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अपने खेत में ही बनायें जैविक उर्वरक और कीटनाशक

आर. के. सिन्हा

गौकृपा अमृत के प्रयोग से आप सामान्य रूप से साल-डेढ़ साल में पूरी तरह पक कर तैयार होने वाले कम्पोस्ट को मात्र एक से डेढ़ महीने में तैयार कर सकते हैं। इसके लिए आपको किसी भी छायादार जगह में तीन से चार फीट चौड़ा और डेढ़ से दो फीट उंचा ताजे गोबर का बेड तैयार कर लेना होगा। इसके बाद एक कोने से दूसरे कोने तक एक-एक फीट के अन्तर पर किसी मोटे बांस से बेड में छेद कर दीजिए और उसमें गौकृपा अमृत भर दीजिए। दो-तीन दिन में पूरा गौकृपा अमृत गोबर के साथ मिलकर सूख जायेगा। फिर एक-दो दिन बाद इस बेड को कुदाल से अच्छी तरह उलट-पलट दीजिए। अब एक-दो दिन में इसे धूप में हवा लगने दीजिए। फिर इस बेड को ठीक करके पुनः एक-एक फीट पर मोटे बांस से छेद करके फिर से गौकृपा अमृत भर दीजिए। फिर दो दिन बाद गौकृपा अमृत गोबर के साथ मिलकर सूखकर दुबारा पलटने के लिए तैयार हो जायेगा। इस प्रकार गर्मी के मौसम में यह सप्ताह में तीन बार और बरसात तथा सर्दी के मौसम में सप्ताह में दो बार पलटा जा सकेगा। इस प्रकार आप देखेंगे कि फरवरी से जून तक यह लगभग एक महीने में तैयार हो जायेगा और जुलाई से जनवरी तक लगभग डेढ़ माह में तैयार होकर एकदम भुरभुरे चाय की पत्ती की तरह सूखा कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जायेगा। अब इसे थोड़ा फैलाकर धूप दिखा दीजिए और बोरों में भरकर रख लीजिए। अब अच्छी तरह से आपका कम्पोस्ट तैयार हो गया है। इस एक टन कम्पोस्ट खाद को यदि एक एकड़ भूमि में डालकर आखिरी जुताई के बाद पाटा चलाकर बेड में डाल देंगे तो यह अगले एक फसल के लिए पर्याप्त खाद तैयार हो जायेगा।

ज्यादा प्रभावशाली कम्पोस्ट

यदि आप इससे भी ज्यादा प्रभावशाली कम्पोस्ट बनाना चाहते हैं तो ताजे गोबर में कुछ सूखे पत्ते भी मिलाने होंगे। सूखे पत्तों को मिलाने के पहले कुट्टी मशीन या गड़ासे से सभी पत्तों को छोटे-छोटे टुकड़े में काट लें तो अच्छा रहेगा। इससे अच्छा होगा यदि आप इसकी चटनी पीसकर गोबर में मिला दें। पत्ते किसी भी वृक्ष के हो सकते हैं। लेकिन, बांस के पत्ते हों तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि उनमें सेल्यूलोज की मात्रा काफी ज्यादा होती है और इस कारण से यह उर्वरक को ज्यादा शक्तिशाली बनाता है। लेकिन, ऐसे पत्ते जिन्हें गौमाताएं बिल्कुल नहीं खाती हैं जैसे नीम, बेलपत्र, आक व अकवन, धतूरा, भांग, कनेर, पुटुस, बेशरम, कांग्रेस घास या कोई भी ऐसा जहरीला सा पाया जाने वाला घास, जिसे जानवर नहीं खाते हैं तो उन सभी को सुखाकर मिक्सी मशीन में कूटकर गोबर में मिलायें तो जमीन में किसी प्रकार के फंगस या शत्रु कीटाणुओं के प्रकोप से स्वाभाविक सुरक्षा हो जायेगी। सूखे पत्तों के अतिरिक्त आप रॉक फास्फेट पत्थर का चूरा भी मिला सकते हैं। भिगोंकर सुखाया हुआ कली चूूना भी मिला सकते हैं। लकड़ी या उपले की राख भी मिला सकते हैं। लेकिन, ध्यान रहे कि इनमें से कोई भी चीज गोबर के कुल मात्रा की 10 प्रतिशत से ज्यादा न हो। इन चीजों को मिलाकर पुनः कम्पोस्ट बनाने की पूर्व में बताई प्रक्रिया कर सकते हैं। लेकिन, यह ध्यान रहे कि चूँकि आपने इसमें गोबर के अतिरिक्त कई अन्य चीजें मिलाई हैं, अतः शुष्क मौसम में यानि साल में लगभग पांच महीने इसको तैयार होने में लगभग दो महीने का समय और नम मौसम में जो साल के सात महीने बताये हैं, लगभग तीन महीने लगेंगे लेकिन, यह कम्पोस्ट ज्यादा शक्तिशाली होगा।

