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आम जनता को मिलेगी राहत, कई दवाओं के घटेंगे दाम

अजय वर्मा

नयी दिल्ली। बस सप्ताह भर की देर है और आम जनता को जरूरी दवाओं की खरद में राहत मिलेगी। घर-घर की जरूरत पैरासिटामोल से लेकर कई एंटीबायोटिक की कम कीमत वाली प्रिंट की दवायें जल्द ही बाजार में उतरने वाली है। दवाओं के दाम तय करने वाली संस्था ने 127 दवाओं के दाम कम किए हैं।.

आधी हो जायेगी कीमत

जानकारी मिल रही है कि एमोक्सिसिलिन और पोटेशियम क्लैवनेट कॉन्बो नामक एंटीबायोटिक की एक गोली की कीमत में 6 रुपये की कमी हो सकती है। मॉक्सीफ्लोक्सीन 400 एमजी की एक टैबलेट की कीमत 31 रुपये से घटकर सीधे 21 रुपये हो सकती है। इसी तरह पैरासिटामोल 650 एमजी 2 रुपए 30 पैसे की एक टैबलेट के बदले 1 रुपए 80 पैसे, एमोक्सिसिलिन 22 रुपए के बदले 16 रुपए, मॉक्सीफ्लोक्सीन 400 एमजी 31 रुपए एक टैबलेट के बदले 21 रुपए में मिल सकेगे। ये तो छोटीे राहत है लेकिन बड़ी राहत की तैयारी भी की जा रही है। भारत में दवाओं के दाम तय करने के फॉर्मूले को बदलने पर विचार किया जा रहा है। भारत में चार संस्थाओं को ये स्टडी करने का काम सौंपा गया है कि दवाओं के दाम तय करने का नया फॉर्मूला क्या हो। जो दवाएं सरकार के प्राइस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत नहीं आती, उन पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है। पाबंदी सिर्फ यह है कि एक साल में 10 प्रतिशत से ज्यादा दाम नहीं बढ़ा सकते।

लिस्ट से बाहर की दवा के मनमाने दाम

दिक्कत दवा का दाम तय करने से ही शुरू हो जाती है। 2013 तक दवाओं के दाम लागत और मुनाफा जोडक़र तय होते थे. लेकिन अब दवा के दाम का उसकी लागत से कोई लेना देना नहीं रहा। जो दवाएं जरूरी लिस्ट में नहीं हैं, उनके दाम निर्माता कंपनी खुद तय कर सकती है यानी 10 रुपये में बनने वाली दवा का दाम वो 1 हजार भी रख सकती है। अब सरकार ने गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु बायोइनोवेशन सेंटर और ब्रिज थिंक टैंक, दिल्ली को ये स्टडी सौंपी है कि विदेशों की ड्रग पॉलिसी और भारत की पॉलिसी को स्टडी करके ये बताएं कि कैसे भारत में दवाओं को किफायती दामों पर बेचा जा सकता है। फिलहाल सरकार केवल 886 फॉर्मूलेशन्स से बनने वाली 1817 दवाओं के दामों पर लगाम लगा पा रही है।

लाखों में दवा दुकान, हजारों में जन औषधि स्टोर

इस वक्त 20 हज़ार फार्मा कंपनियां काम कर रही हैं। कुछ दवाओं के दाम में मार्जिन 200 गुना से लेकर हजार गुना तक हैं। बाजार की दवाओं की तुलना जन औषधि स्टोर पर मिलने वाली दवाओं से करें तो समझा जा सकता है कि दवाओं की कीमत कितनी कम हो सकती है जो नहीं हो पाती। अभी 8 लाख से ज्यादा केमिस्ट की दुकानें हैं और जन औषधि केंद्रों की संख्या 9 हजार यानी कुल रिटेल दवा बाजार का 1 प्रतिशत। पिछले कई सालों में जन औषधि की क्वाॉलिटी पर की गई मेहनत दिखाती है कि इस एक प्रतिशत ने भी लोगों को काफी फायदा दिया है। फार्मास्यूटिकल एंड मेडिकल डिवाइस ब्यूरो के CEO रवि दधीच के मुताबिक हर साल सेल बढ़ रही है। पिछले साल की 893 करोड़ का कारोबार हुआ था। सरकार का दावा है कि 893 करोड़ की दवाएं खरीदकर लोगों ने अपने 5300 करोड़ बचाए हैं। पिछले 8 साल की बचत को मिला दें तो लोगों को 18 हज़ार करोड़ का फायदा मिला है। डायबिटीज की मेटफ़ॉरमिन 1000 एमजी की एक गोली जन औषधि स्टोर पर 6 रुपये की है जबकि ब्रांडेड में 20 रुपए। बाजार के मुकाबले ये फर्क 60 से 90 प्रतिशत तक का है लेकिन जन औषधि स्टोर पर हर दवा नहीं मिलती।

हेल्थ केयर पर जेब से 70 फीसद का खर्च

भारत में लोगों को हेल्थ केयर के लिए 70 प्रतिशत खर्च अपने बूते से बाहर का करना होता है। लोग अपना घर बेचकर या लोन लेकर इलाज करवाने को मजबूर हो जाते हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा दवाओं पर होने वाले खर्च का है हालांकि सरकार ने दिल की बीमारी, डायबिटीज और कैंसर जैसी ऐसी बीमारियों की दवाएं जन औषधि स्टोर पर बेचनी शुरू कर दी हैं जो लोगों को उम्र भर खरीदनी होती है।

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