नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मिशन)। महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला प्रशासन यूनीसेफ की मदद से एक मौन क्रांति ला रहा है, जहां वे मासिक धर्म के समय लड़कियों और महिलाओं को कुर्माघर या मासिक धर्म झोंपड़ी में भेजने की क्रूर प्रथा का क्रमशः उन्मूलन कर रहा है। स्थानीय गौंड और मादिया जनजातियों की किशोरियों और महिलाओं की पीड़ा को दूर करने के उद्देश्य से समाज की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए प्रशासन पूरी प्रतिबद्धता से कार्य कर रहा है।
सैनेटरी कचरे का निपटान
सैनेटरी कचरे का निपटान एक बड़ी समस्या है क्योंकि डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन्स में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक बायोडिग्रेडेबल नहीं है और यह स्वास्थ तथा पर्यावरण को नुकासन पहुंचा रहा है। ठोस कचरा रणनीति के तहत जरूरी है कि राज्य संगठित तौर पर कचरे को एकत्रित करने, उसका निपटान करने और ऐसे कचरे का परिवहन करने का काम करें ताकि हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित कर सकें।
अब की नई व्यवस्था
अब कुर्माघरों के स्थान पर महिला विश्व केंद्र या महिला विश्राम केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जो महिलाओं के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद स्थान हैं। इन केंद्रों में शौचालय, स्नानगृह, हाथ धोने का स्थान जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ ही साबुन, पानी और खाना बनाने की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इन केंद्रों में रहने के दौरान महिलाएं दिलचस्पी की गतिविधियों में शामिल होकर अपने शौक पूरे कर सकती हैं। इन केंद्रों में पुस्तकालय, सिलाई की मशीनें और किचन गार्डन जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
23 केंद्र स्थापित
शुरुआत में जिला योजना विकास समिति और बाद में महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत विशेष केंद्रीय सहायता फंड और पेसा (PESA) के साथ-साथ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UMED-MSRLM) के स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के योगदान से 23 ऐसे केंद्र स्थापित किए गए। आगामी दो वर्षों में जिला प्रशासन अपनी इस पहल में वृद्धि कर 400 से ज्यादा ऐसे केंद्र स्थापित करना चाहता है।