डॉ॰ मनोज कुमार
नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। अंतरिम बजट में मेडिकल कॉलेज बढाने और स्वास्थ्य प्रक्षेत्र में गुणात्मक सुविधाएँ बढ़ाने पर जोर दिया गया है। आम जनता की हेल्थ सुविधाएँ को बढाने का यह प्रयास स्वागत योग्य है। संपूर्ण स्वास्थ्य के अंतर्गत भारत के जनमानस में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहले से ज्यादा बढ़ोतरी हुयी है परंतु इस बजट में मानसिक स्वास्थ्य को दरकिनार किया गया है जबकि 2022 में कोरोना काल की वजह से उपजे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए केन्द्र सरकार सजग दिखी थी।
मौजूदा बजट को लेकर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा कयास लगाये जा रहे थे कि इस बजट में पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण और मानसिक रोगियों के लिए ओपीडी सुविधाएँ बढ़ाने के लिए अलग से कोई फंड बनेगा पर इसकी घोर उपेक्षा हुयी। ज्ञातव्य हो कि स्कूल स्तर पर ही बच्चों के मानसिक विकास पर जोर देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय का रूख सकारात्मक रहा है। वर्तमान बजट में इस सुविधा को बढ़ाने की उम्मीद की जा रही थी। कोरोना काल के बाद से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे तेजी से उभरने लगे हैं। जिसका प्रभाव बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुर्जुगों के मनःस्थिति पर स्पष्ट देखा जा सकता है। केन्द्र सरकार को इस पर पुनः अवलोकन कर वित्तीय वर्ष 2024-25 में मानसिक स्वास्थ्य बजट में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए।
(पटना के मनोचिकित्सक की त्वरित टिप्पणी)