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सैन्य अस्पताल में मासूम का गैर-सर्जिकल ट्रांसकैथेटर ट्रांसप्लांट

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। दिल्ली में सेना के अस्पताल ने एक मासूम बच्ची का गैर-सर्जिकल ट्रांसकैथेटर ट्रांसप्लांट कर जान बचा ली। जानकारी के अनुसार आठ साल की वह बच्ची जन्मजात हृदय की समस्या से पीड़ित थी। सरकारी क्षेत्र में इस तरह के ट्रांसप्लांट से गुजरने वाली यह सबसे छोटी और कम उम्र की बच्ची है। रक्षा मंत्रालय के हवाले से यह जानकारी मीडिया में आयी है। रिपोर्ट के मुताबिक यह उपलब्धि बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी टीम, AFMS (सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा) ने हासिल की है। यह जटिल उन्नत प्रक्रिया लेफ्टिनेंट जनरल दलजीत सिंह, महानिदेशक, सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा (DG AFMS), लेफ्टिनेंट जनरल अरिंदम चटर्जी, DGMS (सेना) और लेफ्टिनेंट जनरल अजित नीलकांतन, कमांडेंट, सेना अस्पताल (रिसर्च एंड रेफेरल) के संरक्षण और सक्षम मार्गदर्शन में किया गया।

अब तक 13 पल्मोनरी वाल्व प्रत्यारोपण

जानकारी के अनुसार टीम ने पिछले एक वर्ष में अब तक पल्मोनरी वाल्व प्रत्यारोपण के 13 मामलों को सफलतापूर्वल संपन्न किया है, जो देश के दो सरकारी संस्थानों में सबसे ज्यादा है। 7 अक्टूबर 2022 को सेना अस्पताल की टीम द्वारा AFMS में इस प्रक्रिया को शुरू किए जाने तक कार्डियक वाल्व को ओपन हार्ट बायपास सर्जरी के माध्यम से बदला जाता था। यह न केवल दर्दनाक और बोझिल है बल्कि बीमारी तथा मृत्यु दर के साथ-साथ लंबे समय तक अस्पताल में रहने का भी गंभीर खतरा होता है।

गैर-सर्जिकल प्रक्रिया परिवर्तनकारी कदम

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस नवीन गैर-सर्जिकल प्रक्रिया के साथ, रोगी को शरीर पर किसी भी निशान के बिना हस्तक्षेप के बाद 2-3 दिनों के भीतर छुट्टी दे दी जाती है। देश के सशस्त्र बलों और सरकारी क्षेत्र में इस अग्रणी अत्यधिक विशिष्ट गैर-सर्जिकल प्रक्रिया की शुरुआत एक बड़ा परिवर्तनकारी है। इसने वाल्व प्रतिस्थापन की आवश्यकता वाले कई बच्चों के लिए जीवन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार के साथ नए रास्ते खोल दिए हैं। रक्षा मंत्रालय का मानना है कि यह बच्चों में उन्नत हृदय देखभाल प्रदान करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है और अस्पतालों के लिए एक नए युग की शुरुआत है।

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