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केरल ने बचाकर रखा समग्र स्वास्थ्य पद्धति आयुर्वेद को

महिमा सिंह

आयुर्वेद प्राचीन भारत की प्रकृति और समग्र स्वास्थ्य पद्धति है। वेद और उपनिषद में आयुर्वेद का अर्थ जीवन का विज्ञान या लंबी आयु का ज्ञान या जीवन शैली के रूप में लिखा गया है। जबकि एलोपैथ विषम चिकित्सा पर आधारित है। यह रोग को नष्ट करता है जबकि आयुर्वेद रोग का निदान करता है और मूल कारण को नष्ट कर देता है। जहां आयुर्वेद मानव जीवन के मूल उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पर बल देता है उसके लिए मनुष्य के शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर बल देता है। वही आधुनिक चिकित्सा पद्धति शरीर विज्ञान पर केंद्रित है। आयुर्वेद तन, मन और आत्मीय शक्ति के मध्य संतुलन की बात करता है जो एक मनुष्य की रोगप्रतिरोधक क्षमता है। आयुर्वेद केवल शरीर का नहीं, मन और आत्मशक्ति का उपचार भी करता है जिससे व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम रहे, वो खुशहाल जीवन जी सके।

आयुर्वेद का पुनर्जागरण

ग्लोबल दुनिया में वैसे अब कुछ भी स्थान विशेष नहीं रह गया पर आज भी भारत में बहुत कुछ ऐसा है जो भौगोलिक सीमा को निर्धारण करती है। आज योग और नासा का ब्रह्मांड के रहस्यों का उजागर करना जितना आम हो गया है उतना सरल और सहज भारत में एक चिकित्सा पद्धति य जीवन की शैली हुआ करती थी जिसके कारण भारत विश्वगुरु और आध्यात्मिक श्रेष्ठता पर लगातार रहा। लेकिन इतिहास खुद को दोहराता है। 1000 वर्षों की गुलामी और गुमनामी के बाद भारत ने 2020 में दुनिया को और अपनी जनता को यह बताया कि हिन्दुत्व और हिंदूइज्म कोई धर्म नहीं है। यह वे आॅफ लाइफ है। जीवन जीने का सबसे उत्तम तरीका यही है।

कोराना महामारी का उदय

2019 के अंत में चीन में एक वायरस फैला जो 2020 की पहली तिमाही में दुनिया को अपने चपेट में ले चुका था। तब दुनिया भर में राजनीतिक सत्ता में बैठे लोगों ने जनता को इससे बचाने के लिए मानव इतिहास में पहली बार सम्पूर्ण लाॅकडाउन लगाने का फैसला किया क्यूंकि यह वायरस संक्रमण से फैलता है। इस भयावह महामारी में जब विज्ञान और माॅडर्न मेडिसिन इसके वायरस के रंग रूप को समझ रहे थे और उसका निदान खोज रहे थे, तब दुनिया को भारत के आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति ने अपना साथ दिया। यह 5000 साल से भी अधिक प्राचीन चिकित्सा पद्धति भारतीय ऋषि और मुनियों द्वारा वनस्पति और पंचतत्वों के संतुलन से निर्मित किया गया है। यह कोई उपचार प्रणाली नहीं है। यह तो औषधि और दर्शन का समन्वय है। भारत में प्राचीन काल में यह विधि ही लोगों को चिरायु और स्वास्थ्य जीवन का आधार देती थी। यह प्रणाली किसी रोग या दोष का उपचार नहीं करती बल्कि यह उस वजह का समाधान करती है जिसके कारण यह दोष और रोग उत्पन्न होता है। आयुर्वेद चिकित्सा और जीवन पद्धति के बाल पर ही भारत के ऋषि और मुनि हजार वर्षों तक जीते और समाज का कल्याण करने के लिए ग्रंथों की रचना करते थे। आयुर्वेद प्रणाली मानव शरीर के साथ उसके मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर केंद्रित है। इसी पद्धति की कुछ विधाओं का प्रयोग कर भारत और विश्व जनमानस ने स्वयं को महामारी से बचाया।

प्रकृति से संतुलन का नाम है आयुर्वेद

इसमें कोई राय नहीं कि एलोपैथिक और अन्य पद्धतियों ने भी लोगों के जीवन की रक्षा की। लेकिन आयुर्वेद, जो जीवन शैली की शुद्धता पर आधारित है, जो निदान के साथ परहेज और सात्विक जीवन शैली पर जोर देता है, प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करके जीवन को बेहतर बनाने की बात करता है। यह बहुत सरल और सहज है। जियो और जीने दो। दो गज दूरी और भोजन से पहले हाँथ धोना, बाहर से घर आने पर स्नान करना, योग और प्राणायाम से शरीर और मन को ऊर्जावान बनाना, वनस्पति यानि हरी साग-सब्जी और मौसमी सब्जी का भोजन में ज्यादा उपयोग करना, पानी पीने का सही ढंग और बैठकर भोजन करना, यही सब होता है आयुर्वेद में।

