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शारीरिक चक्रों के संतुलन से बनता है स्वस्थ शरीर

मनीषा शर्मा 
सेहत की जब हम चर्चा करते हैं तो पहला सवाल मन में उठता है कि स्वास्थ्य क्या है? क्या हम स्वस्थ हैं? स्वस्थ रहने के क्या मायने हैं? दुखद यह है कि आज के भागदौर की जिंदगी में लोगों के लिए ये तमाम सवाल अब सवाल नहीं रह गए हैं। लोग स्वस्थ रहने के जतन को भूलने लगे हैं। मुझे याद है पहले लोग अपनी सेहत को ठीक रखने के लिए तमाम उपाय किया करते थे। खासतौर से अपने मन एवं शरीर को  स्वस्थ रखने के लिए वे ज्यादा मेहनत करते थे। आजकल तो शिक्षित लोग भी  स्वास्थ्य का मतलब भूलते जा रहे हैं, यहां तक कि चिकित्सक भी स्वस्थ रहने के सारे तरीके जानते हुए भी अनेकों बीमारियों से ग्रसित होने लगे हैं।  ऐसे में स्वास्थ्य को समझना बहुत जरूरी हो जाता है। जिसने अपने स्वास्थ्य को समझ लिया उसका जीवन सुखमय हो जाता है।
सच कहूं तो स्वस्थ रहने के लिए हमें कही बाहर जाने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने दिनचर्या में बदलाव लाने की आवश्यकता तथा शरीर के चक्रो को संतुलित रखने की जरुरत है। आज-कल हर व्यक्ति पोषक आहार को छोड़ कर फास्ट फूड पर निर्भर होता जा रहा है, रात में देर से सोना और सूर्योदय के बाद उठना, व्यायाम न करना  और बिना नास्ता किए जल्दबाज़ी में ऑफिस, स्कूल, कॉलेज या अन्य कार्यो  के लिए भागना। इस अव्यवस्थित दीनचर्या के कारण अनेकों शारीरिक तथा मानसिक  समस्याओं से हम ग्रसित होते जा रहे है।
समग्र रूप से स्वस्थ होने का मतलब मानसिक तथा शारीरक रूप से स्वस्थ रहना है। मानसिक तथा शारीरक स्वास्थ्य का संबंध अन्योन्याश्रित है। मानसिक अपंगता शारीरिक स्वास्थ्य से कही ज्यादा घातक होता है और हमारा मन ही पूरे शरीर को संदेश देता है इसीलिए मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरुरी है।  जिस इंसान का मन, इंद्रियां तथा आत्मा प्रसन्न हो वह मनुष्य स्वस्थ कहलाता है। मानसिक स्वास्थ्य का मतलब उस भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। तो वहीं शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रख-रखाव शामिल होता है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य  को ठीक रखने के लिए हमारे जीवन में शारीरक चक्रों का अहम महत्व होता है । भारतीय दर्शन और योग में चक्र, प्राण या आत्मिक ऊर्जा के केंद्र होते हैं तथा  नाड़ियों के संगम स्थान भी होते हैं। यौगिक ग्रंथों में चक्रो को शरीर के कमल भी कहा गया है।
शरीर के सात प्रमुख चक्र
यहां पर हम शरीर के प्रमुक सात चक्रों की चर्चा करेंगे।

