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कई राज्यों में गायों पर लंपी वायरस का जानलेवा प्रकोप

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। दुधारु पशुओं में लंपी की महामारी ने कई सूबे में खतरनाक रूप ले लिया है। अब तक लंपी से कई हजार पालतू पशुओं की मौत हो चुकी है, जिनमें ज्यादातर गायें हैं। गुजरात, राजस्थान और पंजाब समेत 12 से अधिक राज्यों में यह मवेशियों की जान ले रहा है जिसका असर दूध और घी के उत्पादन पर भी पड़ा है।

कैप्रिपॉक्स वायरस का असर

लंपी गायों-भैंसों जैसे मवेशियों में कैप्रिपॉक्स नाम के वायरस से फैलने वाली बीमारी है। ये बहुत तेजी से एक पशु से दूसरे पशु में फैलती है। यह वायरस बकरियों में होने वाले गोट पॉक्स और भेड़ों में होने वाले शीप पॉक्स जैसी वायरल इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार वायरस जैसा ही है। कैप्रिपॉक्स उसी पॉक्सविरिडे वायरस फैमिली से आता है, जिससे स्मॉलपॉक्स यानी चेचक और मंकीपॉक्स जैसी बीमारियां होती हैं। इससे गायें ज्यादा बीमार होती हैं। इस वायरस से भैंसों के मुकाबले गायों की मौत ज्यादा होती है क्योंकि भैसों की नेचुरल इम्युनिटी गायों से ज्यादा होती है।

दुधारु पशुओं के लिए जानलेवा

लंपी से संक्रमित गायों के पूरे शरीर पर गांठें पड़ जाती हैं, जो कई बार घावों में बदल जाती हैं। इन घावों का इलाज न करने पर दूसरा इंफेक्शन होने का खतरा रहता है, जो जानलेवा साबित होता है। UN फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन यानी FAO के अनुसार लंपी मच्छर, मक्खियों, जूं और पिस्सू जैसे जीवों के जरिए फैलने वाली एक चेचक जैसी बीमारी है। तेज बुखार और शरीर पर गांठें होना इस बीमारी के सबसे बड़े लक्षण हैं। बीमार पशुओं में बांझपन हो सकता है। वायरस दिल और किडनी को प्रभावित कर सांस लेने में दिक्कत कर देता है। फलतः तड़प-तड़प कर मौत हो जाती है।

लंपी के लक्षण

शुरुआत में गायों या भैसों की नाक बहने लगती है, आंखों से पानी बहता है और मुंह से लार गिरने लगती है। इसके बाद तेज बुखार हो जाता है, जो करीब एक हफ्ते तक बना रह सकता है। फिर शरीर पर 10-50 मिमी गोलाई वाली गांठें निकल आती हैं। साथ ही उसके शरीर में सूजन भी आ जाती है। जानवर खाना बंद कर देता है क्योंकि उसे चबाने और निगलने में परेशानी होने लगती है। एक्सपर्ट कहते हैं कि ज्यादा दूध देने वाली वाली गायों पर लंपी का खतरा ज्यादा रहता है क्योंकि उनकी शारीरिक और मानसिक ताकत दूध उत्पादन में लग जाती हैं। कई बार लंपी पीड़ित गायों की एक या दोनों आंखों में गहरे घाव हो जाते हैं, जिससे उनके अंधे होने का खतरा रहता है। ये लक्षण 5 हफ्ते तक बने रहते हैं। इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है।

बचे तो 6 माह में ठीक होंगे

लंपी संक्रमित मवेशियों को ठीक होने में दो हफ्ते से एक महीने तक का समय लगता है। वहीं इस बीमारी से गंभीर रूप से संक्रमित मवेशी के वायरस से पूरी तरह उबरने में करीब 6 महीने तक लग जाते हैं। एक पशु से दूसरे पशु में लंपी वायरस फैलने की दर 45 फीसद है। वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ यानी WOAH और FAO भी इससे मौत की बात की बात मानता है। फिलहाल लंपी से सुरक्षा के लिए गोट पॉक्स-वायरस वैक्सीन लगाई जा रही है। नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड ने गोट पॉक्स वैक्सीन की 28 लाख डोज भेजी हैं।

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