अजय वर्मा
पटना। अगर आप आस्थावान हैं तो मान सकते हैं कि बिहार में हेल्थ सिस्टम भगवान भरोसे ही है। यहां एनडीए सरकार रहने पर भाजपा और महागठबंधन सरकार के वक्त राजद कोटे में स्वास्थ्य मंत्रालय रहा लेकिन हालत बदतर होती गई। हालत यह है कि हेल्थ बजट का 21743 करोड़ खर्च करने में सरकार विफल रही जिससे सूरत बदल सकती थी। कहीं ऑपरेशन थियेटर नहीं है तो कहीं वेंटिलेटर नहीं।
इसका खुलासा CAG की रिपोर्ट में हाल ही हुआ है जो अब पब्लिक डोमेन में आ चुका है। इसे विधानसभा सत्र में रखा गया था। इसमें 2016 से 2022 तक का लेखाजोखा है। रिपोर्ट बताती है कि यहां 1 लाख 24 हजार 19 एलोपैथिक डॉक्टरों की जरूरत है लेकिन अभी केवल 58 हजार 144 ही उपलब्ध थे। समझिए कि डॉक्टरों के 55 फीसद पद खाली ही हैं। इसी तरह पटना में 18 तो पूर्णिया में 72 फीसद कमी है। पैरामेडिक्स की कमी 45 प्रतिशत (जमुई में) तो 90 प्रतिशत (पूर्वी चंपारण में) तक रही।
आयुष क्षेत्र का भी यही हाल है। आयुष स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में कर्मचारियों के सभी संवर्गों में 35 प्रतिशत से 81 प्रतिशत तक की कमी निकली। HSC स्तर से लेकर रेफरल अस्पताल/ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHS) स्तर तक स्वास्थ्य सुविधाओं की काफी कमी थी। 47 अनुमंडलों में अनुमंडलीय अस्पताल (SDH) उपलब्ध नहीं थे। स्वास्थ्य विभाग ने 533 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में से 399 को CHC में बदलने की मंजूरी दी थी लेकिन बिहार राज्य भवन निर्माण निगम ने मार्च 2022 तक केवल 191 PHC में भवनों का निर्माण कार्य पूरा किया था।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 1,932 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों/ अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (APHC) में से 846 (44 प्रतिशत) काम नहीं कर रहे थे। केवल 566 (29 प्रतिशत) में प्रसव कक्ष था। 276 (14 प्रतिशत) में ऑपरेशन थिएटर था और केवल 533 (28 प्रतिशत) में छह बिस्तरों के बदले चार बिस्तर थे।
सूबे की बात तो छोडिए, राजधानी पटना के PMCH और NMCH तक की हालत संतोषजनक नहीं है। कहीं जांच के लिए एक्सरे मशीन बंद रहती है तो कहीं सरकारी डिस्पेंसरी में मुफ्त वाली दवा नहीं मिलती।