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अंग और देह दान भारत की सदियों पुरानी परंपरा

स्वास्थ्य मंत्रालय दधीचि देह-अंगदान के राष्ट्रीय अभियान में बनेगी भागीदार
22 राज्यों के 42 एनजीओ ने अंग दान के राष्ट्रीय अभियान में सहभागिता के लिए हाथ बढ़ाया

महिमा सिंह

देह दान, अंग दान का विचार और संकल्पना कोई नयी नहीं है। भारत जैसे देश में यह सदियों से रही है और कारगर रही है पर आधुनिकता का जामा पहने भारतीय समाज अपनी परंपरा और दान नीति से कब कोसों दूर चला गया, यह स्वयं इसे भी आभास नहीं है। देहदान के सबसे बड़े प्रणेता थे महाऋषि दधीचि। यह कहानी और दान गाथा तो हर भारतीय को पता ही होगी, नहीं है तब आप को बता देते हैं-
भगवान शिव के भक्त दधीचि महाज्ञानी, वेद शास्त्र के ज्ञानी और परोपकारी व उतने ही दयालु थे। शिव भक्ति के कारण उनमें लेस मात्र भी अंहकार नहीं था। एक बार लोकहित में दधीचि ने भयंकर तपस्या की। इस तप के कारण तीनों लोक आनंदित हो उठे पर स्वर्ग के राजा इन्द्र को भय ने ग्रसित कर लिया। उन्हें लगा यह तपस्या स्वर्ग लोग को पाने के लिए दधीचि कर रहे हैं। इसलिए अपनी कुटिलता का प्रयोग कर तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव और अप्सरा को उनके पास भेजा लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर देवराज ने उनकी हत्या की योजना बनाई। सेना लेकर दधीचि के आश्रम पहुंचे लेकिन ऋषि के तप के सामने सब कुछ फीका पड़ गया। दूसरी ओर वृत्रा सुर ने स्वर्ग लोक को अपने अधिकार में ले लिया। तब इन्द्र और उनके देवगण यहाँ वहाँ भटकने को बेबस हो गए। सभी ब्रह्मा के पास गए। उन्होंने बताया कि इस असुर का अंत केवल दधीचि की अस्थियों से संभव है इसलिए ऋषि से उनकी अस्थियों को मांगों और अस्त्र बनाओ और असुर को हराओ। यह सुनकर इंद्रदेव बड़े लज्जित हुए जिसके मृत्यु के लिए इतने षड्यन्त्र रचे, उसकी हड्डी किस मुँह से मांगने जाएं
मरता क्या ना करता। ग्लानि मुख पर लेकर इंद्रदेव दधीचि के आश्रम पहुंचे और बोले-तीनों लोकों के कल्याण के लिए आपकी आस्तियों की आवश्यकता है। ऋषि बोले-राजन लोकहित के लिए ही मैने अपना जीवन दिया है, यह शरीर भी देता हूँ। यह सुनकर इंद्रदेव को आश्चर्य हुआ और वो धन्य भाव से ऋषि को नमन करने लगे। ऋषि ने योग विद्या से देह का त्याग कर दिया। उनकी ही अस्थियों से बने वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर का अंत किया। दधीचि ने तीनों लोकों के कल्याण के लिए अपने शरीर का त्याग किया और महान दान परंपरा की नीव रखी। मानव का शरीर मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाता है। जलने से, गाड़ने स जो भी विधि हो अंतिम कर्म की।
इसी देह दान परम्परा को जीवंत करके असमय काल के ग्राल में जाने वाले लोगों को बचाने का बीड़ा उठाया 1997 में दधीचि देह दान समिति ने। 1997 में देहदानियों के उत्सव के अवसर पर इस समिति की नींव पड़ी थी जब भारत रत्न नाना जी देशमुख ने अपनी मृत्यु के बाद देहदान की पहली प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किया था। यह समिति देह-अंग दान के बारे में जनजागरूकता फैलाने का काम करती है। यह किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद देह-अंग दान की प्रतिज्ञा के लिए उनके परिवार को प्रेरित करती है। देह दाता की मृत्यु के बाद परिवार को इस समिति को एक फोन करना होता है। इसके आगे यह समिति समन्वय करती है। सभी दान केवल सरकारी संस्थान को दिए जाते है। समिति को अपने उल्लेखनीय कदम और सहयोग के लिए 2019 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ एनजीओ के रूप में चुना गया। यह अभी केवल दिल्ली-एनसीआर में ही कार्य करती है और बिना किसी वेतन के लगभग 300 स्वयं सेवकों के स्वैच्छिक और मुफ़्त योगदान से चलती है।
