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पोषण पखवाड़ा का 7वां संस्करण 8 से 23 अप्रैल तक

पोषण पखवाड़ा का 7वां संस्करण 8 से 23 अप्रैल तक

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। हर बच्चे को जीवन की स्वस्थ शुरुआत का हक है, हर माँ को उचित पोषण का अधिकार है और हर परिवार को भी पौष्टिक भोजन मिलना चाहिए। लेकिन फिर भी, भारत में लाखों लोगों के लिए कुपोषण, खामोशी के साथ लगातार संकट बना हुआ है जो देश के भविष्य को भी प्रभावित करता है। इसी को देखते हुए सरकार ने 8 मार्च 2018 को पोषण अभियान की शुरूआत की जिसका मकसद महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करना है। इसकी प्रमुख पहलों में से एक, पोषण पखवाड़ा, कुपोषण को दूर करने में जागरूकता बढ़ाने और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में उभरा है। यह महज़ एक अभियान नहीं बल्कि अहम मुद्दों पर कार्रवाई करने के लिए आह्वान है।

पोषण पखवाड़ा की गतिविधियाँ

पोषण पखवाड़ा 2025 महिलाओं और बच्चों पर मुख्य ध्यान केंद्रित करते हुए पौष्टिक भारत के निर्माण की दिशा में एक कदम है। भारत सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग, देश भर के आंगनवाड़ी केंद्रों के साथ मिलकर समुदाय को जागरूक करने के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर रहे हैं:

  • प्रसवपूर्व देखभाल, उचित पोषण और नियमित स्वास्थ्य जांच को प्राथमिकता दें।
  • स्वस्थ भविष्य के लिए प्रतिज्ञा लें-स्वस्थ भोजन करें, सक्रिय रहें और जागरूकता फैलाएँ।
  • संतुलित और स्वस्थ आहार लें।
  • प्रतिदिन 8 गिलास पानी पिएँ।
  • पोषण ट्रैकर ऐप पर रजिस्टर करें।

पोषण पखवाड़ा : पहले 1,000 दिन महत्वपूर्ण

कल्पना कीजिए कि एक माँ, जो गर्भवती है, अपने बच्चे को जीवन में सबसे अच्छी शुरुआत देने के लिए उत्सुक है। इस दौरान वह जो खाना खाती है, स्वास्थ्य से जुड़ी जो सेवाएं उसे मिलती है, और इन अहम शुरुआती महीनों में उसे जो सलाह मिलती है, वह न केवल उसके बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य को आकार देता है, बल्कि उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी आकार देता है। पहले 1,000 दिन-गर्भाधान से लेकर बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक – शारीरिक विकास और मस्तिष्क के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान, एक बच्चे का शरीर और दिमाग अविश्वसनीय गति से बढ़ता है, जो उसके भविष्य के सीखने, प्रतिरक्षा और समग्र स्वास्थ्य की नींव रखता है। इस पूरे वक्त में अच्छा पोषण, प्यार, देखभाल और शुरुआती सीखने के अनुभव, उन्हें एक स्वस्थ, स्मार्ट और खुशहाल व्यक्ति बनने में मदद कर सकते हैं। इसलिए, पोषण अभियान ने जीवन के पहले 1000 दिनों पर विशेष जोर दिया है, जो वास्तव में किसी भी बच्चे के लिए जादुई काल है। इस साल की थीम के ज़रिए, पोषण पखवाड़ा का मकसद परिवारों को मातृ पोषण, उचित स्तनपान के तराकों और बचपन में पूर्ण विकास और एनीमिया को रोकने में संतुलित आहार की भूमिका के बारे में शिक्षित करना है।

पोषण पखवाड़ा : तकनीक और परंपरा का मिश्रण

हर बच्चे के विकास, हर माँ के स्वास्थ्य और आंगनवाड़ी केंद्र में परोसे जाने वाले हर भोजन को वास्तविक समय में ट्रैक करने के लिए पोषण ट्रैकर की सुविधा भी है। 1 मार्च 2021 को लॉन्च किए गए इस एआई-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म ने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए वास्तविक समय की ट्रैकिंग की सुविधा दी है, जिससे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को उपस्थिति, विकास निगरानी, ​​भोजन वितरण और बचपन की शिक्षा को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने में सक्षम बनाया गया है। इस ऐप की सफलता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि 28 फरवरी 2025 तक भारत के सभी आंगनवाड़ी केंद्र पोषण ट्रैकर पर पंजीकृत हैं। पहली बार पात्र लाभार्थी गर्भवती महिलाएँ, स्तनपान कराने वाली माताएँ, किशोर लड़कियाँ और बच्चे (0-6 वर्ष) पोषण ट्रैकर वेब एप्लिकेशन के माध्यम से स्वयं पंजीकरण कर सकते हैं।

