नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। प्रदूषण के चलते यमुना नदी का पानी अब जानलेवा हो गया है। केंद्रीय जल आयोग की जो रिपोर्ट आयी है वह डराने वाली है। पीना-नहाना कौन कहे, सिंचाई के लायक भी इसे नहीं माना गया है। आयोग की स्टेटस ऑफ ट्रेस एंड टॉक्सिक मेटल्स इन इंडियन रिवर्स रिपोर्ट बताती है कि यमुना में क्रोमियम, निकिल, लेड, आयरन जैसी भारी धातुएं मानक से ज्यादा हैं। यह लोगों को ह्रदय, किडनी और कैंसर जैसी बीमारियों की सौगात दे रही हैं।
आगरा-मथुरा में गुणवत्ता खराब
आयोग की वेबसाइट पर जारी रिपोर्ट के अनुसार आगरा में पोइया घाट के साथ दो जगह और मथुरा में एक जगह पर यमुना के पानी के सैंपल की जांच में इन भारी धातुओं को पाया गया है। आगरा और मथुरा उन 187 शहरों में शामिल है, जहां नदियों में तीन भारी धातुएं पाई गई हैं। आयोग ने आगरा और मथुरा में यमुना जल को सबसे खराब गुणवत्ता वाली कैटेगरी में रखा है। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि यमुना के पानी में भारी धातुओं के घुलकर जहरीला बनाने में इलेक्ट्रोप्लेटिंग इकाइयां, केमिकल फैक्टरियों का कचरा, वेल्डिंग, रिफाइनिंग, मैटलर्जी, लकड़ी, कोयला जलाना, फाउंड्री से निकला वेस्ट, रासायनिक खाद, कचरा डंपिंग, ऑटोमोबाइल, डिटरजेंट आदि का इस्तेमाल जिम्मेदार हैं। इनसे त्वचा रोग, पेट के रोग, अल्सर, फेंफड़ों की खराबी, इम्यून सिस्टम कमजोर करने, ह्रदय रोग, लेड कॉलिक, किडनी, लिवर फेल होने, फेंफड़ों का कैंसर, जींस में बदलाव आदि की शिकायतें होने लगती हैं।
जांचने के उपकरण भी नहीं
आयोग के अनुसार आगरा में जीवनी मंडी और सिकंदरा वाटर वर्क्स हैं। इनमें से सिकंदरा वाटर वर्क्स पर एमबीबीआर प्लांट है। यहां यमुना के पानी का शोधन कर आधे शहर को सप्लाई किया जाता है। भारी धातुओं को जांचने के उपकरण वाटर वर्क्स के पास नहीं है, वहीं जलकल विभाग के पास वाटर वर्क्स पर पानी शोधित करने की पुरानी तकनीक है जो भारी धातुओं को अलग नहीं कर सकती। यह केवल पानी में गंदलापन, रंग, पीएच, टीडीएस, हार्डनेस, ई-कोलाई आदि की जांच करता है।