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विज्ञान और तकनीक / Sci and Tech

भूस्खलन के सटीक पूर्वानुमान के लिए नया एलगोरिद्म विकसित

नयी दिल्ली। भारतीय शोधकर्ताओं ने कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग का उपयोग करके नया एलगोरिद्म विकसित किया है, जिससे भूस्खलन के पूर्वानुमान को अधिक सटीक बनाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके उपयोग से भूस्खलन संवेदी मैपिंग में उपयोग होने वाले डेटा के असंतुलन की चुनौतियों से निपटा जा सकता है और पूर्वानुमान में सुधार किया जा सकता है।

चार साल के आँकड़ों से स्टडी

यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), मंडी के स्कूल ऑफ सिविल ऐंड एंवायरमेंटल इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डेरिक्सपी.शुक्ला और तेलअबीब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. शरद कुमार गुप्ता द्वारा किया गया है। इसमें उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र के मंदाकिनी नदी बेसिन में वर्ष 2004 से 2017 के बीच हुए भूस्खलन के आँकड़ों का उपयोग मशीन लर्निंग मॉडल के प्रशिक्षण एवं पुष्टि के लिये किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका लैंडस्लाइड में प्रकाशित किया गया है।

डेटा असंतुलन से पूर्वानुमान प्रभावित

डॉ. शुक्ला बताते हैं कि किसी गैर-भूस्खलन क्षेत्र की तुलना में भूस्खलन वाले क्षेत्रों के प्वाइंट्स में अंतर होता है। जब इस डेटा को मशीन लर्निंग तकनीकों में उपयोग किया जाता है, तो उसमें असंतुलन देखने को मिलता है, और इस कारण पूर्वानुमान प्रभावित होता है। जिस तरफ डेटा अधिक होता है, उस ओर मॉडल का झुकाव होने लगता है। यदि डेटा में असुंतलन होता है, तो भूस्खलन पूर्वानुमान संबंधी सटीक परिणाम नहीं मिल पाते। इस समस्या को देखते हुए हमने डेटासेट में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, ताकि सटीक परिणाम प्राप्त किये जा सकें।

पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार

वे कहते हैं, “डेटासेट में संतुलन स्थापित करने पर भूस्खलन पूर्वानुमान में 20 प्रतिशत सुधार हुआ है, और पूर्वानुमान की सटीकता 72 प्रतिशत से बढ़कर 92 प्रतिशत हो गई है। मशीन लर्निंग और डेटा साइंस आधारित अन्य अनुप्रयोगों में भी इस तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। इसका उपयोग हिमस्खलन, बाढ़ अथवा तुषार-भूमि या पर्माफ़्रोस्ट जैसे अन्य डेटासेट्स पर आधारित मैपिंग और संवेदनशील क्षेत्रों के निर्धारण में हो सकता है। इसके उपयोग से सटीक नक्शे तैयार किये जा सकते हैं, जिससे पता चल सकता है कि कौन-से क्षेत्र अधिक जोखिम वाले हैं। नीति-निर्धारकों को भी इन नक्शों के उपयोग से प्रभावी नीतियों के निर्माण में मदद मिल सकती है, जिससे जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है।”

इंडिया साइंस वायर से साभार

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