नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। एक ऐसा डॉक्टर जिसने बच्चों और हैजा-डायरिया से पीड़ित हजारों लोगों की जान बचायी, उस अचर्चित शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. दिलीप महलानवीस को सबने भुला दिया। गुमनामी में उनका निधन हो गया है लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने ORS के उपयोग से अमरता पा ली।
हजारों शरणार्थियों को बचाया
आापने सही समझा। ORS यानी ओरल रिड्रेशन सोल्यूशन द्वारा निर्जलीकरण समस्या का समाधान ढूँढा। भारत जैसे मानसूनी देश में यह संजीवनी के समान अमृत है। लाखों डायरिया ग्रस्त बच्चों को बचाने यह रामबाण प्रमाणित हुआ। किंतु, उन्हें कोई नही जानता अब। साल 1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का युद्ध चल रहा था, उस दौरान बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक शरणार्थी बनकर पश्चिम बंगाल पहुंचे थे। उनके लिए कई जगह शरणार्थी शिविर बनाए गए। ऐसे ही एक शिविर में हैजा की बीमारी फैल गई थी। ये शिविर नॉर्थ 24 परगना जिले के बनगांव में था। बनगांव में हॉस्पिटल के दो कमरे हैजा के मरीजों से भरे थे। मरीजों के लिए ना तो IV फ्लूइड था और ना ही उतने प्रशिक्षित लोग। उस समय उन्होंने मरीजों को बचाने के लिए आसान तरीका अपनाया। यानी ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन। इसके उपयोग से हजारों मरीजों की जान बच पाई।
इंगलैंड में अहम पद संभाला
वैसे डॉ. दिलीप महालनविस चाइल्ड स्पेशलिस्ट थे। उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। फिरं इंग्लैंड में मेडिसिन की पढ़ाई करने का मौका मिला। लंदन में क्वीन एलिजाबेथ हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के रजिस्ट्रार बनने वाले वे पहले भारतीय थे। उन्होंने जॉन्स हॉपकिन्स इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग में हैजा और दूसरी डायरिया वाली बीमारियों पर पढ़ाई की। फिर 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत आए शरणार्थियों में हैजा बीमारी से निपटने के लिए ORS का इस्तेमाल किया।
WHO के लिए भी काम किया
वेे 1975-1979 के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (WH0) के लिए अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में कॉलरा कंट्रोल यूनिट में रहे। उन्होंने बैक्टीरियल बीमारियों के मैनेजमेंट पर कंसल्टेंट के तौर पर भी काम किया. चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया. इसमें 2002 में पोलिन प्राइज और 2006 में थाइलैंड का प्रिंस महिडोल अवॉर्ड शामिल है।