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वायरस संक्रमण के बढ़ते प्रभाव से बचाव

कृष्णा नारायण

विश्व की परेशानी समझ में आती है परंतु संपूर्ण विश्व को स्वास्थ्य का मूल मंत्र देने वाला देश भारत भी आज स्वयं के यहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य को लेकर पेशोपेश में है, भय में है। यह स्थिति की गंभीरता का द्योतक है। कोरोना वायरस का बढ़ता संक्रमण चिंता का विषय है।
भारत युवाओं का देश है, यह आज हम नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देश कह रहे हैं। क्या कारण है कि आज यही युवा वर्ग, जो विश्व में सकारात्मक बदलाव ला सकता है, रोग से ग्रसित होने के भय में है? क्या किया जाए कि इन्हें इस भय से मुक्ति मिले और इन्हे स्वयं की शक्ति का भरोसा हो? इन्हें इनका बल मिले।
हम सब जानते हैं कि जब तक सिर्फ रोग से मुक्ति की बात करेंगे, इसका कोई समाधान नहीं निकल कर आएगा। हमारा Approach & Reductionist approach नहीं बल्कि HOLISTIC Approach हो। खंड-खंड में नहीं बल्कि समेकित बात हो। ऐसे उपाय किये जाएं जहाँ रोग की दशा ही न आने पाए। रोग से पूर्व उसकी जो मनोदशा है, उसकी जो भाव दशा है, उसकी जो शारीरिक दशा है, उनको संतुलित और समग्र रखा जाये। रोग नहीं स्वास्थ्य की बात हो। स्वास्थ्य, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ‘स्व’ में अवस्थित हो जाये।
’स्वस्मिन स्थियते अनेन इति स्वस्थ: ’
इससे बचाव का सटीक तरीका हमारे पास है-
(कोई एक सूत्रीय फार्मूला नहीं बल्कि Macro और Micro स्तर पर कार्य किये जाने की जरूरत है।)

LIFE STYLE CHANGE : समुचित खान-पान, योग, चिकित्सा

युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
-भगवद्गीता
योग सारे दुखों को दूर कर सकता है, लेकिन कब ?
ठीक समय पर जब भोजन किया जाये, ठीक समय पर विचरण किया जाये, अपने अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक किया जाये, सही समय पर सोया जाये और सही समय पर जगा जाये।

ऐसा आचरण करने पर योग ऐसी मनःस्थिति बनाता है जिसमें व्यक्ति हमेशा प्रसन्न रहता है, सम भाव में रहता है, इन्द्रियों और कामनाओं का ‘दमन’ नहीं अपितु ‘शमन’ करता है। ऐसा योग, रोग की दशा ही नहीं आने देता है।
मन का शरीर के साथ, मन का इंद्रियों के साथ, मन का बुद्धि के साथ, और मन का आत्मा के साथ, जब संयोग होता है तब तीनों स्तर में एकात्म स्थापित होता है। शारीरिक, मानसिक ( मन-बुद्धि) और आध्यात्मिक (आत्मा) जब तक तीनों स्तर पर कार्य नहीं किया जायेगा, इसका निदान असंभव है।

समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रिय:।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते।।
-सुश्रुत
त्रिदोष-वात, पित्त और कफ, अग्नि (जठराग्नि, वैश्वानर), सप्त धातु, सम अवस्था में रहते हैं, मल मूत्रादि की क्रिया ठीक होती है और आत्मा, इन्द्रिय और मन प्रसन्न रहते हैं, वह मनुष्य स्वस्थ्य है। हम क्या, कब, कहाँ और कैसे खा और पी रहे हैं रहे हैं, इन सबका हमारे जठराग्नि पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता है।
हमारा खान पान सूर्य के साथ लय में होने चाहिए। इस मौसम में गुड़ का सेवन करना चाहिए। पित्त विकार से पीड़ित हरड़ के साथ गुड़ का सेवन करें। कफ विकार से पीड़ित अदरक के साथ गुड़ का सेवन करें। वात विकार से पीड़ित सोंठ के साथ गुड़ का सेवन करें।