आक्रांताओं ने इसे नष्ट किया

जब भारत गुलाम हुआ और आक्रांत यहाँ आए तो उन्होंने हमसे जो कुछ अच्छा था, वो छीन लिया और नष्ट कर दिया। हमारे वेद ज्ञान और विज्ञान को आधारहीन बनाया गया। लेकिन वे मूल्यवान और जीवन के आधार से जुड़े ग्रन्थों को नष्ट नहीं कर पाए। आजादी के पहले तक भारत भर में आयुर्वेद ही लोगों को बीमारी और रोग से बचाता था। पर नई राजनीतिक पद्धति और नए मन मस्तिष्क वाले हुक्मरानों ने अपनी पूंजी और ज्ञान को किनारे करके दुनिया में प्रभावी विज्ञान आधारित एलोपैथ को सराहा और आयुर्वेद को पिछड़ा और बेकार, धीरे फायदा पहुचने वाला पद्धति कहकर त्याग दिया।

विदेशों से आने लगे मरीज

यह विद्या सतह पर अदृश्य होती गई लेकिन भारत का एक ऐसा राज्य था जो इसे संजोये हुए था। उस राज्य का नाम लेने से पहले आयुर्वेद पद्धति के प्रभाव को समझने के लिए आप यह जानिए कि दुनिया क्या कहती है आयुर्वेद के लिए। केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री रैला ओड़ींगा, जो वहां राष्ट्रपति पद के लिए हुए 2019 में चुनाव भी लड़े थे, अपनी बेटी के आँखों के इलाज के लिए सारी दुनिया में भटके। कहीं कुछ निदान नहीं मिला। लेकिन रैला की बेटी रोजमेरी कहती है कि भारत के केरल राज्य में श्री धरियम आयुर्वेदिक नेत्र अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में आकर उनके आँखों की रोशनी वापस मिली। वो 2019 में यहाँ आई थी और अब कुछ हफ्तों बाद वो अपने फोन पर मैसेज पढ़ सकती हैं और खुश हैं कि वो भारत आई और यहाँ उनको वो मिला जो कही ंनहीं मिला। उनका परिवार श्री धरियम अस्पताल और उनकी चिकित्सा पद्धति से बहुत प्रसन्न है। वो चाहती हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में वो केन्या में जीते तो बाबा केयर स्वास्थ्य बीमा पाॅलिसी शुरू करेंगे जिसमें लोगों को कम लागत में कारगर दवा और इलाज दिया जाएगा।

केरल ने बचाया आयुर्वेद को

केरल भारत का वह राज्य है जिसने आयुर्वेद के मूल को बचाए रखा। यहाँ कोच्ची में कुथ्टटुकुलम का श्री धरियम नेत्र अस्पताल और अनुसंधान संस्थान के अलावा बहुत से क्लिनिक और अनेक सगंठन हैं जो आयुर्वेद पद्धति से आज भी लोगों का इलाज करते हैं। मुपरा केरल आयुर्वेद, पुणे में शास्त्रीय आयुर्वेदिक स्वास्थय सेवा, केरल की पंचकर्म पद्धति रोगों के उपचार और निदान में सबसे प्राचीन और नए तकनीकी प्रदाता है। केरल की एउर पद्धति में मुख्य रूप से पाँच कर्म थेरेपी से रोगी का इलाज किया जाता है। इस पद्धति में बास्ति, वामन और विरेचनम तीन तरह की पद्धति का उपयोग होता है। बारित थेरेपी के माध्यम से स्पाईन, हड्डी, मांसपेशियों संबंधी रोगों का निदान किया जाता है। जबकि वामन विधि में अस्थमा, माइग्रेन, साईनस आदि सांस जनित रोग और विरेचनम थेरेपी से मधुमेह, काॅलेस्टरल, स्किन और रक्त से जुड़ी अशुद्धि को दूर किया जाता है। यहाँ के पंचकर्म क्लिनिक में कलमठिया क्लिनिक और श्याम भार्गव क्लिनिक जैसे नाम है जो सस्ते दर पर बेहतरीन इलाज करते हैं। मुपरा केरल आयुर्वेद में अनेक तेलों और जड़ीबूटियों का उपयोग होता है जो यहीं केरल में ही निर्मित होते हैं। केरल में पंचकर्म और अन्य आयुर्वेद विधि में बी ए एम एस चिकित्सक और अनुभवी आयुर्वेद आचार्य लोगों का इलाज करते हैं। प्राचीन और नवीन विधि से बीमारी का इलाज और एक स्वस्थ जीवन शैली की ओर मानव समाज को अग्रसर करने की खूबी केवल आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली में ही है। तभी तो भारत सरकार ने कोविड 19 जैसी महामारी से निपटने के लिए समस्त जनता से सनातन जीवन शैली और आयुर्वेद की जीवन शैली को अपनाने का आह्वान किया। जनता को कोरोना से बचाने और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सात्विक भोजन और सरल जीवन अपनाने की अपील की गई। देश भर में आयुर्वेद से जुड़े केंद्रों में सरकार ने रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली और कोरोना को कमजोर करने वाली सुरक्षित दवाओं और प्रभावी उपायों के उपयोग पर जोर दिया गया।

जीवन की जटिलता ने महत्व बढ़ाया

आधुनिक युग में जीवन की जटिलता में उत्पन्न होने वाली भयावह समस्याओं और बीमारियों के निदान में आयुर्वेद का महत्व बढ़ रहा है। सार्वजनिक कल्याण के लिए भारत और विश्व के सामने एक ही पद्धति कारगर साबित होगी वो है आयुर्वेद, जो अनुभव और नवीन विज्ञान के प्रयोग से अधिकतर समस्या का समाधान बनी है और बनेगी।

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