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सरकारी अस्पतालों में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव नहीं पढ़ा पाएंगे ब्रांडेड दवाइयों का पाठ,बिहार सरकार का क्रांतिकारी फैसला

चिकित्सक के कक्ष में मेडिकल रिप्रेजेनटेटिव के पाए जाने पर होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई, चिकित्सकों को भी देना पड़ेगा जवाब

  • ब्रांडेड दवा लिखने पर देनी पड़ेगी सफाई
  • स्वस्थ भारत अभियान ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है

 

नई दिल्ली/ पटना/ आशुतोष कुमार सिंह
मेडिकल क्षेत्र के लिए बिहार से एक बहुत ही क्रांतिकारी खबर सामने आ रही है। बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव को चिकित्सकों से मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार का तर्क है इससे जेनरिक दवाइयों की मुहिम को नुक्सान हो रहा है। साथ ही मरीजों को दिए जाने वाले समय में भी बाधा उत्पन्न हो रही है।
27.07.2018 को  जारी किए गए संकल्प में सरकार की ओर से यह कहा गया है कि,  सरकार  के  संज्ञान  में यह बात लायी  गई है कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों, अस्पतालों में मरीजों के चिकित्सकीय परीक्षण में एवं उपचार के  दौरान तथा अन्य कार्याविधियों में भी विभिन्न औषधि निर्माताओं के प्रतिनिधि अस्पताल के ओपीडी एव आईपीडी में भ्रमण करते रहते हैं। इस दौरान उनके द्वरा अपनी दवा कंपनी की दवा की पैरवी की जाती है। फलतः न केवल सरकार की मुफ्त दवा नीति एवं जेनरिक  दवा प्रिसक्राइव  करने  के सिद्धांत को मूर्त रूप देने में कठिनाई उत्पन्न हो रही है अपितु मरीजों के ईलाज हेतु आवंटित समय का भी क्षय होता है।
किसने क्या कहा?
पीएमबीजेपी के सीइओ सचिन कुमार सिंह का कहना है कि, यह एक अच्छी पहल है।  इससे व्यवस्था में पारदर्शिता  आयेगी। सस्ती दवाइयों का मार्ग भी प्रशस्त होगा। साथ ही वे यह भी जोड़ते  हैं  कि  इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि चिकित्सकों को नई दवाइयों के बारे में खुद पढ़ना होगा क्योंकि बताने के लिए कोई एमआर नहीं होगा। पूरी तरह प्रतिबंध लगाने से अच्छा है कि एमआर के प्रवेश को रेगुलेट किया जाता।

