नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। स्मार्ट फोन युग के बच्चों का स्क्रीन टाइम अब ज्यादा होने लगा है। ये घंटों मोबाइल, टीवी और लैपटॉप की स्क्रीन पर चिपके रहते हैं। लेकिन यह लत उनको मायोपिया का रोगी बना देती हैं। एम्स की हालिया रिपोर्ट भी कहती है कि पिछले 20 वर्षों में छोटे-छोटे बच्चों में मायोपिया की बीमारी तीन गुना तक बढ़ गई है। इसके अनुसार 2001 में अकेले दिल्ली में मायोपिया के 7 फीसद केस थे जो 2011 में 13.5 और 2021 तक 21 फीसद हो गये।
खतरे कई तरह के
ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि मायोपिया का समय रहते इलाज नहीं हुआ तो बच्चों में अंधेपन की समस्या भी आ सकती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें देर तक छोटी स्क्रीन (स्मार्ट फोन) को देखते रहने से बच्चों की आंख की पुतली का साइज बढ़ जाता है। तब उन्हें दूर की वस्तुएं साफ नहीं दिखाई देती। बच्चों को निकट दृष्टि दोष हो जाता है। आंख के पर्दे में मायोपिया होने पर छेद हो सकता है या पर्दा कमजोर हो सकता है। मायोपिया ज्यादा समय तक रह गया तो काला या सफेद मोतिया भी हो सकता है।
ठनको है ज्यादा खतरा
मायोपिया का खतरा उनको ज्यादा होता है जो छोटी स्क्रीन पर अधिक समय गुजारते हांे, मोबाइल पर वीडियो देखते और गेम खेलते हों, लेट कर या झुककर पास से मोबाइल देखने या अन्य छोटी स्क्रीन पर समय गुजारते हों या जिनके मां-बाप को चश्मा लगा है। नेत्र रोग डाॅक्टरों का कहना है कि बच्चों में स्क्रीन पर ज्यादा समय देने से अभिभावक ही पहल कर रोक लगा सकते हैं।