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रिपोर्ट : 45 फीसद डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन में अधूरी जानकारी

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की एक रिपोर्ट हेल्थ सेक्टर में बवाल मचा रही है। उसकी रिपोर्ट है कि तकरीबन 45 फीसदी डॉक्टर ऐसा परचा लिख रहे हैं जो समझ में नहीं आ रहा है यानी डॉक्टर आधा-अधूरा परचा लिख रहे हैं। साथ ही 9.8 प्रतिशत डॉक्टर्स के परचे ही गलत हैं। तेरह अस्पतालों के सर्वे से इसका खुलासा हुआ है।

4838 परचों की जांच से लगा पता

ICMR ने करीब 13 सरकारी अस्पतालों का सर्वे किया है। इनमें दिल्ली एम्स, ग्रेटर नोएडा का सरकारी मेडिकल कॉलेज, भोपाल एम्स, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुंबई जीएसएमसी, सफदरजंग अस्पताल, सीएमसी वेल्लोर, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGIMS) पटना और पीजीआई चंडीगढ़ शामिल हैं। इन अस्पतालों में से करीब 7800 मरीजों के पर्चे लिए गए और 4,838 की जांच की गई। इनमें से 2,171 पर्चों में कमियां मिलीं। हैरानी की बात यह है कि 475 यानी 9.8 प्रतिशत डॉक्टर्स के प्रिस्क्रिप्शन पूरी तरह से गलत पाए गए। यह पर्चे उन डॉक्टर्स के हैं जिन्हें बतौर डॉक्टर के रूप में प्रैक्टिस करते हुए 4 से 18 साल का अनुभव हो गया है।

2019 से शुरू हुई पड़ताल

रिपोर्ट के मुताबिक यह पड़ताल 2019 से ही शुरू हो गई थी। इसके लिए ICMR ने दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को लेकर एक टास्क फोर्स बनाई थी। इस टास्क फोर्स ने अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच 13 अस्पतालों की OPD में सर्वे किया। इन अस्पतालों में 7800 मरीजों के पर्चे में से 55.1 फीसद नियमों के अनुसार पाए गए। लेकिन 9.8 प्रतिशत पर्चे पूरी तरह से गलत मिले।

इन रोगियों के प्रिस्क्रिप्शन सबसे ज्यादा गलत

इस सर्वे में यह भी सामने आया कि पैंटोप्राजोल, रेबेप्राजोल-डोमपेरिडोन और एंजाइम दवाएं सबसे ज्यादा मरीजों को लेने की सुझाव दिया गया। इसके साथ ही ऊपरी श्वास नली संक्रमण (URTI) और उच्च रक्तचाप के रोगियों के प्रिस्क्रिप्शन सबसे ज्यादा गलत पाए गए। WHO के अनुसार दुनियाभर में 50 फीसद दवाएं गलत तरीके से मरीजों को दिए जाने का अनुमान है। उसने 1985 में परचों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की गाइडलाइन्स जारी की है।

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