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भारत फार्मास्युटिकल और चिकित्सा उपकरण सम्मेलन 25 से

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। केंद्रीय रसायन और उर्वरक एवं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने 25 से होने वाले तीन दिवसीय भारत फार्मास्युटिकल और चिकित्सा उपकरण सम्मेलन के 7वें संस्करण से पहले रसायन और उर्वरक राज्यमंत्री श्री भगवंत खुबा एवं फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव श्रीमती एस. अपर्णा के साथ मीडिया सम्मेलन को संबोधित किया। इसका आयोजन डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में होगा।

इंडिया फार्मा विजन-47 पर फोकस

इस वर्ष, भारतीय फार्मा की थीम ’इंडिया फार्मा-विजन 2047: भविष्य के लिए परिवर्तनकारी एजेंडा’ पर आधारित है। भारत चिकित्सा उपकरण के लिए विषय ’नवाचार और एकीकृत सेवाओं के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल में बदलाव’ है। तीन दिनों तक चलने वाले विचार-विमर्श से भारत को गुणवत्तापूर्ण दवाओं में अग्रणी बनाने और देश में दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता, पहुंच और क्षमता सुनिश्चित करने के लिए नए अवसर और विचार पैदा होंगे।

विकासोन्मुख भारतीय फार्मा उद्योग

डॉ. मनसुख मंडाविया ने कहा कि लचीली आपूर्ति श्रृंखला बनाने, फार्मा और चिकित्सा उपकरण के क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की आवश्यकता, चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में उपयोग की जाने वाली क्षमता व अन्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हर साल इस सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। पिछले सम्मेलनों से काफी मदद मिली है और आज भारतीय फार्मा उद्योग तेजी से विकास की दहलीज पर है। हम पहले ही भारत को दुनिया की फार्मेसी के रूप में देख चुके हैं और अपने दर्शन से हम न केवल फार्मास्युटिकल क्षेत्र को एक व्यवसाय के रूप में बल्कि ’सेवा’ के रूप में भी देखते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना के अनुरूप केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उद्योग, विभाग और सरकार के बीच सहयोग बढ़ने से ’मेकिंग इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ के सही अर्थों में आत्मनिर्भर भारत के सपने को हासिल करने में मदद मिल सकती है।

जेनेरिक दवा को मिले प्रोत्साहन

जेनेरिक दवा के अलावा उन्होंने पेटेंट की गई दवा बनाने को प्रोत्साहन देने पर भी ध्यान केंद्रित किया। केंद्रीय मंत्री ने प्रतिभागियों से विभिन्न मोर्चों-नीति, आर्थिक, अनुसंधान और नवाचार को लेकर विचार मंथन करने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रमुख सामग्री और उत्पादों के निर्माण में भारत को आत्मनिर्भर बनाने तथा अन्य देशों पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए हमने कई एपीआई को चिन्हित किया और देश में ही उनका निर्माण शुरू किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मद्देनजर दक्ष बनने के लिए तत्पर रहना चाहिए। हमें अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं, डिजिटल विशेषज्ञता के कार्यान्वयन जैसे अन्य पहलुओं पर ध्यान देना होगा। जैसे-जैसे स्वास्थ्य सेवा की पहुंच बढ़ेगी, हमारी जरूरतें भी बढ़ती जाएंगी।’’

 

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