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Swasthya sansad-24 : आहार बदलोगे तो जीवन बदलेगा : खादर वली

जैसा कहा, वैसा लिखा….जी हां, अयोध्या में संपन्न हुए स्वास्थ्य संसद-24 में मिलेट्स मैन पद्मश्री खादर वली ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।

हमने स्वस्थ भारत नहीं, बल्कि स्वस्थ संसार की परिकल्पना की है। अभी देश में 30 प्रतिशत लोग थायरयड, 30 प्रतिशत मधुमेह, 30 प्रतिशत बीपी, 30 प्रतिशत मोटापा, 30 प्रतिशत CKD आदि बीमारी से ग्रस्त हैं। कहने का मतलब है आज एक आदमी को कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि 2 से 3 बीमारी है। इसका कारण क्या है? इतने साल से हम सब स्वस्थ पर काम कर रहे हैं लेकिन बीमारी बढ़ रही, साथ ही मल्टी स्पेशल अस्पताल भी बढ़ रहा है। इसका मतलब सारा सिस्टम आम लोग के स्वास्थ्य के लिए नहीं बल्कि अस्पताल और दवा के लिए काम कर रहा है। पूरे विश्व में 200 से ज्यादा अनाज का पैदावार था लेकिन हम कई वर्षों से केवल दो अनाज खा रहे। इससे बुरा क्या हो सकता है? ऐसा क्यों हुआ? आप जानते हैं चावल और गेहूं का दाना हमारे खून में संतुलन को बिगाड़ता है। हमारे खाने के 30 मिनट में यह खून को मोटा करने लगता है जबकि मिलेट्स इसके विपरीत खून को पतला करता है। इसके दो प्रकार हैं-कंगनी, कुटकी, सामा, कोदो, खरसा जिसे छोटा अनाज कहते हैं और यह अनाज रेशा का भरमार है। कंगनी में 8 प्रतिशत रेशा है, हरा सामा में 12-5 प्रतिशत, सामा में 9-8 प्रतिशत, झिंगेरी में 10 प्रतिशत, कोदो चावल में 9 प्रतिशत रेशा है। ये सब अनाज इतना अद्भुत है कि इनके सेवन से 3 महीने में गाढ़ा खून पतला हो जाता है। इससे क्या होगा? खून के संतुलन से हमारे शरीर की सब बीमारी बीपी, मधुमेह, किडनी समस्या, सब 3 से 6 माह में ठीक हो जाएगी।

लेकिन अभी क्या है? इन दो अनाज के अधिकतम प्रयोग से हमारी भावी पीढ़ी के बच्चे टाइप वन मधुमेह से ग्रस्त हैं जिसका इलाज संभव नहीं है। अभी भारत में 7 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे टाइप वन मधुमेह से ग्रस्त हैं। 7 प्रतिशत मेंटल बीमारी से ग्रस्त हैं। 7 प्रतिशत को ADHD है। कुल मिलकर 30 प्रतिशत से ज्यादा शिशु disfunctional पैदा हो रहे। आप देखो, हमारा गाढ़ा खून आने वाली पीढ़ी को भी स्वास्थ्य से दूर कर रहा है। जब हम बीमारी का मूल कारण समझेंगे, तभी हम स्वास्थ्य को सुधार पाएंगे।
हमारे देश में हजार नहीं, लाखों साल से मानव समुदाय मोटा और छोटा अनाज खा रहे थे लेकिन एग्रीकल्चर विशेषज्ञ ने आकर भारत में संस्थान बनाकर, रिसर्च करके हमारे भोजन के व्यवहार को बदल दिया। आज हम इसका उपयोग 30 साल से कर रहे। आप मोटे अनाज को अपनाओ। इनको उगाने के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। आप देखो पूरे देश में पानी की समस्या हो गई है। अभी पंजाब में 12 वर्ष का पानी बचा है। हमने उनको कहा-हमें दे दो। इससे हम 6 सौ वर्ष का अनाज उगाएंगे। इसका माने समझो। इस अनाज को पानी कम चाहिए। यह सी फोर ग्रास है। 3 सौ लीटर प्रति किलो छोटे अनाज और 8 सौ लीटर प्रति किलो मोटा अनाज को चाहिए। इसके विपरीत सफेद चावल और गेंहू 8 से 10 हजार लीटर पानी लेता है। अधिक पानी वाला यह अनाज हमारी उपजाऊ मिट्टी की सेहत को खराब करता है। खेत में पानी भर के खेती का यह चलन हमारी धरती को नुकसान पहुंचाता है। आज 8 मिलियन टन और 7 मिलियन टन अनाज धरती पर हर साल उगाया जा रहा और हम दूसरी ओर धरती और मिट्टी के संरक्षण की बात करते हैं। दोनों विरोधाभासी बात है। यह कैसे संभव है? पानी को बचाने के लिए डैम बनाते हैं और पहाड़ों को तोड़ देते हैं। साथ ही पर्यावरण के संरक्षण की बात भी करते हैं। यह भी विरोधाभासी व्यवहार है। आज खेती और किसानी पर विकास के नाम पर एग्रीकल्चर इंडस्ट्री खड़ा कर दिया गया है। इस इंडस्ट्री से 10 बिलियन कार्बन डाई आक्साईड फुट प्रिन्ट तैयार होता है।
आप समझो ग्लोबल वार्मिंग का कारण भी यही खेती और कृषि व्यवस्था बन गया है। आज के मानव के हर समस्या का चाहे स्वास्थ्य, पर्यावरण, नदी, मिट्टी का संरक्षण हो, यह तब होगा जब सब लोग मिलेट्स को अपने घर में अपनाएंगे। हम लोग अपना स्वास्थ्य रसोई में खो बैठे हैं और उसे अस्पताल में खोज रहे। आपको कैसे मिलेगा स्वास्थ्य अस्पताल में। वहाँ दवा, एक्सरे, एमआरआई, स्कैन मिलेगा।
आपको पता है स्टीव जॉब्स पेनक्रियाज कैसर से ग्रस्त होकर 7 माह में चल बसे। हमने भारत में 100 से ज्यादा पेनक्रियाज कैसर मरीजों को मिलेट्स खिलाकर ठीक किया। यह अनाज मृत अंगों को पुनः जीवन देता है। सामा का रेशा जनानांग को ठीक करता है। कोदो चावल का रेशा खून और मूल मज्जा को स्वस्थ करता है। कुटकी नस, नाड़ी और सांस की कोशिका को स्वास्थ्य देता है। हरा सामा मुंह से लेकर गुदा तक के हेल्थ का बड़ा पैकेज है। मानव शरीर के हर अंग को, जीवन तंत्र को जीवन देने वाला रेशा इस पांच अनाज में भगवान ने भर के दिया है।

