। बस यह बीमारी के लक्षण को थोड़े समय के लिए दबा देती है। इसलिए हम सब को शरीर के त्रिदोष पर ध्यान देने की जरूरत है। जब हम बीमार होते हैं तब डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन हम बीमार न हांे, इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है। यदि वात बन रही है तो शरीर का दर्द कभी खत्म नहीं होगा। इसी तरह से पित्त बढ़ता है जो पहले आपके मूड को खराब करता है। फिर यह आपका व्यवहार खराब करता है। आपको छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आएगा। अपच की समस्या शुरू होगी। खाने की इच्छा नहीं रहेगी। इसका परिणाम आगे आने वाले 15 साल बाद बढ़कर भयानक रूप में सामने आएगा। हृदय की धड़कन बढ़ने की समस्या एक दिन में नहीं होती। धीरे-धीरे हमारा मन खराब होता है। हमारे मन की इच्छा-आकांक्षा इतनी प्रबल हो जाती है कि हम रोज की दिया बत्ती पूजा आदि सब करते हैं लेकिन उस कार्य को आदत के कारण करते हैं। उसमें हमें शांति और मन पर संयम नहीं कर पाते।
आजकल युवा को भी मेमोरी लॉस की समस्या हो रही है। पहले यह वृद्ध को होती थी। अब साइलेंट तरीके से यह बीमारी हमें अपनी चपेट में लेती है। धीरे-धीरे शरीर के अंगों से संतुलन जाता है फिर नसों में फैट जमने लगता है। हर तंत्र धीमा पड़ने लगता है। ऐसे करके एक उम्र आएगी जब 50-55 में बातें याद रखना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए विटामिन सी का सेवन करना बहुत जरूरी है। ऐसे छोटे उपाय से आप बुजुर्गों की सेहत और उनकी दिमाग में याद का संरक्षण कर सकते हैं। देखिए, दवा का अपना स्थान है और भोजन का अपना महत्व है। विचार और मन का इसमें सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।
अब घरों में धर्म और साहित्य की चर्चा बहुत कम होती है। इसके होने का कारण ही यही था कि बुजुर्ग बच्चों को कहानी या साहित्य के माध्यम से अपने ज्ञान को साझा करते थे। उनका ब्रेन अच्छा काम करता था। यादाश्त की समस्या कम होती थी। लेकिन एकल परिवार और दादा-दादी की बच्चों से दूरी ने दोनों पक्षों के दिमाग को छोटा कर दिया है। इसलिए यह समस्या बढ़ रही है। आगे और बढ़ेगी। जब हम जवान होते हैं तो कर लो सारी दुनिया मुट्ठी में जैसा भाव से जीते हैं। तब ऊर्जा और मन उत्साह से भरा होता है पर जीवन के ढलान पर हमें सत्संग की जरूरत होती है ताकि हम अपने विचार शक्ति को सशक्त बना सकें।
जीवन में चिंता से बचने के लिए जो हरि इच्छा वही मेरी इच्छा, ऐसे विचार से चलना जरूरी है। हर किसी को दिन में कुछ समय बिना किसी बाह्य पदार्थ यानि नशा के आनंद में रहने का प्रयास करना चाहिए। कर्म की कुशलता का भाव होना चाहिए। अगर यह भाव है तो हम बहुत से रोग से ठीक हो सकते हैं।
एक सर्वे में कहा गया कि भारत में 68 प्रतिशत दूध नकली है। फिर घी या मक्खन कैसे असली हो सकता है। जो उपलब्ध है, उसे ऊपर से प्रयोग करें। इसकी सब्जी न बनाएं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, सभी को रात का भोजन कम करना चाहिए और सप्ताह में एक दिन का उपवास भी होना चाहिए। इससे शरीर और मन दोनों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। महीने में दो दिन चुनें जब आप ध्यान, साधन, प्रार्थना करें। प्रभु को याद करें। इसका भी स्वस्थ पर अच्छा असर होता है। दवा पर आधारित जीवन बहुत विचित्र है। यहाँ आप स्वस्थ नहीं होते। बस दवा का डोज बढ़ता जाता है। डॉक्टर भी मजबूर है। क्या करे! मरीज के दर्द के इलाज के लिए वो दवा देते हैं या सर्जरी करते हैं।
मूल बात बस यह है कि हमें मन पर काम करना है। इसके लिए सबको ध्यान साधन करना होगा। जैसे आप अपने मोबाइल को एक माह में खाली करते हो ताकि वो सही ढंग से काम करे वैसे ही दिमाग के विचार को भी हटाओ। ईश्वर का सहारा लो। कुछ तुम्हारे अनुसार न हो तो पिछले जन्म का कोई कर्म होगा, ऐसा भरोसा करके पुनः कर्म करो। इस कर्मशीलता और ईश्वर में विश्वास के भाव का बड़ा फायदा होता है। अध्यात्म को कोई प्रमाणित नहीं कर सकता लेकिन इसे अनुभव किया जा सकता है। सांस सब लेते हैं पर वो चलती दिखती नहीं लेकिन सांस चलती है, तभी हम में जीवन है। यह प्रमाणित हो गया। हमें अपनी मन और बुद्धि पर कार्य करना होगा इससे ही स्वस्थ को लाभ मिलेगा। एक बार शरीर में हेल्थ का रिद्म बिगड़ जाए तो जीवन का लय बिगड़ने में समय नहीं लगता। कृपया सभी लोग अपनी सांस और मन पर ध्यान दें। उसे साधें और उसके लिए काम करें। स्वास्थ्य का मार्ग मिल जाएगा।

संपादन : अजय वर्मा

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