नयी दिल्ली। टीबी की रोकथाम के लिए आमतौर पर उपयोग होने वाला बीसीजी टीका बच्चों में तो प्रभावी है, पर किशोरों और वयस्कों को सुरक्षा प्रदान करने में यह उतना प्रभावी नहीं देखा गया है। इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय शोधकर्ता एक प्रभावी वैक्सीन विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
IIsc में षोध
इस नयी पद्धति में स्वर्ण नैनो कणों पर लिपटे बैक्टीरिया से प्राप्त गोलाकार पुटिकाओं का उपयोग शामिल है, जिसे बाद में प्रतिरक्षा कोशिकाओं तक पहुँचाया जा सकता है। यह अध्ययन, बेंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IIsc) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। उनका कहना है कि यह पद्धति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करके बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है।
OMVs का अपयोग
आईआईएससी के सेंटर फॉर बायोसिस्टम्स साइंस ऐंड इंजीनियरिंग (BSSE) में सहायक प्रोफेसर रचित अग्रवाल और उनकी टीम द्वारा विकसित किये गए इस संभावित सब-यूनिट वैक्सीन में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ट्रिगर करने के लिए संक्रामक जीवाणु के केवल कुछ हिस्सों का उपयोग किया गया है। शोधकर्ताओं ने आउटर मेम्ब्रेन वेसिकल्स (OMVs) का उपयोग किया है। उनका कहना है कि व्डटे कुछ बैक्टीरिया प्रजातियों द्वारा उत्पन्न गोलाकार झिल्ली से बंधे कण होते हैं और उनमें प्रोटीन और लिपिड का वर्गीकरण होता है, जो रोगजनक बैक्टीरिया के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने, इससे पहले, रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सीमित प्रोटीन्स के आधार पर सब-यूनिट टीके विकसित किए हैं लेकिन वे प्रभावी नहीं रहे हैं।
टीबी से हर साल लाखों की मौत
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस जीवाणु के कारण होने वाला टीबी रोग दुनिया भर में हर साल दस लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है। टीबी की रोकथाम के लिए वर्तमान में एकमात्र प्रभावी उपाय बीसीजी टीका है। इसमें रोग पैदा करने वाले जीवाणु का कमजोर रूप होता है। जब हमारे रक्त प्रवाह में यह टीका इंजेक्ट किया जाता है, तो यह एंटीबॉडी उत्पादन को ट्रिगर करता है, जो बीमारी से लड़ने में मदद कर सकता है।
इंडिया साइंस वायर से साभार