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स्वास्थ्य संसद ने तलाशी साहित्य-कला में स्वास्थ्य चेतना

नयी दिल्ली/भोपाल (स्वस्थ भारत मीडिया)। हेल्थ बोले तो डॉक्टर, अस्पताल, दवा की दुकान और जांचघरों के दायरे में ही लोग सोचते हैं लेकिन यह जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है। मनोरंजन के फ्रंट पर सिनेमा हो या गंभीरता के स्तर पर कला और साहित्य…..और स्वास्थ्य संसद ने इसे महसूसा एवं कला और साहित्य में स्वास्थ्य चेतना खोजने की कोशिश की।

स्वास्थ्य संसद ने इस पर एक पैनल चर्चा आयोजित की जिसकी मॉडरेटर डॉ. अलका अग्रवाल थीं। पैनलिस्ट रहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और लेखक मलय जैन, वरिष्ठ लेखिका श्रीमती कांता राय, वरिष्ठ व्यंग्यकार विवेक रंजन श्रीवास्तव, विजी श्रीवास्तव, आयुर्वेद विशेषज्ञ और लेखक डॉ. अबरार मुल्तानी और सत्र की अध्यक्षता की समाजवादी चिंतक मोहन ढकोनिया ने।

श्रीमती कांता राय ने कहा कि एक वक्त था जब हिन्दी साहित्य में महिला स्वास्थ्य का चिंतन नहीं जुड़ा था जबकि तब भी महिलायें बीमार पड़ती रही होंगी। महादेवी वर्मा के साहित्य में वेदना है, अकेले खड़े होने की हिम्मत है लेकिन नवजागरण काल में लेखिकाओं ने महिला के स्वास्थ्य और जीवन पर प्रकाश डाला। स्त्री के स्वास्थ्य की बात हो तो केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ही सबका ध्यान जाता है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य अभी भी हाशिए पर है। उनके मानसिक स्वास्थ्य की ओर अब जाकर थोड़ा बहुत लिखा जाने लगा है जिसमें मनीषा कुलश्रेष्ठ की‘स्वप्नपाश’ अहम है जिसमें एक स्त्री अतीत में हुए कुछ वेदनाकारी घटनाओं के कारण सिजोफ्ऱेनिक हो जाती है।  अब स्त्री विमर्श से जुड़ी कहानियों में मानसिक और अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

उनने कहा कि साहित्य के दरवाजे से स्त्री की शिक्षा और आजादी की लौ निकली। इसके कई प्रमाण हैं। समाज में लोग अपनी बेटी, बहू और स्त्री के स्वास्थ्य के लिए सोचने लगे हैं। ऐसी अनेक कहानियों से साहित्य भरा हुआ है। सविता पाठक की कहानी हिस्टेरिया रोग से लेकर सामाजिक क्रूरता का दस्तावेज है।

व्यंग्य के लिए विख्यात विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कहा कि स्वास्थ्य और साहित्य का आपस में गहरा संबंध होता है। स्वस्थ साहित्य समाज को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका अदा करता है। स्वास्थ्य चेतना का विस्तार  संगीत, नाटक, फिल्म, मूर्ति कला, पेंटिंग आदि में है। स्वास्थ्य दर्पण, आरोग्य, आयुष, निरोगधाम आदि अनेकानेक पत्रिकायें आज सहज ही मिल जाती हैं। फिल्म ‘आनंद’ में कैंसर या फिल्म ‘पा’ में प्रोजेरिया नाम की बीमारी पर केंद्रित कथानक है। ‘गुप्त रोग’ में स्त्री-पुरुष संबंधों तो ‘तारे जमीन पर’ में डिस्लेक्सिया, ‘हिचकी’ में टॉरेट सिंड्रोम, ‘पिकू’ में कांस्टीपेशन, ‘गजनी’ में एमनेसिया, ‘माई नेम इज खान’ में एस्परगर सिंड्रोम, ‘शुभ मंगल सावधान’ में नपुंसकता, ‘ए दिल है मुश्किल’ में टर्मिनल कैंसर पर जनजागृति पैदा करने में कलात्मक सफलता देखने को मिलती है। ऐसी कई फिल्में स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित हैं।

व्यंग्यकार विजी श्रीवास्तव ने कई कहानियों और उपन्यासों का जिक्र किया जिसमें बीमारी और उससे उपजने वाली समस्या पर लोगों का ध्यान खींचा गया। ममता कालिया की कहानी रोशनी, मोहन राकेश के अंधेरे कमरे, मैत्रेयी पुष्पा की रिजल्ट, श्रीलाल शुक्ल के‘राग दरबारी में वैद्य तो शरद चंद्र जोशी के डॉक्टर ही डॉक्टर….रोग और उपचार करने वाले पर फोकस है।

इस तरह से साहित्य और कला पैनल में बैठे कवियों, लेखक और रचनाकारों ने अपने समय के साहित्य और कला में स्वास्थ्य चेतना को उजागर किया। स्वास्थ्य संसद के प्रायोजक थे ONGC, SBI, भारतीय जनऔषधि परियोजना, HP, LNCT आदि।

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