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समाचार / News स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ / Talking about health with Gandhi

स्वास्थ्य की कुंजी गांधी के राम

Gandhi supported kerala when flood came there

स्वास्थ्य की बात गांधी के साथ वेब सीरीज के छठे भाग में हम गांधी के राम की चर्चा शुरू कर रहे हैं। गांधी के राम न सिर्फ गांधी के लिए बल्कि वर्तमान समय में भी हम सबके लिए में स्वास्थ्य की कुंजी  भी हैं और पुंजी भी। इस बात को रेखांकित करते हुए अमित त्यागी ने गांधी के राम एवं रामधुन का स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझने का प्रयास किया है। इस विषय को हम अगले चार खंडों में समझने का प्रयास करेंगे-संपादक


 
 
 
अमित त्यागी
गांधी जी का कुदरती इलाज़ राम धुन एवं राम नाम में छुपा हुआ है। कुदरती इलाज़ से तात्पर्य है ऐसे उपचार या इलाज़ से है जो मनुष्य के लिये योग्य हो। मनुष्य का तात्पर्य प्राणी मात्र से है। मनुष्य में सिर्फ मनुष्य का शरीर शामिल नहीं है बल्कि मन और आत्मा भी है, इसलिए सच्चा कुदरती इलाज़ तो राम नाम ही है और राम धुन उसका माध्यम। रघुपति राघव राजा राम एक चिकित्सा पद्धति है। रामबाण ऐसे ही निकला है। राम नाम ही इलाज़ का रामबाण है। कुदरत ने मनुष्य को योग्य माना है। शरीर में कोई भी व्याधि हो, अगर मनुष्य हृदय से राम नाम ले तो उसकी व्याधि नष्ट होनी चाहिए। रामनाम का अर्थ ईश्वर, खुदा या गॉड कुछ भी हो सकता है। हर धर्म मे ईश्वर के नाम अलग-अलग हैं, व्याधि की स्थिति में जो जिस नाम से चाहे राम को चुन लें। यहां ज्यादा महत्वपूर्ण है अपने राम के प्रति हार्दिक श्रद्धा का भाव होना एवं श्रद्धा के साथ प्रयत्न प्रचुरता के साथ शामिल हो।
कुदरती इलाज़ के इस सवाल का जवाब महात्मा गांधी के हरिजन सेवक मे 03 मार्च 1946 को प्रकाशित लेख के अध्ययन से मिलता है। इसके अनुसार गांधी जी कहते हैं कि, जिस चीज़ का मनुष्य पुतला बना है उसी से वह इलाज़ ढूंढ़ें। शरीर रूपी पुतला पृथ्वी, जल, आकाश, तेज़ एवं वायु से बना है। इन पांच तत्वों से जो मिल सके वह ले लें। इन सबके साथ राम नाम तो अनिवार्य रूप से चलता ही रहे। दुनिया मे ऐसा कोई इलाज़ नहीं है, जिससे शरीर अमर बन सके। अमर तो आत्मा ही है। उसे कोई मार नहीं सकता। आत्मा की शुद्धि के लिये रामधुन एक अनिवार्य मंत्र है। इसके साथ ही शुद्ध शरीर प्राप्त करने का प्रयास तो सब करते ही रहें। इसी प्रयत्न के दौरान कुदरती उपचार स्वत: मर्यादित हो जाता है और इससे आदमी बड़े बड़े अस्पतालों और योग्य चिकित्सकों वगैरह की व्यवस्था करने से बच जाता है। दुनिया के असंख्यक लोग दूसरा कुछ कर भी नहीं सकते और जिसे असंख्यक नहीं कर सकते, उसे थोड़े लोग क्यों करें ? समस्या यहाँ पर है।
इस बावत 12 जून के 1945 के एक प्रेस रिपोर्ट में महात्मा गांधी लिखते हैं, दूसरी सब चीजों की तरह मेरी कुदरती इलाज़ की कल्पना ने भी धीरे-धीरे विकास किया है। बरसों से मेरा यह विश्वास रहा है कि जो मनुष्य अपने में ईश्वर का अस्तित्व अनुभव करता है और इस तरह विकार रहित स्थिति प्राप्त करता है। वह लंबे समय जीवन के रास्ते में आने वाली सारी कठिनाइयों को जीत सकता है। मैंने जो देखा और धर्म शास्त्रों में पढ़ा है, उसके आधार पर इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि जब मनुष्य में उस अदृश्य शक्ति प्रति पूर्ण जीवित श्रद्धा पैदा हो जाती है तब उसके शरीर मे भीतरी परिवर्तन होता है। लेकिन वह सिर्फ इच्छा करने मात्र से नहीं हो जाता। इसके लिए हमेशा सावधान रहने और अभ्यास करने की जरूरत रहती है। दोनों के होते हुये भी ईश्वर कृपा न हो तो मानव प्रयत्न व्यर्थ जाता है ।


नोटः  महात्मा गांधी ने जितने भी प्रयोग किए उसका मकसद ही यह था कि एक स्वस्थ समाज की स्थापना हो सके। गांधी का हर विचार, हर प्रयोग कहीं न कहीं स्वास्थ्य से आकर जुड़ता ही है। यहीं कारण है कि स्वस्थ भारत डॉट इन 15 अगस्त,2018 से उनके स्वास्थ्य चिंतन पर चिंतन करना शुरू किया है। 15 अगस्त 2018 से 2 अक्टूबर 2018 के बीच में हम 51 स्टोरी अपने पाठकों के लिए लेकर आ रहे हैं। #51Stories51Days हैश टैग के साथ हम गांधी के स्वास्थ्य चिंतन को समझने का प्रयास करने जा रहे हैं। इस प्रयास में आप पाठकों का साथ बहुत जरूरी है। अगर आपके पास महात्मा गांधी के स्वास्थ्य चिंतन से जुड़ी कोई जानकारी है तो हमसे जरूर साझा करें। यदि आप कम कम 300 शब्दों में अपनी बात भेज सकें तो और अच्छी बात होगी। अपनी बात आप हमें forhealthyindia@gmail.com  पर प्रेषित कर सकते हैं।
 

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