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समाचार / News स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ / Talking about health with Gandhi

प्राकृतिक चिकित्सक के रूप में गांधी

Gandhi supported kerala when flood came there

डॉ. दिनेश शर्मा वरिष्ठ चिकित्सक हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में इनका अपना एक विशेष अनुभव है। आमलोगों को सेहत के प्रति जागरुक करने का काम डॉ. शर्मा आज भी कर रहे हैं। स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ वेब सीरीज की पांचवी कहानी के रुप में आज डॉ. दिनेश शर्मा जी  की टिप्पणी प्रकाशित कर रहे हैं।-संपादक


 
 
 
डॉ. दिनेश शर्मा, वरिष्ठ चिकित्सक
गांधी जी जीवन के हर पहलू को छूकर चलते हैं, एक जननायक सिर्फ दिमाग से नहीं शरीर से भी पुष्ट होता हैं। उनकी जीवन शैली ही अनुयायियों के लिए अनुप्रेरणा का काम करती हैं। गांधी जी का एक चिकित्सकीय रूप भी हैं। वर्धा आश्रम में उनके प्राकृतिक चिकित्सा अनुप्रयोगों की निशानियां अभी भी मौजूद हैं, गीता का अध्ययन शायद उनको युक्त आहार विहारस्य… की प्रेरणा देता हैं। गांधी प्राकृतिक चिकित्सक हैं। आश्चर्य  की बात यह है कि उनकी बातों में ध्यान, योग,  प्राणायाम, व्यायाम का जिक्र नहीं के बराबर हैं (शायद योग उस समय वर्तमान जितना लोकप्रिय न रहा हो इस कारण गांधी जी अपनी बातों में इसका जिक्र न कर पाए।
ब्रह्मचर्य की पालना को गांधी जी बहुत ज्यादा महत्व देते हैं, वीर्य संग्रह? आधुनिक विज्ञान की नजर से कोई विषय नहीं हैं, ये देशज जन श्रुतियों पर आधारित विचार ज्यादा प्रतीत होता हैं। हालांकि जिस वीर्य की बात वे कर रहे हैं वो अंग्रेजी शब्द सीमन से शायद भिन्न कोई आध्यात्मिक शब्द हो कहा नहीं जा सकता। गांधी अपनी उपलब्धि हेतु खुद के ब्रह्मचर्य पालना को श्रेय देते हैं। ऐसे में हमारे लिए इसे स्वीकारने के अलावा कोई चारा नहीं हैं। इस बात को उनके स्तर का व्यक्ति ही पुष्ट कर सकता हैं। नमक के प्रयोग में गांधी जी तात्कालीन उपलब्ध विचार को ही रख रहे हैं जो आधुनिक समय के साथ बहुत विस्तृत और पेचीदा विषय बन गया हैं। बुखार और उसका जल से इलाज, घर्षण स्नान ये विषय उस समय की सोच में अव्वल तरीके रहे होंगे इतना जटिल काम अब आवश्यक नहीं है, बर्फ का उपयोग बुखार के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उस जगह सामान्य पानी की पट्टी सही रहेगी।
गांधी भोजन के अवयवों का सविस्तार वर्णन करते हैं। सात्विक शाकाहार जिसमे विशुद्ध वेगन/vegan  शाकाहार की वे  बात करते हैं जिसमें दूध का प्रयोग भी न हो के हिमायती रहे हैं। वे अंततः बकरी के दूध के उपयोग को अपनी मजबूरी में स्वीकारते हैं, प्रकृति के सामंजस्य में पंचभूतों के साथ  जीवन यापन को निरोग और अर्थपूर्ण जीवन की गांधी की कल्पना आधुनिक युग मे अकल्पनीय लगती हैं किंतु इस सत्य को हम झुठला नहीं सकते कि स्वस्थ जीवन मां प्रकृति के सानिध्य में ही सम्भव हैं।
कुल मिला के “आरोग्य की कुंजी” उस समय उपलब्ध स्वास्थ्य ज्ञान की सहज और स्वस्थ जीवन जीने की एक प्रयोगधर्मी धरती पुत्र के अपने निजी अनुभवों का सार हैं। हमारे लिए ये एक धरोहर पुस्तक हैं जिसे वर्तमान के विकास के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बावजूद पूरा का पूरा नकारा नहीं जा सकता, गांधी आधुनिक भारत में आम जन के लिए सरल सादी और सस्ती चिकित्सा के पैरोकार हैं। उन्होंने स्वतंत्र भारत एवं स्वस्थ भारत की न केवल कल्पना की थी बल्कि आज भी वे स्वयं उदाहरण के साथ लाठी लिए हर चौराहे पर खड़े हो, प्रेरणा दे रहे हैं।
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नोटः महात्मा गांधी ने जितने भी प्रयोग किए उसका मकसद ही यह था कि एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके। गांधी का हर विचार, हर प्रयोग कहीं न कहीं स्वास्थ्य से आकर जुड़ता ही है। यहीं कारण है कि स्वस्थ भारत डॉट इन 15 अगस्त,2018 से उनके स्वास्थ्य चिंतन पर चिंतन करना शुरू किया है। 15 अगस्त 2018 से 2 अक्टूबर 2018 के बीच में हम 51 स्टोरी अपने पाठकों के लिए लेकर आ रहे हैं। #51Stories51Days हैश टैग के साथ हम गांधी के स्वास्थ्य चिंतन को समझने का प्रयास करने जा रहे हैं। इस प्रयास में आप पाठकों का साथ बहुत जरूरी है। अगर आपके पास महात्मा गांधी के स्वास्थ्य चिंतन से जुड़ी कोई जानकारी है तो हमसे जरूर साझा करें। यदि आप कम कम 300 शब्दों में अपनी बात भेज सकें तो और अच्छी बात होगी। अपनी बात आप हमें forhealthyindia@gmail.com  पर प्रेषित कर सकते हैं।
 
 

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