वैद्य डॉक्टर दिनेश्वर प्रसाद
पटना। आजकल कड़ाके की ठंढ पड़ रही है, फलस्वरूप बहुत सारे रोगों का पर्दापण या पूर्व के रोगों में बढ़ोतरी हो रही है। इसमें दर्द विशेष रूप से जोड़ों का दर्द यथा गठिया, गाउट, सियाटिका, स्लीप डिस्क इत्यादि वात रोग प्रमुख हैं। ऐसे रोगों से सभी परेशान हैं और अधिक्तर लोग एनालजेसिक एन्टी बायोटिक या आयुर्वेद की बाजारू दवाइयां खाकर परेशान होने के साथ साथ कई नये रोगों से आक्रान्त हो रहे हैं, जबकि खानपान में सुधार, घरेलू दवाइयों एवं पंचकर्म चिकित्सा से पूरी तरह निजात पा सकते हैं।
इस तरह के रोगियों को खट्टा विशेष रूप से आम, अपड़ा, ईमली, नमकीन, अत्यधिक ठंढा यथा चावल, दही, केला, कोल्ड ड्रिंक्स, फ्रीज की खाद्य सामग्री, सब्जी के साथ-साथ बातर एवं गरिष्ठ भोजन यथा सेम, राजमा, बीन, सूखा चना, सोयाबीन, हरा मटर, फुल गोभी, कटहल, मांस, बड़ी मछली, फास्ट फूड, जंक फंड, पैकेट फूड, नमकीन, रिफाइंड में ज्यादा तला भुना-छाना हुआ, बेसन, मैदा, मैगी से बने व्यंजन इत्यादि का परित्याग करना चाहिए। इस मौसम में विशेष रूप से हरी शाक सब्जी, हल्का, सुपाच्य, शक्ति वर्धक, मधुर कट्टु रस से युक्त खानपान का प्रयोग करना चाहिए।
घरेलू मसालों में विशेष रूप से, अदरख, लहसुन, सोंठ, गोलकी, पिपली, अजवायन, मंगरैला, सरसों, तिसी, तिल, गुड़, केशर, शिलाजीत, गोंद, आंवला, प्याज, हल्दी, लौंग, दालचीनी, मसाला युक्त सत्तू, मौसमी सब्जियों का गरम सूप इत्यादि का प्रयोग लाभदायक होता है। पित्त से पीड़ित रोगियों में इन सबका प्रयोग वर्जित होता है।
वैसे पंचकर्म में, बाह्य एवं आभ्यंतर स्नेहन, स्वेदन, भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्तियों एवं नस्य कर्म, के साथ नियमित रूप से योग (आसन, प्राणायाम) मौर्निंग वाक, फिजियोथिरेपी, कसरत, डांस इत्यादि एवं आवश्यकतानुसार वैद्यों के परामर्श से आयुर्वेदिक दवाइयों के प्रयोग से वात संबंधित अनेक बीमारियों से निजात पाया जा सकता है। कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि ये सब बीमारी ठीक नहीं होती है। उनसे आग्रह है कि विधिवत आयुर्वेदिक इलाज, योग एवं खानपान में बदलाव करके देखें, 60 से 70 फीसद तक रोगी ठीक हो सकते हैं।