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फेयरनेस क्रीम के बेतहाशा इस्तेमाल से किडनी को खतरा

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। एक नए अध्ययन के मुताबिक फेयरनेस क्रीमों के बेतहाशा इस्तेमाल से भारत में किडनी की समस्याओं में वृद्धि हो रही है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इन क्रीमों में पारा की उच्च मात्रा किडनी की समस्याओं को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। मेडिकल जर्नल किडनी इंटरनेशनल में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि पारा मेम्ब्रेनस नेफ्रोपैथी या MN का कारण बनता है। एक ऐसी स्थिति जो किडनी फिल्टर को नुकसान पहुंचाती है और प्रोटीन रिसाव का कारण बनती है। इसे झिल्लीदार ग्लोमेरुलोपैथी के रूप में भी जाना जाता है, जो MN कई ग्लोमेरुलर रोगों में से एक है और नेफ्रोटिक सिंड्रोम का कारण बनता है।

एंटोड फार्मा के आई ड्रॉप्स को मंजूरी

मुंबई की एंटोड फार्मा को प्रेसबायोपिया उपचार के व्यवसायीकरण के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की मंजूरी मिल गयी है। कंपनी ने प्रेसवु आई ड्रॉप्स का विकास 2022 के अंत में पूरा कर लिया था, जिसके बाद क्लिनिकल परीक्षण की प्रक्रिया में रखा गया। प्रेस्बायोपिया की विशेषता आंख के प्राकृतिक लेंस के लचीलेपन में कमी के कारण निकट दृष्टि धुंधली होना है जो 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को प्रभावित करती है।

हिमाचल में 23.9 फीसद लोग मानसिक विकार से ग्रस्त

हिमाचल का हर चौथा व्यक्ति मानसिक विकार का शिकार है। यह खलासा ICMR की इस साल की जारी रिपोर्ट से हुआ है। हिमाचल में 23.9 फीसद व्यक्ति मेंटल हैल्थ से जूझ रहे हैं। खासकर युवा और बुजुर्ग इस कारण बेहद परेशान है और काउंसिलिंग का सहारा ले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में 38.6 फीसद तो सिक्किम में 31.9 फीसद लोग इससे ग्रसित है।

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