न्यासी, स्वस्थ भारत

श्री सिंह की बातों को आगे बढ़ाते हुए स्वस्थ भारत अभियान के सह संयोजक धीप्रज्ञ द्विवेदी  का मानना है कि निश्चित रूप से यह एक क्रांतिकारी कदम है। लेकिन यहां देखना  भी जरूरी है कि एमआर एक मजबूत टूल है स्वास्थ्य व्यवस्था  का। वह चिकित्सकों को नई जानकारी उपलब्ध कराता है। आगे धीप्रज्ञ जी यह भी कहने से नहीं चुकते कि, यह भी सच है कि एमआर अपनी मूल काम को छोड़कर दवा बेचवाने का एक बड़ा टूल बनकर रह गए हैं। और शायद यही कारण है कि सरकार को उनकी उपस्थिति नागवार गुजर रही है। कुल मिलाकर सरकार के इस फैसले का हम स्वागत करते हैं।
देश के जाने-माने न्यूरो-सर्जन डॉ. मनीष कुमार कहते  हैं कि एक डॉक्टर को हमेशा नई जानकारियों से लैश रहना चाहिए। लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि उन्हें  नई जानकारी सिर्फ और सिर्फ एमआर से ही मिलेगी। उनका  कहना  है कि चिकित्सक मेडिकल फिल्ड में हो रहे बदलावों एवं नई खोजों को लेकर सचेत  रहते हैं। तमाम जर्नल्स हैं, जहां से सूचना गैदर की जाती है। डॉ. मनीष को लगता है कि सरकार का यह फैसला जनहित में है और इसकी तारीफ की जानी चाहिए।
बिहार के सुपौल जिला के सिविल सर्जन शिवचन्द्र झा ने कहा कि इस बावत हमलोगों के पास अभी कोई पत्र नहीं पहुंचा है। पत्र पहुंचने के बाद ही कुछ कह पाएंगे।
एमआर का पक्ष
राजस्थान में एक बड़ी कंपनी में एमआर का काम कर रहे शिवकरण मील मानते है कि अगर जेनरिक दवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने यह फैसला  लिया है तो  स्वागत योग्य है। साथ ही उनका यह भी सवाल है कि  क्या सरकार सरकारी क्वार्टर में निजी प्रैक्टिस कर रहे सरकारी अस्पतालों  के चिकित्सकों की प्रैक्टिस पर भी रोक लगाएगी। राजस्थान का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि यहां पर एमआर सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों से मिलने जाते भी नहीं हैं और न ही उन चिकित्सकों  से मिलते हैं जो एनपीए लेते हैं। शिवकरण मील कहते हैं कि एक एमआर सिर्फ दवा लिखवाने नहीं जाता है बल्कि वह मेडिकल रिसर्च से  संबंधित जानकारिया देने और चिकित्सकों का फीडबैक लेने भी जाता है।  ऐसे में किसी भी मेडिकल रिसर्च में चिकित्सक का फीडबैक बहुत  अहम होता है।
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री व्यस्त हैं
इस बावत स्वस्थ भारत डॉट इन ने जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से बातचीत करने की कोशिश की गई लेकिन वे  फोन लाइन पर नहीं आए। उनके यहां से बताया गया  कि वे बैठक में  हैं। समाचार लिखे जाने तक  मोबाइल पर भेजे एसएमएस का जवाब 20 घंटे बीत जाने के बाद भी वे नहीं  दे पाए थे। उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो उसे हम आपतक जरूर पहुंचाएंगे।
पहले भी सरकार कर चुकी है पहल
गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभागीय संकल्प ज्ञापांक 72 (प्र.क.) दिनांक 19.01.2007, राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के पत्रांक 3025  दिनांक 16.04.2014 एवं स्वास्थ्य विभागीय पत्रांक 582(12) दिनांक 20.06.17 में जेनरिक  दवा प्रिसक्राइव  करने का अनुदेश दिया गया है। इसी प्रकार स्वास्थ्य विभागीय पत्रांक 594 (12) दिनांक 18.09.2014 द्वारा आवश्यक दवाओं की सूची (ईडीएल) में निहित औषधियों प्रिसक्राइव करने का निदेश दिया गया है। ऐसी स्थिति में बिना पर्याप्त कारणों के सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों द्वारा ब्रांडेड अथवा पेटेंट दवाइयां मरीजों को प्रिसक्राइव करना उक्त प्रासंगिक अनुदेशों का स्पष्ट उलंघन है। इस संदर्भ में  सरकार के निर्णय को निम्न बिन्दुओं से समझा  जा  सकता है।
सरकारी संकल्प की मुख्य बातें
1- सरकारी अस्पतालों को जेनरिक दवा लिखने का आदेश–  सभी सरकारी अस्पतालों में जरुरी दवा सूची की दवाइयां ही प्रिसक्राइव की जाए। सरकार की यह नीति है कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा जेनरिक दवा ही प्रिसक्राइव किया जाए। यदि किसी परिस्थिति अथवा अपवाद के रूप में ब्राडेंड या पेटेंट दवाएं प्रिसक्राइव करने की आवश्यकता होती है तो संबंधित चिकित्सक द्वारा प्रिसक्रिप्सन में इसके औचित्य को स्पष्ट रूप से अंकित किया जाए।
2- निजी दवा कंपनी के एमआर सरकारी अस्पतालों में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं- ऐसे दृष्टांत पाए जा रहे हैं कि चिकित्सक गण एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मी के द्वारा निजी औषधि निर्माण संस्थाओं या दवा कंपनियों के अधिकृत प्रतिनिधियों (एमआर) के व्यापारिक गतिविधियों के उद्देश्यों से सरकारी अस्पताल में उनके आवागमन को प्रश्रय दिया जाता है। उनके इस प्रकार के कृत्य से सरकार की मुफ्त दवा नीति एवं जेनरिक दवा प्रिसक्राइव करने के सिद्धांत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अतः औषधि निर्माण संस्थानों या दवा कंपनियों के अधिकृत प्रतिनिधियों के व्यापारिक गतिविधियों के प्रोत्साहन या पैरवी के प्रयोजनार्थ सभी प्रकार के सरकारी अस्पतालों में उनका प्रवेश निशिद्ध रहेगा। यदि औषधि निर्माण संस्थान या दवा कंपनियों के प्रतिनिधि किसी भी चिकित्सक या अन्य कर्मी के पास अथवा उनके कक्ष में उपर्युक्त वर्णित प्रयोजन के  संबंध में उपस्थित पाए  जाएंगे तो वैसे चिकित्सकों या कर्मियों के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की  जायेगी।
3- इन नियमों का मजबूति से पालन करना होगा- उक्त निदेशों का अनुपालन सुनिश्चित कराने का दायित्व संबंधित सरकारी अस्पतालों या स्वास्थ्य संस्थानों के अधीक्षक/उपाधीक्षक या प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी एवं अस्पताल प्रबंधक की होगी। जनहित में उपर्युक्त निदेशों का अक्षरशः अनुपालन तत्परता एवं दृढ़ता से सुनिश्चित किया जाए।
4- डिस्ट्रिक ड्रग एवं थेरिप्यूटिक कमेटी (डीडीटीसी) का गठन- जिला  स्तर पर उक्त निदेशों के अनुपालन  की नियमित समीक्षा एवं मूल्यांकन तथा  यथा आवश्यक कार्रवाई करने हेतु डिस्ट्रीिक ड्रग एंड थेरिप्यूटिक कमेटी (डीडीटीसी) गठित करने की प्रक्रिया राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार के  स्तर से की जा रही है। इसके  अतिरिक्त सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में बाह्य श्रोत से प्रिस्किप्सन ऑडिट का कार्य भी कराया जायेगा।
बिहार राजपत्र के असाधारण अंक में प्रकाशित  करने का आदेश
इस संकल्प में सरकार ने  आदेश दिया है कि इस संकल्प को  बिहार राजपत्र के असाधारण अंक में प्रकाशित किया जाए और इसकी प्रति सभी संबंधितों को दी जाए।
 
 

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