नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। कोरोना महामारी के दौरान हेल्थ मद पर केरल में हुए खर्च ने चर्चित केरल मॉडल को बेनकाब कर दिया। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट ने यह खुलासा किया है कि पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट किट की खरीददारी में न केवल अनियमितता हुई बल्कि अनुचित पेमेंट भी किया गया।
महंगे PPE किट की हुई खरीददारी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में सरकार ने केरल मेडिकल सर्विसेज कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (KMSCL) को PPE किट और अन्य स्वास्थ्य उपकरण खरीदने की विशेष अनुमति दी थी। सरकार ने उस समय PPE की अधिकतम दर 545 रुपए प्रति किट निर्धारित की थी। इसके बावजूद इसे 1,550 प्रति किट खरीदा गया जो सरकारी सीमा से लगभग 300% अधिक थी। इस खरीद प्रक्रिया में सन फार्मा नाम की कंपनी को विशेष लाभ दिया गया। इस कंपनी को 100 फीसद भुगतान एडवांस में दिया गया, जबकि अन्य कंपनियों ने कम दर पर किट देने की पेशकश की थी। CAG ने इस प्रक्रिया को गलत ठहराते हुए कहा कि इससे राज्य को 10.23 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाना पड़ा।
मार्च-अप्रैल 2020 में हुई थी खरीद
कैग रिपोर्ट के मुताबिक मार्च और अप्रैल 2020 के बीच ऊँची कीमत पर की गई खरीदारी ने राज्य के संसाधनों पर अनावश्यक दबाव डाला। जहाँ लाखों किट सस्ती दरों पर खरीदी जा सकती थीं, लेकिन महँगे दामों पर 15,000 किट की खरीदी गई। इसके अलावा राज्य में दवाएं, मेडिकल सामानों का भारी अभाव रहा। केरल में डॉक्टरों की कमी, दवाइयों की कमी भी रही। रिपोर्ट में साफ है कि सस्ते दाम पर पीपीई किट देने वाली कंपनियों को कम ऑर्डर दिया गया, जबकि महँगा पीपीई देने वाली कंपनी को एडवांस में ज्यादा पैसों का भुगतान किया गया और ऑर्डर भी बड़ा दिया गया।
स्वास्थ्य मंत्री ने दी सफाई
हालांकि तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा कि उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए PPE किट की खरीदारी जरूरी थी। महामारी के दौरान इसकी भारी कमी थी। कुछ किट महँगे दाम पर खरीदने पड़े, लेकिन लाखों किट सस्ते दामों पर खरीदी गईं। उन्होंने दावा किया कि सिर्फ 15,000 किट ऊँची कीमत पर खरीदी गई थी, और यह उस समय की परिस्थितियों की वजह से हुआ। कैग रिपोर्ट के खुलासे ने न केवल केरल सरकार के कोविड प्रबंधन पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उन प्रशंसाओं और पुरस्कारों पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है जो महामारी के दौरान राज्य सरकार को मिले थे।