3 और 4 सितंबर को इस दधीचि देह दान समिति ने अपना 25 वां सालगिरह मनाया. जिसका आयोजन भव्य रूप से हुआ और देश के 22 राज्यों और 42 एनजीओ प्रतिनिधियों ने और 20 से अधिक प्रोफेशनल संस्थानों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम में देश भर के 40 से अधिक स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर अंग दान के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। जनता के मध्य अंग दान से जुड़ी जो भी भ्रांतियाँ हैं, उन्हें मिटाने के लिए यह अभियान 22 राज्यों में इन 42 एनजीओ के नेतृत्व में चलाया जाएगा। इस महा अभियान का लक्ष्य है जरुरतमंद परिवार और लोगों को सही समय पर अंग उपलब्ध हो जाए जिससे उनका जीवन बच सके और वो भी सामान्य जीवन जी सकें।
समिति के सालगिरह पर स्वस्थ सबल भारत सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि स्वस्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने किया। उन्होंने भी देह-अंग दान के विषय में जागरूकता की कमी पर अपनी बात सबके सामने रखी। साथ ही बेहतर माहौल बनाने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि वो इस विषय में पीएमओ से बातचीत करेंगे ताकि इस अहम मुद्दे को प्राथमिक सूची का हिस्सा बनाया जा सके। सालगिरह के अवसर पर समिति के मुखिया को उन्होंने बधाई देते हुए उनके अथक और जागरूक प्रयास की सराहना भी की। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि दधीचि समिति अपनी उपलब्धियों और सार्थकता को सिद्ध कर चुकी है। अब इस मामले में राष्ट्रीय अभियान की मांग एकदम उचित है जिसमें सभी हितधारकों को अपनी सम्पूर्ण ताकत लगा देनी चाहिए।
इस मौके पर अनेक गणमान्य और बुद्धिशील लोग उपस्थित रहे। केन्द्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया, सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया, विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी, डॉ हर्षवर्धन, संसद सदस्य सुशील मोदी, साध्वी भगवती सरस्वती (परमार्थ निकेतन), राज्य स्वास्थ्य कल्याण मंत्री भारती प्रवीण पँवर, (अध्यक्ष दधीचि) हर्ष मल्होत्रा, स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण, आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेचा, दिल्ली सरकार (स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्री) सचिव अमित सिंगला, (वाइस चांसलर गुजरात यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रांसप्लांटेशन) प्रोफेसर डॉ प्रांजल मोदी, अतुल गोयल (स्वास्थ्य निदेशालय के महानिदेशक), स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय के अपर सचिव मनोहर अगनानी, डॉ रजनीश सहाय (नेशनल अंग एवं उत्तक प्रत्यारोपण) आदि ने अपने विचार रखे और समस्या और चुनौतियों पर चर्चा की। इस अवसर पर दधीचि समिति ने अंग दान पर ‘स्वस्थ सबल भारत अभियान का ऐलान किया।
आपको बता दें यह कार्यक्रम दिल्ली के एन डी एम सी कन्वेन्शन सेंटर में आयोजित किया गया था जहां पर सीनियर वकील और संरक्षक आलोक कुमार ने दधीचि के इस अभियान की काफी प्रशंसा की।
दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि हमारे देश में प्रार्थना के समय अक्सर कहा जाता है सर्वे भवन्ती सुखिना, सर्वे संतु निरामया जिसका अर्थ है सभी सुखी रहें और सभी निरोगी रहें। आज देश के सभी हिस्सों से अंग दान के लिए काम करने वाले और अंगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले संगठन यहाँ मौजूद हैं। यह स्वस्थ और सशक्त भारत के निर्माण की दिशा में हमारा एक अहम कदम है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों की यहाँ उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि इस अभियान को अंगदान के लिए कम करने वाले सभी संगठनों को एवं अन्य सभी संस्थानों का पूरा समर्थन प्राप्त होगा।
समिति के अध्यक्ष हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि सबसे बड़ी आबादी में से एक होने के बाद भी अंग दान के मामले में भारत अन्य विकाशशील देशों से काफी पीछे हैं। इसके पीछे मुख्य वजह जन जागरूकता की कमी है जैसा c voters सर्वे से पता चलता है। यह पूर्वाग्रह और अंधविश्वास नहीं है, जो नागरिकों को अंग दान को एक विकल्प के रूप में मानने से रोकता है। यह इस मुद्दे पर विश्वसनीय जानकारी और सही ज्ञान की कमी है। सर्वे से यह ज्ञात हुआ कि 85 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने साफ किया कि वो गुर्दे, लिवर और हृदय और फेफड़े आँखों जैसे अंगों को दान के बारे में नहीं जानते थे। दधीचि समिति के अध्यक्ष ने कहा कि सभी हितधारकों, एनजीओ, सरकार और सबंधित संगठनों और व्यक्तियों को एक साथ मिलकर अंग दान के प्रति देश भर में जागरूकता फैलाने की तत्काल आवश्यकता है जिससे कई अनमोल जिंदगियों को बचा कर जीवन का वरदान दिया जा सकेगा।
स्वस्थ सबल भारत सम्मेलन में स्वास्थ्य जगत के महत्वपूर्ण हितधारकों, एनजीओ और अन्य सहयोगी संगठनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसमें विशेषतः मोहन फाउंडेशन, ऑर्गन इंडिया, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, नोट्टो, ORBO,  national eye bank, amma netra organ & body donation pramotors organization, federation of organ and body donation, eye bank association of india शामिल हुआ। प्रथम दिन नटटो यानि राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यरोपन संगठन ने भारत में अंग दान पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी। नटटो के अनुसार 2020 में भारत में ब्रैन डेड डोनर्स की संख्या में तेजी से गिरावट आई। 2019 में ब्रेन डेड डोनर की संख्या 715 थी जो 2020 में घटकर केवल 315 रह गई जबकि 2021 में 552 पंजीकरण के साथ इसमें सुधार देखने को मिला। नटटो की सबसे बड़ी चिंता इस मामले में यह है कि अंग दान की दर में धीमी गति से बदलाव हो रहा है। 2013 में यह 0.27 था और आठ साल बाद इसमें केवल मामूली बढ़त हुई यानि 2021 में ODR 0.4 हुआ। दधीचि द्वारा स्वस्थ सबल भारत की शुरुआत करने का मूल कारण ODR में वृद्धि करना है।
देश के 22 राज्यों से जुटे एनजीओ के लिए आयोजित विचार मंथन सत्र में एडवोकेट आलोक कुमार ने सांसद मनसुख मंडाविया को कई व्यवहारिक सुझाव दिए। एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी के बिना अंग दान अभियान सफल होना मुश्किल है। इसमें सरकार को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। इसलिए इस क्षेत्र में कार्यरत देश भर के 40 से अधिक एनजीओ के विचार विमर्श के बाद हमने सरकार के लिए सुझाव की सूची तैयार की है। हमें उम्मीद है कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली यह सरकार इस दिशा में सार्थक काम करेगी।

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