7वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन का हुआ समापन
नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। जल संरक्षण और नदी कायाकल्प के महत्वपूर्ण पहलुओं पर आयोजित तीन दिवसीय 7वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन में बड़े बेसिनों के संरक्षण के लिए छोटी नदियों के पुनरुद्धार पर विशेष जोर दिया गया। अंतिम दिन विशेषज्ञों ने देश में एक राष्ट्रीय नदी ढांचा बनाने की तत्काल जरूरत पर बल दिया। यह ढांचा नदी की स्वच्छता, प्रक्रिया और उत्तरदायित्व की निगरानी के लिए मानदंड निर्धारित करेगा।
जल मुद्दों पर जागरूकता बढ़ी
समापन सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने की। महानिदेशक ने इसके कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया और उन्होंने आशा व्यक्त की कि आगे सकारात्मक बदलाव जमीन पर दिखाई देंगे। श्री कुमार ने कहा कि भारत में जल अपनी उच्च स्थिति में है और पिछले 6-7 वर्षों में देश में जल से संबंधित मुद्दों पर बेहतर जागरूकता आई है। अब जिला स्तर पर भी जल से संबंधित मुद्दों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है जो एक दशक पहले नहीं था।
नमामि गंगे की अग्रणी भूमिका
उन्होंने कहा कि नमामि गंगे ने जल प्रबंधन, चक्रीय अर्थव्यवस्था, संसाधनों को फिर से प्राप्ति को सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे नदियां प्रदूषित न हों। साथ ही, इसने नदी-शहर गठबंधन जैसी पहल की है, जो शहरी नियोजन स्तर पर नदियों के संरक्षण को शामिल करने पर केंद्रित है। उन्होंने यह भी कहा कि NMCG की पहल के कारण जल को अब पर्यटन, स्वास्थ्य देखभाल आदि के माध्यम से स्थानीय जिलों की GDP बढ़ाने के लिए एक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है।
विदेशी एक्सपर्ट ने भी भारत के काम को सराहा
सम्मेलन में यूरोपीय संघ, नॉर्वे, जर्मनी और स्लोवेनिया के प्रतिनिधियों ने माना कि भौगोलिक विविधता के तहत नदी और बेसिन प्रबंधन भारत को नदी विज्ञान की एक प्राकृतिक प्रयोगशाला बनाता है। उन्होंने पाया कि जिस तरह से नदियों के कायाकल्प की दिशा में काम हो रहा है, हर व्यक्ति कह सकता है कि भारत नदी विज्ञान के विश्व शिक्षक के रूप में सामने आएगा।