स्वस्थ भारत मीडिया
कोविड-19 / COVID-19 मन की बात / Mind Matter समाचार / News

कोरोना राहत वितरण: काहे की पारदर्शिता!

कोरोना  काल में देश एक महासंकट से गुजर रहा है। ऐसे में राहत वितरण के नाम पर ठगी के मामलों की चर्चा शुरू हो गई है। क्या सच में हम सुधर नहीं सकते हैं। इन्हीं संदर्भों पर वरिष्ठ पत्रकार अजय वर्मा की रिपोर्ट

पटना/1.5.20/ एसबीएम
कोरोना ने समाज के कई तौर तरीके बदले हैं तो कई इस दौर के बाद बदल जायेंगे। लेकिन एक चीज नहीं रुक सकेगा। वह है सरकारी योजनाओं में लूट और भ्रष्टाचार। देश के स्तर पर देखिए, कोरोना के खराब किट की खरीदारी में ही संदेह उठाया जाने लगा है। कोरोना राहत, क्वारंटीन, सेनेटाइजेशन आदि कई मामले हैं जिनमें हेराफेरी की खबरें विभिन्न राज्यों से आने लगी है। पीएम केयर्स फंड पर भी लोग अंगुली उठाने लगे हैं।
बिहार में पंचायतों को 587 करोड़
कोरोना की आफत और लॉकडाउन के पहले दौर में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ कड़े निर्णय लिए थे। लॉकडाउन की पूर्ण सफलता के लिए उन्होंने शहरों में वार्ड पार्षदों और गांवों में मुखिया को जिम्मेदारी दे दी यानी इसका उल्लंघन हुआ तो फौरी तौर पर इनको दोषी माना जायेगा। इसके अलावा सूबे के 8406 पंचायतों को 587 करोड़ का आवंटन कर दिया गया। इस राशि से सेनेटाइजेशन, मास्क वितरण, राशन व दवा की उपलब्धता आदि सुनिश्चित करनी थी। इसके अलावा संक्रमण की स्थिति में आइसोलेशन और क्वारंटीन की व्यवस्था करनी थी।

आयुर्वेदाचार्यों ने कहा कोरोना को आयुर्वेद हरा सकता है

आगाह किया था नीति आयोग ने
नीति आयोग को इस बात का अंदेशा था कि राहत के नाम पर राज्यों में यह सब हो सकता है। यानी मिले आवंटन का दुरुपयोग। उसने ऐसी नौबत से बचने के लिए एडवाइजरी जारी कर राज्यों को सतर्क कर दिया। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी अमिताभ कांत ने मार्च के अंत में ही सभी राज्यों के मुख्य सचिव को निर्देश जारी किया कि महामारी को ध्यान में रखकर राज्य एवं जिला स्तर पर किए जा रहे पहल में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एनजीओ के साथ समन्वय स्थापित कर उनकी भागीदारी ली जाए। इसके तहत जिला स्तर पर एक नोडल अधिकारी नियुक्त हो जो विश्वसनीय एनजीओ की सूची उनके कार्यक्षेत्र के हिसाब से बनायेगा। प्रत्येक जिला में या कुछ जिलों के समूह पर एक नोडल यानी मदर एनजीओ बनाना है जिसके साथ जिले का नोडल ऑफिसर समन्वय स्थापित रखेगा। नोडल ऑफिसर एवं नोडल एनजीओ मिलकर कार्य के लिए एनजीओ चयनित करेंगे। यह ध्यान रखना होगा कि सभी एनजीओ भोजन वितरण के मामले में समान प्रकार के मीनू रखेंगे। इन कार्यों में उसी एनजीओ की सहभागिता ली जाएगी जो भारत सरकार के दर्पण पोर्टल में निबंधित हो।
लेकिन हुआ क्या?
इस पर कुछ राज्यों में काम हुआ लेकिन बिहार समेत कई राज्यों ने अनसुनी कर दी तब आयोग ने पुन: 4 अप्रैल को देश के जिलाधिकारीं/उपायुक्त को निर्देश भेजा। बिहार के मुख्य सचिव ने नीति आयोग एवं गृह विभाग के निर्देशों को तबज्जो नहीं दिया या निर्णय लेने में देर लगा दी। नतीजतन नीति आयोग ने जिलाधिकारी के लिए निर्देश का उल्लेख करते हुए सिविल सोसायटी और्गनाइजेसन (NGOs) को सीधे पत्र जारी किया। लॉकडाउन होते ही व्यापक स्तर पर मुफ्त खाद्यान्न वितरण, प्रवासियों के आने पर उनको रोजगार व राहत सामग्री, मेडिकल सुविधा आदि दी जाने लगी थी। ऐसे में, सरकारी खर्च में पारदर्शिता रहे और बेईमानी नहीं हो, इसीलिए नीति आयोग ने एनजीओ को साथ लगाने का मशविरा दिया था। अब तो हर रोज इन सबमें लापरवाही और न सहायता न मिलने की भी शिकायत आने लगी है।
वजह की जड़ कुछ और भी
बिहार के लोगों को 2004 का बाढ़ राहत घोटाला याद होगा। उस वक्त पटना के डीएम गौतम गोस्वामी थे जिनके निर्देशन में बाढ़ राहत का काम प्रशंसनीय रूप से हुआ। 2005 में टाईम्स मैगजीन ने उन्हें इस शानदार काम के लिए एशियन हीरो अवार्ड से भी नवाजा। लेकिन राहत का सारा काम उनको आगे कर राजनीतिक खिलाड़ियों ने किया सो बाढ़ राहत में 17 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ। इसके बाद तो वे गिरफ्तार हुए, जेल गये और वहीं कैंसर से मौत हो गई। लोग कहते हैं कि कई नेताओं ने अपने को बचाने के लिए गोस्वामी की बलि ले ली। उसके बाद से बिहार का प्रशासन ऐसे वक्त में किसी बाहरी को अभियान में जोड़ना नहीं चाहता है। पता नहीं कब किस पर ठीकरा फूट जाए।

Related posts

फ़र्ज़ी फार्मासिस्ट मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट सख्त

Vinay Kumar Bharti

खाद्य उत्पादों का हो स्थानीय उत्पादन: केंद्र सरकार

admin

विश्व आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो गोवा में 11 तक

admin

Leave a Comment