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मोदी-ट्रम्प की सीधी बात, फिर भी खम !

के. विक्रम राव
E-mail –k.vikramrao@gmail.com

कोरोनाग्रस्त राष्ट्रों के नेता लोग नरेंद्र मोदी से याचना कर रहे हैं| जिन राष्ट्रों ने मोदी से अनुरोध किया था उनमें हैं बहरीन के बादशाह, आस्ट्रेलिया, स्पेन, जर्मनी और फ्रान्स के प्रधान मन्त्री| सभी हथेली पर दिल थामे| उनकी चाहत बड़ी है| भारत का मशहूर वृक्ष है सिनकोना, जिसके बक्कल से रसायन मिलता है, जो कुनाइन बनाने में प्रयुक्त होता है| मलेरिया की दवाई है| शायद कोरोना विषाणु को भी नष्ट कर सके| इसका वैज्ञानिक नाम है : “हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन|” मोदी ने तत्काल अपने तीन चहेतों को भिजवा दिया| महाबली अमरीका के डोनाल्ड ट्रम्प को, विशाल लातिन अमरीकी देश ब्राजील जिसके राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को, जो इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि थे और इजराइल के प्रधान मन्त्री बेंजामिन नेतन्याहू को| सभी ने आभार व्यक्त किया है| प्रशंसा की| अपने निवेदन में ब्राजील के राष्ट्रपति ने भी लिखा कि हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण को बचाया था| मोदी जी भी बजरंगबली का रोल अदा करें| संयोग से तभी हनुमान जयंती भी थी| यह वृक्ष भारत के दक्षिण भाग के नीलगिरी पर्वत शृंखला, पूर्वोत्तर के वनों में और कर्णाटक राज्य में बहुतायत में होता है|
कुनाइन तो आज के हर साठोत्तर आयु के भारतीय को याद होगा जब नानी-दादी नाक दबाकर पिलाती थीं| मच्छर की काट की उम्दा काट है| मगर यह भी सियासत हो गई| मोदी ने अपनी राष्ट्रभक्ति के अंदाज में ट्रम्प को बताया कि भारत की आवश्यकता के बाद यदि बचेगा तो उपलब्ध करायी जाएगी| अपनी अंग्रेजी में ट्रम्प ने कह दिया कि अगर नहीं मुहय्या करायी गयी तो बदले की कार्रवाही की जाएगी| इस बीच मोदी ने प्राप्त सूचना के मुताबिक घोषणा कर दी कि बक्कल पर्याप्त मात्रा में है| निर्यात हो जायेगा| फिर भी मोदी के पारम्परिक रिपुजन तेवर चढ़ाकर चिल्ला दिए, “ट्रम्प ने मोदी को हड़का दिया|” इन मोदी-द्रोहियों ने इंदिरा गाँधी से समता कर दी| राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1971 में राष्ट्रपति जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान की मदद में अमरीका का युद्धपोत नंबर सात ढाका की ओर रवाना कर दिया था| मगर तब तक मार्शल सैम मानेक शा पूर्वी पाकिस्तान को बांग्ला देश बनवा चुके थे| इंदिरा गाँधी में शेरनी की अदा खोजकर मोदी-विरोधी बोल उठे: “अमरीकी राष्ट्रपति भारतीय प्रधान मन्त्री पर भारी पड़ा|” मोदी का सरल जवाब था : “मानवता के लिए भारत अमरीका की मदद करेगा|” इसमें किसी वन्य जीव की उपमा कैसे आयी? इंदिरा गाँधी चौपाया तो थीं नहीं? वैचारिक फूहड़पन की इंतिहा हो गई|
फ़िलहाल कोरोना को हराने के लिए इस रसायन का इतिहास देखें| काफी रुचिकर है| इसके मुख्य पात्र हैं टीपू सुलतान, कर्नल आर्थर वेलेजली और विट्ठल माल्या (विजय के पिता) इनकी भी चर्चा होती है| वाकया ऐसा हुआ कि मई 1780 में राजधानी श्रीरंगपत्तनम में टीपू को मारकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राज हो गया| तब अकस्मात गोरे सिपाहियों की सेहत बिगड़ने लगी| कर्णाटक (बेंगलूरू) का यह भूभाग कछारी था| इस दलदली जमीन पर मच्छर ढेरों थे| अंग्रेज सैनिकों को मलेरिया हो गया| कुनाइन का प्रयोग हुआ| उसका कड़वापन कम करने हेतु उसमें जिन नामक शराब मिलाई गयी| सैनिक मलेरिया के प्रकोप से बच गए| अब कुनाइन में मिश्रण के लिए शराब जिन की फैक्टरियाँ भी निर्मित हुईं| बंगलुरु के पास अनेकों शराब उत्पादक केन्द्रों को विट्ठल माल्या नामक उद्योगपति ने आजादी के बाद अंग्रेजों से खरीद लिया| यूनाईटेड ब्रेवरीज नामक कम्पनी के मालिक विजय माल्या हैं| आजकल बैंक धोखाधड़ी के बाद लन्दन भाग गए हैं|
इस पूरे ऐतिहासिक प्रयोग का लाभ भारत सरकार के उद्योग विभाग को मिला| वह अब कोरोनाग्रस्त देशों को औषधि बनाने में लाभ पहुंचाएगी| तो सिलसिला चला टीपू की पराजय से, अंग्रेज फ़ौज का रोग-ग्रस्त होने से, फिर कुनाइन-जिन का सम्मिश्रण से और अंततः कुनाइन की उपज Hydrochloroquine तक, जिसे ट्रम्प ने माँगा, मोदी ने दिया|
 

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