पोषण पखवाड़ा : जमीनी स्तर पर कुपोषण से निपटना

प्रौद्योगिकी ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के जीवन को, समुदाय-आधारित गंभीर कुपोषण प्रबंधन (सीएमएएम) प्रोटोकॉल के रूप में एक मानकीकृत मार्गदर्शिका प्रदान करके आसान बना दिया है। अक्टूबर 2023 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमओडब्ल्यूसीडी) द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के इनपुट के साथ लॉन्च किया गया सीएमएएम प्रोटोकॉल एक गेम-चेंजर है। पहली बार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के पास अपने समुदायों में कुपोषित बच्चों का पता लगाने, उन्हें रेफर करने और उनका इलाज करने के लिए एक संरचित व्यवस्था है। पोषण पखवाड़ा के दौरान, यह प्रोटोकॉल मुख्य केंद्र में है। इसका लक्ष्य हर आंगनवाड़ी को एक फ्रंटलाइन पोषण क्लिनिक में बदलना है-जहाँ भूख की जाँच नियमित रुप से हो, समय पर रेफरल हो और हर बच्चे को मजबूत शरीर बनाने का मौका मिले। इसके तहत समुदायों को संवेदनशील बनाया जाएगा, परिवारों को सूचित किया जाएगा और नीति को सटीक रूप से निर्देशित करने के लिए पोषण ट्रैकर में डेटा डाला जाएगा।

पोषण पखवाड़ा : बचपन में मोटापे से लड़ना

कुपोषण सिर्फ़ कम वज़न वाले बच्चों के बारे में नहीं है, बल्कि यह ज़्यादा वज़न वाले बच्चों को लेकर भी है। आज जब भारत कुपोषण के खिलाफ़ अपनी लड़ाई लड़ रहा है, एक और बढ़ती हुई चुनौती है-बचपन में मोटापा आना। आज के वक्त में, बच्चे ज़्यादा वसा, ज़्यादा चीनी, ज़्यादा नमक, कम ऊर्जा और कम पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थों के संपर्क में लगातार आ रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 (2019-21) के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम आयु के अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत 2015-16 (NFHS-4) में 2.1 से बढ़कर 2019-21 में 3.4 फीसद हो गया है। स्कूलों में वसा, नमक और चीनी से भरपूर खाद्य पदार्थों की खपत को कम करने और स्वस्थ नाश्ते को बढ़ावा देने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय के कार्य समूह का गठन किया था। समूह की सिफारिशें इस प्रकार थीं:

  • स्कूल कैंटीन में सभी एचएफएसएस खाद्य पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाएँ और स्कूल के समय के दौरान स्कूलों के 200 मीटर के भीतर निजी विक्रेताओं द्वारा उनकी बिक्री को प्रतिबंधित करें।
  • स्कूल कैंटीन में हमेशा हरी श्रेणी के खाद्य पदार्थ जैसे फल और सब्जियाँ उपलब्ध होनी चाहिए।
  • स्कूल कैंटीन में नारंगी श्रेणी के खाद्य पदार्थ जैसे मिष्ठान्न और तली हुई चीज़ें रखने की सलाह नहीं दी जाती है।
  • स्कूल कैंटीन में हाइड्रोजनीकृत तेलों के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।
  • स्कूलों में शारीरिक गतिविधि अनिवार्य होनी चाहिए।
    12 अप्रैल 2012 को जारी एक परिपत्र में, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने भी संबद्ध स्कूलों को निर्देश जारी किए, कि स्कूल सुनिश्चित करें कि जंक/फास्ट फूड को पूरी तरह से स्वस्थ स्नैक्स में बदल दिया जाए। परिपत्र में स्कूलों को कार्बोनेटेड और वात युक्त पेय पदार्थों की जगह जूस और डेयरी उत्पाद (लस्सी, छाछ, फ्लेवर्ड मिल्क आदि) देने का भी निर्देश दिया गया।

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