नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। बंगाल और बिहार के पानी में सबसे ज्यादा आर्सेनिक है। हालात यह है कि भूजल में मौजूद आर्सेनिक फसलों को भी प्रभावित कर खाद्य पदार्थों के जरिये लोगों के शरीर में पहुंच रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) को यह जानकारी दी है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से इनपुट लेकर एनजीटी को यह जानकारी दी।
चावल में इसकी अधिक मात्रा
केंद्र ने अपने जवाब में लिखा है कि दूषित पानी से सिंचाई करने से आर्सेनिक मिट्टी में प्रवेश कर रहा है। इसके बाद यह खाद्य पदार्थों में प्रवेश करता है। केंद्र ने कहा है कि इसलिए चावल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक हो सकती है क्योंकि चावल भी अधिक पानी वाली फसल है। जिन क्षेत्रों में आर्सेनिक की अधिकता है, वहां पर उगाए गए चावल में आर्सेनिक होगा। अगर यह चावल बाजार में जाता है तो बड़ी आबादी के आर्सेनिक से प्रभावित होने का खतरा है। मामले की सुनवाई अब 15 अप्रैल को होगी।
साग-सब्जियां भी इससे प्रभावित
केंद्र सरकार ने एनजीटी को बताया कि फसल में जड़ के जरिये आर्सेनिक का प्रवेश शुरू होता है। जड़ के बाद यह तने और फिर पत्तियों में पहुंचता है। रिपोर्ट में बताया गया कि पत्तेदार सब्जी जैसे पालक, मैथी और जमीकंद सब्जी जैसे चुकंदर, आलू, मूली में अधिक आर्सेनिक पाया गया है। जबकि पौधे वाली सब्जी जैसे बैंगन, टमाटर, भिंडी, सेम में कम आर्सेनिक मिला है। केंद्र ने एनजीटी को फसलों में आर्सेनिक कम करने के उपाय भी बताए हैं। इसके मुताबिक जिन स्थानों पर आर्सेनिक है, वहां अधिक पानी वाली फसल चावल की जगह कम पानी वाली फसल की जाये। इसके अलावा आर्सेनिक को सहन करने वाली चावल की किस्म को बोया जाये।