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मिठास की इन लाखों देवियों को मौत से कौन बचायेगा!

बिहार से यह दुखद खबर आ रही है। मिठास की लाखों देवियों के प्राण संकट में है। कोरोना-आपातकाल में उन्हें संकट से उबारने वाला कोई नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि इनको बचाने के लिए बिहार सरकार कुछ करेगी या नहीं। पढिए पटना से अजय वर्मा की खास रिपोर्ट

 
 
पटना/15 अप्रैल
लॉकडाउन में गरीबों के साथ ही मिठास की देवियों पर भी प्राण संकट मंडरा रहा है। मिठास की देवी यानी मधुमक्खियों का जीवन संकट में है। 3 मई तक बंदी जारी रहने से दो लाख बक्सों मे बंद मधुमक्खियां मरने वाली हैं। नतीजा होगा कि हजारों टन ताजा मधु से लोग वंचित रह जायेंगे।
है न हैरत की बात
जी हां। लीची और आम के मंजरों से मधुमक्खियां रस चूसती हैं। मुजफ्फरपुर के गांव—गांव में मधु उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है क्योंकि यहां लीची बगानों की अच्छी संख्या है। मंजर आने पहले से ही बगानों में मधु उत्पादक सक्रिय हो जाते हैं। उनके बक्से में कैद मधुमक्खियां मंजरों से परागकण चूस कर वापस बक्से में आ जाती हैं। करीब 12 हजार लोग मधु के व्यवसाय से जुड़े है और तीन हजार टन मधु तैयार होता है।
हालत यह है कि मुजफ्फरपुर और चंपारण के लीची बागों से दो लाख बक्सों को झारखंड शिफ्ट नहीं किया गया, तो मधुमक्खियां भूख से तड़पकर मर जाएंगी। स्थानीय लीची बागों में अब मंजर की जगह फल आ गए हैं। लिहाजा मधुमक्खियों को लीची के मंजर से मिलने वाली खुराक रस व पराग मिलनी बंद हो गई। इसी समय स्थानीय मधुमक्खी पालक इन बक्सों को झारखंड भेज देते हैं। वहां से इनको खूंटी, रांची, गुमला आदि के बागों तक पहुंचा दिया जाता है। यही मधुमक्खियां झारखंड में ताजे शहद के उत्पादन का वाहक बनतीं हैं।

मधुमक्खी पालकों पर दोहरी मार

मुजफ्फरपुर की मशहूर लीची शहद के खरीदार भी लॉकडाउन से बगानों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। नतीजतन मधुमक्खी पालक दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तो मधुमक्खियों को बचाये रखने के लिए उन्हें चीनी अथवा गुड़ का घोल देना पड़ रहा है तथा दूसरी तरफ तैयार शहद बगानों में बर्बाद हो रहा है। मजबूरन कुछ मधुमक्खीपालक बक्सों को पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन एवं छौड़ादानो ले जाने की जुगत में हैं, जहां जंगली फूल से मधुमक्खियां लाल शहद तैयार करतीं हैं।
अभी की स्थिति में पालकों को ट्रक के परमिट नहीं मिल रहे हैं। जानकारी बताती है कि फिलहाल मधुमक्खी पालक तकरीबन 750 ट्रकों से अपने दो लाख बक्सों को झारखंड भेजने के इंतजार में हैं।

कैसी होगी इनकी अकाल मौत

लकड़ी के बक्सों में मधुमक्खियां मोम का छत्ता बनाकर रहती हैं। बक्सा लदे वाहनों को रास्ते में रोकना और कागज चेकिंग के नाम पर देर तक खड़े रखना ही बेमौत मर जाने की वजह बनती हैं। पहले ये वाहन बगीचे से उठाकर सीधे बक्से को दूसरे शहर के बगीचे में उतार देते रहे हैं। गर्मी भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में, एक तो वाहनों के लिए परमिट नहीं मिल रहा है, दूसरे हर चेकपोस्ट पर चालकों को कागजात दिखाने होंगे। ऐसे में भूख और गर्मी से ये मधुमक्खियां मर जायेंगी। बक्सों में दो लाख से अधिक मधुमक्खियां हैं। इनके खत्म होते ही लाखों का नुकसान होगा और एक सीजन बरबाद होने से पालकों के समक्ष भुखमरी की नौबत आ जायेगी।
पालकों का दर्द
बिहार मधुमक्खी पालक संघ के अध्यक्ष दिलीप कुशवाहा के अनुसार मुजफ्फरपुर और पूर्वी चंपारण में मधुमक्खी पालक किसान अलग-अलग मौसम के फूलों से शहद उत्पादन करते हैं। मधुमक्खी पालक करीब दो लाख बक्से लेकर एक राज्य से दूसरे राज्य प्राय: आते-जाते रहते हैं। लेकिन पाबंदी की वजह से बाग में तैयार शहद को घर तक लाने अथवा खरीदारों तक पहुंचाने का कोई उपाय नजर नहीं आ रहा। कई मधुमक्खी पालक तो खुद ही हरियाणा एवं पंजाब की खरीदार कंपनियों के संपर्क में रहते और उन तक तैयार शहद पहुंचा देते थे। लेकिन ट्रक का परमिट नहीं मिलने से मुश्किल आ रही है। रास्ते में पुलिस बागवानी मिशन से जारी पत्र के आधार पर शहद लदे ट्रकों को आगे बढ़ने नहीं दे रही है। हालांकि मुजफ्फरपुर के डीटीओ रजनीश लाल ने बताया कि मधुमक्खी पालक अपने आवेदन का रसीद मुझे देंगे तो प्राथमिकता के आधार पर उन्हें परमिट जारी किया जाएगा। इसके लिए वे ऑनलाइन आवेदन भी कर सकते हैं।

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