जैविक कीटनाशक

जैविक कीटनाशक बनाने का तरीका एकदम सरल है। इसके लिए बस साफ गौमूत्र चाहिए। कई बार किसान भाई कहते हैं कि साफ गौमूत्र इकट्ठा करना बहुत ही मुश्किल काम है। यदि साफ गौमूत्र इकट्ठा करने की व्यवस्था आपने गौशाला में नहीं की हो तो एक उपाय है, जो थोड़ा कठिन है। सुबह के लगभग चार बजे आपकी गौमाता जब उठकर खड़ी होती है, तो सबसे पहले वह मूत्र का विसर्जन करेगी। उसी समय आप उसके पीछे कोई बड़ी बाल्टी लगा दें तो साफ गौमूत्र इकट्ठा हो जायेगा। यदि आप यह कार्य प्रतिदिन करेंगे तो फिर तो वह बाल्टी को देखते ही खड़ी हो जायेगी। गौमाता को ज्ञान हो जायेगा कि मेरा गौसेवक मूत्र इकट्ठा करने के लिए तैयार है। वह तुरंत खड़ी होकर गौमूत्र विसर्जित कर देगी। अब एक लोहे की बड़ी कड़ाही में साफ गौमूत्र डालकर नीचे से लकड़ी या उपले की आग लगा कर उबालें। जब गौमूत्र उबलने लगे तो ऐसी हर प्रकार की पत्तियों को जिसको गौ माताएं नहीं खाती हैं उसे इकट्ठा कर कड़ाह में जितना गौमूत्र है उसका 5 प्रतिशत यानि 100 लीटर में नीम की पत्तियां 5 प्रतिशत, बेलपत्र 5 प्रतिशत, धतूरा 5 प्रतिशत, अकवन 5 प्रतिशत। इसी प्रकार सभी पत्ते 5 प्रतिशत यानि पांच-पांच किलो को अच्छी तरह काटकर या हो सके तो चटनी बनाकर खोलते हुए गौमूत्र में मिला दें और धीमी-धीमी आंच में छह से आठ घंटे तक पकायें। जब यह सही तरह से पककर ठंढा हो जाये तो साफ पतले कपड़े से दूसरे दिन सुबह अच्छी तरह छान लें। आपका कीटनाशक तैयार हो गया। अब 15 लीटर की टंकी में डेढ़ से दो लीटर कीटनाशक और बाकी पानी डालकर इसका सप्ताह में एक से दो बार किसी भी फसल में छिड़काव करें तो फसल की विशेष सुरक्षा होगी। लेकिन, यह ध्यान देना जरूरी है कि किसी भी फसल या सब्जी में फूल आ रहें हों तो उसपर इसका सीधा छिड़काव नहीं करें। बल्कि जड़ांे के आसपास छिड़काव करें। जब फल मटर के दाने के बराबर हो जायें या किसी फसल में बालियां पकड़ ले, तो आप फिर से इसके ऊपर सीधा छिड़काव भी कर सकते हैं। सामान्यतः इससे फसल की कीटों से सुरक्षा हो जायेगी। इस विधि को डॉ. सुभाष पालेकर दसपर्णी विधि कहते हैं यानि 10 तरह के पत्ते, जो विषैले हों और गौमाताएं नहीं खाती हों, उसे पकाकर कीटनाशक तैयार करना। लेकिन, आप ऐसे विषैले पत्ते 10 से ज्यादा 15 या 20 प्रकार का भी इकट्ठा करें तो कोई हर्ज नहीं है। पत्ते ज्यादा होंगे, तो उतना शक्तिशाली यह कीटनाशक बनेगा।

रस चूसक और फल छेदक कीट

कुछ ऐसी इल्लियां होती हैं जो पत्तांे पर अंडे दे देती हैं और ये अंडे रस चूसक या फल छेदक कीटों में तब्दील हो जाते हैं जो पत्तों में छेदकर उसमें घुस जाते हैं और उसके सारे रस चूस लेते हैं। इससे सारे पत्ते सूख कर गिर जाते हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है और फसलों के उत्पादन का भारी नुकसान होता है। ये कीट बैगन, भिंडी, मिर्च, लौकी, तोरी आदि के अंदर घुसकर भी फलों में छेद कर देते हैं और फलों को बर्बाद कर देते हैं। इनमें से कई ऐसे कीट होते हैं जो दसपर्णी से भी काबू में नहीं आते हैं। इनके लिए दसपर्णी को और शक्तिशाली बनाने की जरूरत होती है। इसके लिए दसपर्णी के घोल में हल्दी, अदरक, लहसुन, लाल मिर्च और काली मिर्च का एक-एक प्रतिशत की चटनी बनाकर उसे अच्छी तरह गौमूत्र में उबालकर मिला देने से यह दसपर्णी और ज्यादा शक्तिशाली हो जाती है। लेकिन, ध्यान रहे इस घोल में प्रयुक्त की जाने वाली कोई भी सामग्री पूरे घोल के एक प्रतिशत से ज्यादा न हो। यानी अगर दसपर्णी 100 लीटर है तो ये पांचों औषधियां एक-एक लीटर से ज्यादा नहीं होगी और 50 लीटर में 500 ग्राम से ज्यादा नहीं होगी।

(लेखक पूर्व सांसद और जैविक खेती विशेषज्ञ हैं)

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