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सफेद झींगा पालन को बढ़ावा देने के लिए विकसित उपकरण को मिला पेटेंट

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। वैज्ञानिकों ने एक सुविधाजनक उपकरण विकसित किया है। यह एक जलीय कृषि रोगाणु का पता लगाता है, जिसे व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (WSSV) के रूप में जाना जाता है। आगरकर अनुसंधान संस्थान (ARI) के वैज्ञानिकों की ओर से पेप्टाइड-आधारित नैदानिक उपकरण को वैकल्पिक जैव पहचान तत्व के रूप में पिछले महीने पेटेंट दिया गया है।

सफेद झींगा को संक्रमण से बचायेगा

WSSV द्वारा झींगे (प्रशांत महासागरीय सफेद झींगा) को संक्रमित किए जाने के चलते इसका भारी नुकसान होता है। यह उच्च मान का सुपर-फूड, वायरल और बैक्टीरियल रोगाणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अतिसंवेदनशील है और इसके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक है। बेहतर पोषण, प्रोबायोटिक, रोग प्रतिरोधक क्षमता, जल, बीज व चारे का गुणवत्ता नियंत्रण, प्रतिरक्षा-प्रेरक पदार्थ और सस्ते टीके उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस क्षेत्र में रोगाणुओं का जल्द और तेजी से पता लगाने वाली तकनीकों से मछली और शेल-फिश पालन में सहायता मिलेगी। इससे देश को विशिष्ट निर्यात राजस्व की प्राप्ति होती है। अमेरिका को झींगे का निर्यात करने वाले देशों में भारत एक अग्रणी आपूर्तिकर्ता है।

शोध का हुआ प्रकाशन

डॉ. ज्युतिका राजवाड़े ने कहा-हमारा डेटा परीक्षण उच्च विशिष्टता (100 फीसदी) व संवेदनशीलता (96.77 फीसदी), हेमोलिम्फ से प्रारंभिक पहचान, केवल 20 मिनट के परिणाम के साथ अत्यधिक प्रतिलिपि प्रस्तुत करने योग्य परिणाम को इंगित करता है। इन अन्वेषकों ने शोध को एप्लाइड माइक्रोबायोलॉॉजी एंड बायोटेक्नोलॉजी और जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर मॉडलिंग में प्रकाशित किया है। एआरआई पीएचडी की छात्रा स्नेहल जमालपुरे-लक्का ने इस विचार को नेशनल बायो-एंटरप्रेन्योरशिप कॉन्क्लेव (एनबीईसी)-2021 में प्रस्तुत किया और उन्हें इसके लिए सम्मानित किया गया। वे इस काम को व्यावसायीकरण के लिए आगे बढ़ाएंगी।

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