जैसा कहा, वैसा लिखा….जी हां, अयोध्या में संपन्न हुए स्वास्थ्य संसद-24 में पूर्व राज्यसभा सदस्य आर. के. सिन्हा ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।
हमारे देश में कई बातें सही संवाद नहीं होने से बिगड़ रही है। मुझसे पहले पद्मश्री खादर वली आहार परंपरा के हर पहलू आपको बता चुके हैं। मेरा अनुभव यह है कि शरीर में उपस्थित तीन तरह के असंतुलन के कारण हम बीमार होते हैं। गट या बड़ी आंत के अच्छे कीटाणु के कम होने के कारण हमारे शरीर में जीवनी शक्ति कमजोर हो रही है। इसी के कारण अपने देखा कि कोविड में कई लाख लोगों की जान गई। क्या आपने इस दौरान यह सुना कि किसी किसान या कुली या मेहनतकश मजदूर ने अपनी जान गंवायी हो? क्योंकि वो हर दिन मोटा अनाज खाते हैं।
दूसरा कारण है ग्लूकोज का असंतुलन। इसके कारण मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और बीपी, थायरॉयड और हर्ट ब्लॉक की समस्या होती है। जिस शरीर को केवल 5 ग्राम ग्लूकोज चाहिए जिससे वो ऑक्सीजन से जोड़कर कोशिका को रिपेयर कर सके और मृत कोशिका को नया बनाने में काम कर सके लेकिन उसकी जगह हम तीन बार खाने की आदत के कारण 3 बार शरीर में ग्लूकोज की बाढ़ लगा देते हैं। ऐसे में दिमाग सचेत होकर खून में गाढ़ेपन को कम करने में लग जाता है क्योंकि अगर गाढ़ा खून हृदय में चल गया तो हर्ट फेल हो जाएगा।
सोचिए, दिमाग को एक या दो सेकेंड में खून को पतला करके हृदय तक जाने की प्रक्रिया करनी है। जो कुछ अतिरिक्त माल खून में हटाने लायक है, उसे दिमाग हटाता है। इससे लिवर का काम बढ़ जाता है। इससे लिवर ओवरस्ट्रेस हो जाता है। इसी कारण से हर्ट ब्लॉक ज्यादा होता है।
तीसरा, हार्माेनल इम्बैलेन्स जिससे महिलायें त्रस्त हैं। यह गंदे दूध और मिलावटी तेल से होता है। हार्माेन का प्रयोग कर पशु का जरूरत से ज्यादा दूध बेचा जाता है जिसे पीने से शरीर में नुकसान होता है। 95 प्रतिशत रसोई का तेल पेट्रोलियम पदार्थ से बना है। इन्होंने पहले पेट्रोलियम से पेट्रोल, डीजल, मोबिल निकाल लिया। जो पारदर्शी वेस्ट पदार्थ बचा, उसमें बादाम, सरसों या नारियल का सत्व डाल कर तेल बना कर बेच रहे। इसका उपयोग हमारे देश में खूब हो रहा। अगर आपको बिलौना घी मिले तो जरूर खाएं लेकिन एनिमल प्रोडक्ट से बने घी को हाथ न लगाए।
खादर वली जी के श्री धान्यम, जिसे माननीय पीएम ने ‘श्री अन्न’ कहा है। यह मोटा अनाज तीनों तरह के असंतुलन को ठीक करता है। कोदो, कुटकी, सांबा और कंगली-इनको खा कर शरीर स्वस्थ होता है और बीमारी का सफाया होता है। यह मेरा खुद का अनुभव है। लेकिन दुर्भाग्य है कि न केवल भारत बल्कि विश्व में इस मोटे अनाज पर काम नहीं किया गया। आप देखिए मिलेट्स का रेशा इतना अद्भुत है जो शरीर को स्वस्थ कर देता है। यह शरीर की कोशिका को साफ कर देता है। यह काम कोई दवा नहीं कर सकती।
मेरी यात्रा मोटे अनाज की ओर कैसे बढ़ी, इसको जानकार आप भी इसे जरूर अपनाएंगे। मैं जब संघ में, बीजेपी में काम करता था, जहां जाता, जो भोजन मिलता, वही खाना होता था। वहां आप यह नहीं कह सकते कि मैं नहीं खाऊँगा। कार्यकर्ता बुरा मान जाते हैं। 1976 में मेरा डायलिसिस हुआ। इसके बाद बीपी, फिर किडनी की प्रॉब्लम हो गई। डॉक्टर ने पहले 4 गोली से शुरू किया जो 15 गोली तक चला गया और मेरा इंसुलिन इंजेक्शन 5 यूनिट से 50 यूनिट तक चला गया। पटना में संघ की बैठक में निमोनिया हो गया। पटना से दिल्ली लाया गया। डॉक्टर बोले-किडनी फेल है। परिजनों ने पूछा-क्या करना है तब वो बोले ट्रांसप्लांट करिए या डायलिसीस पर चलिए। छोटे भाई का किडनी लगा दिया गया। लेकिन खान पान वही चलता रहा। इससे किडनी में फिर प्रॉब्लम हो गई। दुबारा ट्रांसप्लांट हुआ। तब मैं जागा कि मेरे साथ ऐसा हो क्यूं रहा है।
हमारे भाई राम बहादुर राय एक दिन घर आए। उन्होंने कहा कि खादर वली का प्रोटोकाल काम कर रहा है। उनको भी हर्ट प्रॉब्लम हुई थी। तभी से मैंने भी इनके अन्न को फॉलो करना शुरू किया।
राजघाट में मैंने इनके श्री धान्यम् का कार्यक्रम कराया। वहां हजार लोगों को फायदा हुआ। आज 9 महीने हो गए, श्री अन्न को फॉलो कर रहा हूँ। कई आयोजन में चावल और गेहू चलता है पर प्रयास रहता है, सही आहार लूँ। अब 50 यूनिट इंसुलिन वाला इंजेक्शन बंद है। बीपी नॉर्मल है और कोई बीमारी नहीं रही। हीमोग्लोबिन भी बढ़ गया है और हमारे डॉक्टर ने कहा कि आपका तो किरेटिन लेवल काफी बढ़िया है। यह 16 साल के लड़के जितना स्वस्थ हो गया है। पहले से ज्यादा ऊर्जा महसूस होती है। दिन भर काम करता हूँ। आप लोग भी मानिए, मिलेट्स खाइए और बाकी साग सब्जी भी। श्री धान्यम् में 12 तरह के अन्न हैं। बहुत स्वादिष्ट भोजन बनता है। बाजार के दूध और तेल से परहेज करें। सब्जी को भी धोकर, छिलका उतार कर इस्तेमाल करें। पेस्टिसाइड के अंश से बचें। हमें एक बार फिर से प्रकृति की ओर चलना है। उससे संतुलन में रहना है। तभी हम सबका जीवन स्वस्थमय रह सकेगा।
प्रस्तुति: महिमा सिंह
संपादन: अजय वर्मा