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लैवेंडर सिर्फ सौंदर्य नही, रोजगार का सशक्त माध्यम भी : मंत्री

डोडा (जम्मू-कष्मीर)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि वर्तमान समय नवाचार का है, जो आमदनी का माध्यम भी बन सकता है। लैवेंडर की खेती का केंद्र बनकर उभरे डोडा जिले की ‘बैंगनी क्रांति’ का उदाहरण देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लैवेंडर सिर्फ सौंदर्य से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह रोजगार का एक सशक्त माध्यम भी है, जिसकी जीवंत मिसाल भद्रवाह के किसान एवं उद्यमी बने हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने और इस क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने में भद्रवाह की ‘बैंगनी क्रांति’ महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वे लैवेंडर की खेती एवं प्रसंस्करण का पर्याय बनी ‘बैंगनी क्रांति’ की सफलता का उत्सव मनाने के लिए भद्रवाह में आयोजित दो दिवसीय ‘लैवेंडर फेस्टिवल’ को संबोधित कर रहे थे।

युवाओं को रोजगार भी

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद CSIR) के अरोमा मिशन के अंतर्गत भद्रवाह मेंलैवेंडर की खेती को प्रोत्साहन एवं समर्थन प्रदान किया जा रहा है। CSIR की जम्मू स्थित प्रयोगशाला सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसन (IIIM) के वैज्ञानिक और अरोमा मिशन के नोडल अधिकारी डॉ सुमित गैरोला ने बताया कि “स्थानीय युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की इस मुहिम में भारतीय सेना का समर्थन एवं सहयोग भी मिल रहा है। भारत में उपयोग होने वाले लैवेंडर तेल का अधिकतर हिस्सा आयात किया जाता है। एक लीटर लैवेंडर तेल का मूल्य करीब 10 हजार रुपये है, जो इस क्षेत्र में उगायी जाने वाली मक्के जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में किसानों की आय चार गुना से अधिक बढ़ाने में सक्षम है। यदि यहाँ पर लैवेंडर के तेल से साबुन, शैम्पू, परफ्यूम, औषधीय उत्पाद इत्यादि मूल्यवर्दि्धत उत्पाद बनाये जाते हैं, तो किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है।”

पिछले साल 8 क्विंटल लैवेंडर तेल निकला

भद्रवाह के एक प्रगतिशील लैवेंडर उत्पादक किसान भारतभूषण बताते हैं कि पिछले साल इस क्षेत्र में करीब 08 क्विंटल लैवेंडर तेल प्राप्त हुआ था और इस वर्ष हमारा लक्ष्य 12 क्विंटल लैवेंडर तेल उत्पादन करने का है। भद्रवाह के ही एक अन्य युवा उद्यमी तौकिर अहमद वाजवान बताते हैं कि भद्रवाह की करीब 80 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है। लेकिन, अभी मुश्किल से भद्रवाह के लहरोत और टपरी की करीब दो प्रतिशत जमीन में ही लैवेंडर की खेती होती है।

इंडिया साइंस वायर से साभार

 

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