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विज्ञान के संचार की जिम्मेदारी लें वैज्ञानिक : प्रो. रंजना

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। यदि वैज्ञानिक संवाद नहीं करते हैं, तो गैर विशेषज्ञ संवाद करना शुरू कर देंगे और फिर भ्रामक सूचनाओं और असत्य जानकारियों के बादल उठेंगे, इसलिए हमारे वैज्ञानिकों को विज्ञान संचार के महत्वपूर्ण कार्य में शामिल करना आवश्यक है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (CSIR-NISCPR (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च) की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने आईसीएमआर के सहयोग से CSIR-NISCPR द्वारा आयोजित ‘स्वास्थ्य संचार’ पर आयोजित संपर्क सत्र में गत दिनों अपने उद्घाटन भाषण के दौरान इन विचारों को साझा किया।

विज्ञान संचार से भ्रम होंगे दूर

उन्होंने कहा कि हमने हाल के दिनों में कोविड-19 महामारी से बहुत कुछ सीखा और हमने देखा कि कैसे विज्ञान संचार ने अनिश्चितता के उन दिनों में अवैज्ञानिक बातों को मिटाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कार्यक्रम में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की विभिन्न प्रयोगशालाओं के 30 वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

स्वास्थ्य संचार पर पाठ्यक्रम शुरू

डॉ. रजनीकांत, वैज्ञानिक-जी और निदेशक, ICMR-क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, गोरखपुर इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि थे। उद्घाटन समारोह के दौरान डॉ. कांत ने कहा कि ये भारतीय ICMR प्रयोगशालाओं के ‘सुपर 30’ वैज्ञानिक हैं और मुझे विश्वास है कि विज्ञान संचार के इस पाठ्यक्रम के बाद ये कुशल विज्ञान संचारकर्ता भी बनेंगे। उन्होंने कहा कि ICMR ने सबसे पहले स्वास्थ्य संचार पर एक पाठ्यक्रम शुरू किया है और यह समय की मांग है।

व्याख्यानों का सिलसिला

पहले तकनीकी सत्र में चार विशेषज्ञों ने चिंता के विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिया। श्री आर.एस. जयसोमु, मुख्य वैज्ञानिक, CSIR-NISCPR ने ‘अनुसंधान संचार बनाम विज्ञान संचार: समय की आवश्यकता’ पर व्याख्यान दिया। डॉ. वाई माधवी, की वार्ता का विषय था ‘कोविड पश्चात काल में स्वास्थ्य संचार’। डॉ. मनीष मोहन गोरे ने ‘विभिन्न मीडिया प्रारूपों के लिए लोकप्रिय विज्ञान लेखन’ पर अपना व्याख्यान दिया। श्री अश्विनी ब्राह्मी ने वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान संचार में उत्पादन और मुद्रण की जानकारी पर चर्चा की।

वैज्ञानिक सुविधाओं का निरीक्षण

तकनीकी सत्र के बाद, सभी प्रतिभागियों ने वैज्ञानिक सुविधाओं का दौरा किया। इस दौरान प्रतिभागियों ने औषधीय पौधों की प्रिंटिंग यूनिट-मशीनरी, आयुर वाटिका और पौधों, पशुओं और खनिजों पर आधारित कच्चे माल के हर्बेरियम का अवलोकन किया। CSIR-NISCPR विज्ञान प्रौद्योगिकी नवाचार (STI ) आधारित नीति अध्ययन- अनुसंधान और विज्ञान संचार के दो प्रमुख अधिदेशों के साथ CSIR की घटक प्रयोगशालाओं में से एक है। NISCPR विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न प्रमुख विषयों में 16 समकक्ष समीक्षित मुक्त पहुंच पत्रिकाएँ (ओपन एक्सेस जर्नल ) प्रकाशित करता है। देश की तीन सर्वाधिक लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाएं सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर से प्रकाशित होती हैं। ये पत्रिकाएं हैं साइंस रिपोर्टर (अंग्रेजी), विज्ञान प्रगति (हिंदी) और साइंस की दुनिया (उर्दू)।

दूसरे सत्र में उपयोगी चर्चा

दूसरे तकनीकी सत्र के दौरान तीन विशेषज्ञों ने व्याख्यान दिया। वरिष्ठ विज्ञान संचारक और फोटो पत्रकार श्री पल्लव बागला ने प्रतिभागियों के साथ ‘विज्ञान संचार के चतुर तरीकों’ के बारे में बातचीत की। डॉ. परमानंद बर्मन ने भारतीय पारंपरिक ज्ञान की वैज्ञानिक मान्यता पर केंद्रित ‘स्वस्तिक और इसके मीडिया कवरेज से जुडी अंतर्दृष्टियों’ पर अपनी बात रखी। डॉ. मेहर वान के व्याख्यान का विषय था ‘अपने शोध को आम जनता तक कैसे पहुंचाएं’।

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