नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। अब एक ही टेस्ट से महज चार घंटे में मलेरिया की चार प्रजातियों की पहचान हो सकेगी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने पीसीआर जांच के सहारे चारों प्रजातियों की पहचान करने का तरीका खोज लिया है। उसने इस तकनीक को निजी कंपनियों को सौंपने का फैसला लिया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा जांच किट को उपलब्ध कराया जा सके।
रिसर्च में लगा लंबा समय
आईसीएमआर-राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (NIMR) के शोधकर्ताओं ने लंबे प्रयास के बाद आरएफएलपी के आधार पर प्लाज्मोडियम प्रजाति पहचान करने की तकनीक को विकसित किया। यह तकनीक दो तरह से प्लाज्मोडियम प्रजातियों की पहचान करती है, जिसमें पीसीआर से माइटोकॉन्ड्रियल (MT) जीन का प्रवर्धन और उसके बाद प्रतिबंध एंजाइमों के साथ पाचन शामिल है।
36 सैंपल पर हुई स्टडी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने 36 नमूनों पर इसका अध्ययन किया। इसमें उन्होंने ने पाया कि पीसीआर-आरएफएलपी से जांच करने पर मलेरिया की चारों प्रजातियों की पहचान करने में यह 93.8 फीसद तक सक्षम है। इतना ही नहीं एक ही मरीज में मलेरिया के एक से अधिक मिश्रित प्रजाति के संक्रमण भी पता लगाने में यह तकनीक सक्षम है। यह सभी प्रजाति पी. फाल्सीपेरम (PF), पी. विवैक्स (PV), पी. मलेरिया (PM) और पी. ओवले (PO) नाम से चर्चित हैं।
नए म्यूटेशन का पता चला
यह तकनीक इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि हाल ही में भारत में पहली बार वैज्ञानिकों को मलेरिया संक्रमण के नए म्यूटेशन का पता चला, जिसकी उत्पत्ति के लिए मरीजों में दवा प्रतिरोध को जिम्मेदार माना जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में मलेरिया परजीवी की अपनी एक अनूठी आबादी है, जिनकी एक जांच से पहचान करना संभव नहीं है। इसके अलावा 2018 में पहली बार कोलकाता में मलेरिया के मरीजों में आर्टीमिसिनिन प्रतिरोधी परजीवियों का पता चला।