  1. मूलाधार चक्र: मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग में होता है। इस चक्र का रंग लाल होता है। यह चक्र शरीर को सुरक्षित और स्वास्थ्य को संतुलित बनाए रखता है। इस चक्र के असंतुलित होने से नकारात्मक सोच बार बार आता है और आलस तथा असुरक्षित होने का अनुभव होने लगता है। इस चक्र को संतुलित बनाने में सकारात्मक सोच का रखना, घास पर टहलना, प्रत्येक दिन योग करना इत्यादि का महत्वपूर्ण भूमिका होता है और इस चक्र को संतुलित रखने से हमें आलस का अनुभव नहीं होगा तथा खुशी का अनुभव होगा।
  1. स्वाधिष्ठान चक्र: यह चक्र नाभि के पास होता है और इसका रंग नारंगी होता है। आपके अंदर कुछ करने की जज्बा है और अगर आप उसे अच्छे से करने की कोशिश करते हैं तो आपका यह चक्र स्वस्थ और संतुलित बना रहेगा। यह चक्र 50% लोगों में संतुलित और 50% लोगे में असंतुलित होता है। इस चक्र को संतुलित रखने के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे आपको अच्छा लगे जैसे गाना सुनना, नाचना इत्यादि जिससे आपको अंदर से खुशी मिले।
  1. मणिपुर चक्र : यह चक्र नाभि से ऊपर होता है और इसका रंग पीला होता है। आत्म सम्मान की भावना का होना, पद, यश और धन क होना, दुनिया में आपका मान-सम्मान का होना, कॉन्फिडेंस का होना, अपने जीवन की समस्याओं को स्वीकार करना इस चक्र की विषेशता होती है । यह चक्र सूर्य से जुड़ा होता है जो अगर जीवन में अच्छा है तो सूर्य की तरह आपका दुनिया में प्रकाश होगा। इस चक्र को संतुलित बनाए रखने के लिए सुबह उठकर सूर्य का दर्शन करना अच्छा होता है। इससे इस चक्र को ऊर्जा मिलती है, तथा कपालभाति योग भी इसको संतुलित बनाने में सहयोग करता है। दुनिया में मान सम्मान नहीं मिलना, पैसे की कमी, आत्मविश्वास की कमी, मन में डर, कॉन्स्टिपेशन होना, पेट में खराबी, बहुत मेहनत करने के बाद भी उसका फल नहीं मिलना इस चक्र के असंतुलित होने के लक्षण हैं।
  1. अनाहत (हृदय) चक्र: यह चक्र वायु तत्व से बना है और इसका रंग हरा होता है। यह चक्र आपके रिश्तो के लिए जिम्मेवार होता है। इस चक्र के संतुलित होने से आपका सब के प्रति खुशनुमा व्यवहार होगा, आप साहसी होंगे, सबके साथ बहुत अच्छे से समझौता कर पाएंगे, लोगों के प्रति प्रेम, करुणा का भाव, दया, तथा सेवा का भाव होगा। अगर आपका यह चक्र असंतुलित है तो छोटी बातों को लेकर लोगों से मिसअंडरस्टैंडिंग होगा, आप बहुत सेंसिटिव हो जाएंगे यानी की छोटी-छोटी बाते दिल पर लग जाएगी, गुस्सा बहुत आएगा, बहुत जल्दी इमोशनल हो जायेंगे और लोगों पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेंगे। इस चक्र को संतुलित रखने के लिए प्राकृतिक के समीप रहना चाहिए क्योंकि यह चक्र हरे रंग का होता है, हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए, रिश्तों में किसी से भी कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, किसी के बारे में बुरा ना सोचे, ना करें, किसी के प्रति नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए। कपालभाति एवं अनुलोम विलोम व्यायाम करने से इसको संतुलित किया जा सकता है।
  1. विशुद्ध (कंठ) चक्र: यह चक्र का रंग नीला होता है। इस चक्र के संतुलित होने से आपकी बातों का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, आप लोगों को बहुत जल्दी कन्विंस कर पाएंगे, आपकी वाणी में मिठास और मधुरता होगी। इस चक्र को संतुलित रखने के लिए जहां तक संभव हो सके भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए। अगर यह चक्र संतुलित ना हो तो आपकी कोई भी बात कहने पर लोग विश्वास नहीं करेंगे, आपको अपनी बात बोलने में हिचक होगी जिससे आपको जो भी कहना है वह बात दिल में ही रह जाएगी। जो लोग झूठ बोलते हैं उनका यह चक्र असंतुलित हो जाता है।
  1. आज्ञा (थर्ड आई) चक्र : यह चक्र का रंग गहरा नीला होता है। इस चक्र के संतुलित होने से आपके जीवन तथा दिलो-दिमाग में एक बैलेंस होगा, एक सामंजस्य होगा और यह आपको आध्यात्म की ओर ले चलेगा, तथा ध्यान केंद्रित करने का मन करेगा, लोगों का दिमाग पढ़ पाएंगे, घटनाओं का आभास पहले से हो पाएगा। इस चक्र को संतुलित रखने के लिए तीसरी आंख की एक्सरसाइज करना और सही ढंग से मेडिटेशन करना सीख लेनी चाहिए। 10 से 15 मिनट के लिए ब्रीथिंग मेडिटेशन करने से यह चक्र बैलेंस रहता है। अगर आपके कोई गुरु हैं तो आप उनके ऊपर ध्यान केंद्रित करें और अगर आपके कोई देवी-देवता हैं जिन्हें आप मानते हैं तो उनका ध्यान थर्ड आई को संतुलति करने के लिए करना चाहिए। अगर यह चक्र संतुलित नहीं है तो व्यक्ति की हालत बहुत ही खराब हो जाती है, उसका मन पागलों जैसा व्यवहार करता है, तथा मन कहीं एक जगह टिकता नहीं तथा नींद में दिक्कत आती है ।
  1.  सहस्त्रार चक्र (क्राउन चक्र)  : यह चक्र चेतना का शिखर होता है और इस चक्र का रंग गुलाबी होता है। यहां शिवध्य की अवस्था पूरी हो जाती है। इस चक्र के संतुलित रहने से आपका जीवन मोटिवेशन से भरा होगा, जीवन आपको आगे बढ़ने के लिए हमेशा उत्साहित तथा प्रेरित करता रहेगा साथ ही आपके जीवन का परम लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित करेगा। इस चक्र को संतुलित रखने के कई तरीके हैं जैसे माता पिता का आशीर्वाद लेना, अपने गुरुजनों का आदर सम्मान करना, तथा प्रार्थना। अगर यह चक्र संतुलित नहीं है तो आपको अपने जीवन के लक्ष्य प्राप्ति में दिक्कत महसूस होगी और आप अपने जीवन के उद्देश्य को भी खो सकते हैं।

किसी भी व्यक्ति का लक्ष्य होता है कि वह खुश रहे। खुशी की चरमसीमा परमानंद को महसूस कर पाए। आनंद के समुद्र में गोते लगा पाएं। कई बार ऐसा लगता है कि क्या यह सब संभव है? मैं कहती हूं कि हां संभव है। आपको बस उपरोक्त बताए सातों चक्रों के संतुलन को बनाए रखना है।

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