नयी दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA एक पृथ्वी निरीक्षण उपग्रह अभियान ‘निसार’ (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रेडार) के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। निसार मिशन जलवायु संकट से निपटने के लिए महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करेगा। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह जानकारी दी है। अपनी अमेरिका की पाँच दिवसीय अमेरिका यात्रा के दौरान वह वाशिंगटन में यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स मुख्यालय में 30 से अधिक प्रमुख अमेरिकी कंपनियों के सीईओ और प्रतिनिधियों को संबोधित भी किया। इसके अलावा, यूएसजी/स्पेस, डीसी गवर्नमेंट, नासा, अमेरिकी थिंक टैंक और संघीय प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन का आयोजन वाशिंगटन में यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (USIBC) द्वारा किया गया है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में सफल साझेदारी
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष विज्ञान और अन्वेषण में सफलतापूर्वक सहयोग स्थािपित किया है। उन्होंने बताया कि इसरो अपने अंतरिक्ष मिशनों जैसे चंद्रयान-1, मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) और चंद्रयान-2 मिशन में नासा से डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना सपोर्ट प्राप्त कर रहा है और चंद्रयान-3 मिशन के लिए समर्थन जारी रहेगा। उन्होंने कहा, अंतरिक्ष सुधारों को देखते हुए, भारत अंतरिक्ष प्रणाली और बुनियादी संरचना, निर्माण और संयुक्त विकास के लिए निजी क्षेत्रों के साथ कार्य करने की दिशा में बढ़ रहा है।
अनुसंधान का दायरा बढ़ेगा
डॉ. सिंह ने कहा कि दोनों पक्ष निसार के अलावा अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, मौसम की भविष्यवाणी, ग्राउंड रेफरेंसिंग एवं पोजिशनिंग, नेविगेशन एवं टाइमिंग की जानकारी के लिए उपयोग में आने वाले संयुक्त रूप से विकसित जियो-स्टेशनल डेटासेट में सहयोग का विस्तार कर सकते हैं। संयुक्त वैज्ञानिक तथा तकनीकी कौशल और उपग्रह डेटा का उपयोग पृथ्वी का निरीक्षण बढ़ाने एवंहिंद महासागर की परिवर्तनशीलता एवं मॉनसून संबंधी प्रभावी जानकारी प्राप्त करने में हो सकता है। उन्होंने कहा, भारत और अमेरिका के वैज्ञानिक दल एक सहयोगी भारत-यूएसए कार्यक्रम के लिए एकजुट हुए हैं, जिसे EKAMST कहा जाता है। इसके अंतर्गत, वैज्ञानिक दल मॉनसून, चक्रवात और गंभीर मौसम प्रणालियों की बेहतर भविष्यवाणी के लिए भारत और अमेरिका के अनुसंधान जहाजों का उपयोग करते हुए अरब सागर में संयुक्त वैज्ञानिक सहयोग में संलग्न होंगे।
2021 में हुआ था समझौता
उन्होंने कहा कि अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DOE) और भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के नेतृत्व में 2021 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसका उद्देश्य भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा सार्वजनिक-निजी संकाय मोड के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को बढ़ावा देने और पारस्परिक हित के चिह्नित क्षेत्रों जैसे स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी, उन्नत सुपरक्रिटिकल कार्बन डाइऑक्साइड (SC0-2) चक्र और कार्बन कैप्चर उपयोग तथा भंडारण (CCUS) में अनुसंधान विकास केन्द्र (JCIRDC) स्थापित करना है।
इंडिया साइंस वायर से साभार