चावल, दही, कढ़ी, राजमा, उड़द, केला, अमरुद, बैंगन आदि का सेवन कम से कम करें। बादाम गिरी, अखरोट का नित्य सेवन करें। दूध में स्वाद के अनुसार हल्दी या बड़ी इलाइची (काली इलाइची, मोटी इलाइची) डालकर ही लें। स्नान करने से पूर्व शरीर में सरसों या तिल के तेल की मालिश करें। स्नान करने के बाद साफ तौलिये को पूरे शरीर पर ऊपर से नीचे और पुनः नीचे से ऊपर घुमाते हुए साफ करें। ऐसा करने से शरीर की मांशपेशियों में रक्त का प्रवाह संतुलित हो जायेगा।

यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे
जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड अर्थात शरीर में है।
स्वयं के साथ साथ प्रकृति के साथ एकात्म स्थापित किये जाने की जरूरत है। अंतस और बाह्य के बीच लय स्थापित किये जाने की जरूरत है।
छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार हम पृथ्वी पर वास करने वाले ही अंतरिक्ष की गतिविधियों से प्रभावित नहीं होते वरन हम भी उन्हें प्रभावित करते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि यदि हम विकास के नाम पर हर स्तर पर प्रदूषण फैलाएंगे तो बदले में निदान कहाँ से पाएंगे।
अभी अच्छी बात यह है कि अब शनै: शनै: सूर्य के ताप में वृद्धि होगी और इसकी पोषक क्षमता बढ़ेगी। तो हम सब अपनी चर्या में यथासंभव बदलाव लाने की शुरुआत करें, अपने खान पान की आदतों में सुधर लाएं, सोने और जागने के समय को व्यवस्थित करते हुए सूर्य के साथ लयबद्ध होकर एकात्म स्थापित कर लें। ऐसा करते ही कोरोना तो कोरोना अन्य कोई भी वायरस हमसे सात कोस दूर ही रहेगा।
ग्रहों के संचार के अनुसार, अभी आने वाले सप्ताह में, वैश्विक स्तर पर मौसम का मिजाज तेजी से बदलेगा। दिन और रात का तापमान काफी सिनबजनंजपदह होगा। इसी प्रकार जनवरी माह में भी कमोवेश यही स्थिति बनी रहेगी। वर्ष 2023 में 2022 के मुकाबले कम बारिश और अधिक गर्मी का प्रकोप रहेगा। 2023 के उत्तरार्ध में प्रकृति अस्थिर होगी। प्रकृति का अस्थिर होना, तापमान में तेजी से उतार चढ़ाव होना, कम बारिश का होना और प्रचंड गर्मी का होना-ये सब मिलकर फिलहाल वायरस के प्रकोप से मुक्त होने की स्थिति नहीं बना रहे हैं। वायरस, बैक्टीरिया जनित रोग बढ़ेंगे।

हम सब इस मंत्र के गूढ़ार्थ को समझते हुए इसका नियमित जाप करें।
ॐ द्यौर : शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
धुलोक, अंतरिक्ष, पृथ्वी, वनस्पति, औषधि हर जगह जो शांति है वही शांति मुझे भी मिले।

यह शांति हमें मिल गयी या नहीं इसको जांचने का बड़ा ही आसान और सरल तरीका है-सुबह उठते ही यदि हमने अपने आपसे पूछा कि आज कितना जोश है, आज काम करने के प्रति हम कितने उत्साहित हैं और अंदर से आवाज़ आये कि जोश तो कल से भी ज्यादा है और कल के वनिस्पत दुगुना उत्साह है तो समझिये सब कुछ सम भाव में है, प्रसन्न अवस्था में है और इसके विपरीत जवाब आया तो मतलब सब कुछ सही नहीं है।

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