आपको पता है दूध में कैल्सियम नहीं होता बल्कि रागी और मड़वा में कैल्सियम भरपूर होता है। भारत में एग्रीकल्चर इंडस्ट्री ने सृजनात्मक तरीके से यह मिथ तैयार किया और जनता तक इसे पहंचाया। आप देखो, इन्होंने इतना बड़ा भ्रम जाल फैलाया है कि आज हम गांव में जाकर लोगों को छोटे अनाज और मोटे अनाज का उपयोग करने को बोलते हैं। उनको दूध की जगह रागी के दूध से कैल्सियम मिलेगा, यह बताते हैं, वो नहीं मानते। केवल वही नहीं, पूरे भारत की तीन पीढ़ी को इस इंडस्ट्री ने समझा दिया कि कैल्सियम का मतलब है दूध। लेकिन दूध कैल्सियम नहीं क्योंकि एनिमल प्रोटीन से कैल्सियम को खींचने की ताकत हमारे शरीर के एंजाईं में नहीं है। पूर्ण स्वास्थ्य सबको सुलभ कराने के लिए हमने सोच विचार करके रास्ता निकाला जिसमें 30 साल लग गया।
आज तक हमारे देश में बीमारी के उपसमन की बात कही जाती रही लेकिन अब से आप मोटे और छोटे अनाज और उपयोगी काढ़ा पीकर बीमारी को ठीक कर सकते हैं। अपने अनुभव के 30 साल को मैंने इस किताब में लिखा है जिसमें हमने हर समस्या का समाधान, खान पान से ठीक करने के बारे मैं बताया है। उसको पढ़ो और जीवन में उतारो। स्वास्थ्य का रास्ता हमारे किचेन में है। बस उसे व्यवस्थित करो। धीरे-धीरे खानपान सुधार कर मोटे अनाज अपना कर आप एक साल या दो साल में पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं।
दक्षिण भारत में खमीर वाला चावल सुबह पीने से अधिकतर बीमारी ठीक होती है क्योंकि गट में माइक्रो नूट्रिएन्ट तैयार होता है। इसको यहां शहरों में नहीं उपयोग करते। जबकि यह पेट के लिए बहुत अच्छा है। माइक्रोस से बी 12 बनता है। आज ज्यादातर को बी 12 की कमी है क्योंकि हम माइक्रोब्स को अपने गट में ना जाने कब का नष्ट कर चुके हैं। वही बाजरा मातृशक्ति के लिए वरदान है। चना अगर हफ्ते में दो दिन खाओ तो शरीर में प्रोटीन की कमी पूरी हो जाएगी। हम बीमार हुए क्योंकि हम कोल्हू के बैल द्वारा पीसा हुआ तेल छोड़ कर रिफाईंड ऑयल का प्रयोग करने लगे। हमने साउथ में हजारों जगह पर पुनः बैल से खींचने वाली इस तकनीक का उपयोग किया। लोगों को रिफाईन ऑयल से दूर रहने के लिए सिखाया। यह समय अपने आहार परंपरा की ओर लौटने का है। तभी आप अपने स्वास्थ्य को उत्तम बना पाओगे। बीमारी हीन जीवन का आनंद अपने परिवेश और रसोई में छुपा है। उसे सुधार लो और जीवन का आनंद लो।

प्रस्तुति : महिमा सिंह
संपादन : अजय वर्मा

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