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सीमित संसाधन असीमित जनसंख्या यानी दुःख को बुलावा

World Population day


डॉ. ममता ठाकुर

चीन के बाद जनसंख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान की होड़ में हम बहुत तेजी से दौड़ रहे हैं। जनसंख्या दर में हो रही यह बढ़ोत्तरी भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं, फिर भी जनसंख्या पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण है अशिक्षा और बेरोजगारी। जबतक हम समाज को पूरी तरह शिक्षित नहीं कर देते एवं हर हाथ को काम नहीं मिल जाता जनसंख्या को कम करना आसान नहीं होगा।

मैंने देखा है, जितनी गरीबी है उतने ही बच्चे भी हैं। गरीब सेक्स को मनोरंजन के रूप में देखता है। उसके पास मनोरंजन के तमाम साधन नहीं उपलब्ध हैं। साथ ही एक मनोविज्ञान यह भी है कि जितने बच्चे होंगे उतने ही कमासुत यानी कमाने वाला हाथ होगा।

कम उम्र में शादी आज भी गांव-देहात में हो रही है। गरीब मां-बाप अपनी बेटी को जल्द विदा करना चाहते हैं। इस दिशा में भी हमें समुचित जागरूकता फैलाने जरूरत है।

जनसंख्या बढने के कारण आज जहां देश की युवा पीढ़ी बेरोजगार हो रही है वही इस बेरोजगारी के कारण जनसंख्या वृद्धि में सहयोग भी कर रही है।

स्वस्थ भारत (न्यास) द्वारा पूरे भारत में चलाए जा रहे स्वस्थ भारत अभियान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य होने के नाते कह रही हूं कि हमने पूरे भारत में स्वस्थ भारत यात्रा निकालकर ‘स्वस्थ बालिका स्वस्थ समाज’ विषय पर 21000 किमी की देशव्यापी यात्रा की है। साथ ही बालिकाओं को उपरोक्त तमाम बिन्दुओं के बारे में जागरूक किया है। हमारे चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह की अगुवाई में एक दल ने देश के 29 राज्यों में जाकर एक लाख से ज्यादा बालिकाओं से प्रत्यक्ष संवाद किया है। हम चाहते हैं कि इस देश की पूरी आबादी खासतौर से आधी आबादी को प्रजनन संबंधी विषयों के बारे में विस्तार से अवगत कराया जाए।

मैं एक डॉक्टर होने के नाते यह कह सकती हूं कि हमारे देश में जीवन प्रत्यासा दर में वृद्धि हुई है, इसके पीछे हमारी मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमने बहुत बेहतर काम किए हैं। इससे मृत्यु दर में कमी आई है। जनसंख्या नियंत्रण के प्राकृतिक उपचार यानी महामारी को हमने नियंत्रित किया है।

एक डॉक्टर होने के नाते मुझे लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में यदि देश के सभी चिकित्सक एडवोकेसी करें तो इस मामले को बहुत हद तक सुलझाया जा सकता है। खासतौर से सभी गायनोकॉलाजिस्ट बहनो/भाइयों से कहना चाहती हूं कि वे दूसरे बच्चे के जन्म के बाद माँ-बाप की काउंसलिंग करें कि वे अब तीसरे बच्चे की प्लानिंग कदाचित न करें…इसके नुकसान से उनको अवगत कराना बहुत जरूरी है।

देहातों में अभी भी लड़की के होने पर परिवार वालों का यह दबाव होता है कि एक लडका हो जाए…एक लड़का होने की उम्मीद में कई और लड़कियां हो जाती हैं…। लड़का एवं लड़की को लेकर लोगों के मन में जो भेद है उसे पाटने की जरूरत है। आज लड़कियां कहां नहीं पहुंच गई हैं। मैं भी एक महिला ही हूं न। आज आपके सामने पूरे देश से रेडियो पर बात कर रही हूं। इसलिए लड़के की आश में जनसंख्या का बढ़ना ठीक नहीं है।  

हालांकि इस दिशा में सरकार बहुत सक्रिय है। बेटियों के सम्मान बढ़ाने के लिए बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान, जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए संस्थागत प्रसव पर 6 हजार रुपये की आर्थिक सहयोग आदि माध्यमों से सरकार लोगों के बीच में पहुंचने का काम कर रही है। साथ ही बेरोजगारी एवं गरीबी से निपटने के लिए भी सरकार ने कई योजनाओं को अंगीकार किया है। लेकिन ये सब तब सफल होंगी जब देश की आवाम चाहेगी। जब आप-और हम चाहेंगे। गर देश का प्रत्येक नागरिक जागरूक हो गया तो निश्चित रूप से हम बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगा पाएंगे। और एक खुशहाल देश के रूप में पूरी दुनिया में फिर से अपनी पहचान स्थापित करने में सफल होंगे।

लेखक परिचय

राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, स्वस्थ भारत अभियान

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