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Swasthya sansad 24-विषकाल में करें अमृत का चिंतन : हितेश जानी

जैसा कहा, वैसा लिखा….जी हां, अयोध्या में संपन्न हुए स्वास्थ्य संसद-24 में आयुर्वेदाचार्य हितेश जानी ने ऐसा ही कहा था। लीजिए उनके वक्तव्य का संपादित रूप।

स्वास्थ्य संसद 2024 में अमृतकाल की चर्चा हो रही है। मैं कुछ ऐसा सोच और बोल रहा हूँ जो कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन यह 75 साल को अमृतकाल बोलना क्या सही है? हमारा देश लाखों साल पुराना है। इसकी परंपरा सनातन है। हमने किसी का पिछलग्गू बनने की जरूरत नहीं है। यह 75 साल का अमृतकाल वर्ष मना कर हम गवाही दे रहे कि हम इसके पहले गुलाम थे। इसलिए मैं 75 साल के अमृतकाल की बात नहीं करूंगा। देश भर में देखो-अमृत कहां है? आप देखो पानी, दूध, जमीन और हवा सब जहरीला और विषैला है। फिर अमृत कहां है? अगर अमृत की बात करनी है तो इस विष काल में अमृत का चिंतन करिए। ऐसी चर्चा की जानी चाहिए।
स्वास्थ्य संसद में हमने दो विषय को चुना है। आमजन का स्वास्थ्य और आहार परंपरा। कोविड काल में मैंने और डॉ खादर वली ने साथ काम किया है। वली जी की बात सही है क्योंकि पिछले 100 साल से हमारे खानपान का व्यवहार बदला है। हम कुछ भी खाने लगे हैं। जबकि इस बारे में आयुर्वेद कुछ अन्य बात कहता है। आयुर्वेद ही नहीं, भारत कुछ और कहता है। हमारे यहां पुराण में कहा गया-पुराना है वो साधु है ऐसा मत मानो, नया है इसलिए वो मान्य है। अमेरिका से आया है इसलिए उसे मत मानो। संत या बुद्धिमान व्यक्ति परीक्षण करता है कि किसकी बात सही है। मूर्ख आदमी किसी का पिछलग्गू बन जाता है। जो जैसा कहता है, वो वैसा ही करता जाता है। पुराण में ही कहा गया है कि पुराण का कहा भी मत मानो। नित्य नूतन रहो। हर बात को जानो। लेकिन सिद्धांत को पकड़ के रखो, उसे मत छोड़ो। सिद्धांत क्या है, तत्व क्या है, उसे समझो।
हम तो अमृतदेव के पुत्र हैं फिर अमृत काल के चर्चा की क्या जरूरत है? लेकिन करनी पड़ती है। तैतरेय उपनिषद में ऋषि कहते हैं-अन्नम ब्रह्म ‘अन्न ही ब्रह्म’है जिससे मन बनता है। यहां मैं वेदों की चर्चा करने या मैं बहुत ज्ञानी हूं, यह साबित करने नहीं आया हूँ। बल्कि हमारा तत्व ज्ञान क्या कहता है? हमें कैसे सोचना है, कैसे उसे फॉलो करना है। अयोध्या में एक टाइम के भोजन की बात कही मेयर जी ने। यही आयुर्वेद भी कहता है। अगर पीना है तो दिन के अंत में गाय का दूध लो, वैद्य की जरूरत नहीं होगी। लाखों साल से रात्रि का भोजन वर्जित है। लेकिन चलो समय अनुसार मेहनतकश और बुजुर्ग-बच्चों को भूख लगती है। तो क्या खाना है यह भी आयुर्वेद में बताया गया है। अगर जठराग्नि तेज है, तो उसका उपाय क्या है? लेकिन जो नगर के लोग हैं, उनका काम कम है वो एक पहर ही भोजन करेंगे। यह आयुर्वेद में लिखा गया।

अन्न से तीन भाग बनता है। सत्व, स्थूल, मध्य। सत्व यानी बुद्धि का भाग। दूध से सत्व यानी मन। आयुर्वेद में बड़ी बातें हैं समझने के लिए लेकिन आज के समय में मोटे अनाज और छोटे अनाज पर चर्चा और लोगों के बीच इसे ले जाना बहुत जरूरी है। हम कभी अन्न को लेकर एकांगी नहीं थे। क्या खाना, कैसे खाना, कितना खाना, सब कुछ बताया गया है। जब भी अयोध्या आता हूं, यहा की परंपरा से जुड़ाव महसूस करता हूं।
स्वास्थ्य पर एक कहानी गरुड़ रूपी भगवान धन्वतंरि के अयोध्या आगमन की सुना रहा हूँ। एक बार धन्वतंरि महराज गरुड़ रूप में यह जानने निकले कि आहार-विहार का ज्ञान जो जनमानस को दिया गया है, उसका पालन हो रहा है या नहीं, देखा जाए। यहां आकर उन्होंने क्रुख-क्रुख करके आवाज लगायी कि कौन यहां रोगी नहीं है, लेकिन उनके प्रश्न पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। सभी अपने काम में व्यस्त थे। कहीं वागभट्ट जी अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। उन्होंने आवाज सुनी। उन्होंने शिष्यों से पूछा कि क्या कोई आवाज आ रही? शिष्यों ने कहा-हां गुरु जी, कोई क्रुख बोल रहा। उन्होंने कहा-जवाब दो। शिष्य ने सोरुख-सोरुख का उत्तर दिया। वह रोगी नहीं है। जब शिष्य ने जवाब में प्रश्न पूछ लिया। वागभट्ट जी बोले-यह उत्तर नहीं है। यह धन्वतंरि भगवान हैं। उन्होंने बताया ऋतुभू, मितभू, हितभू ही निरोगी है। हित और मिताहार की बात हमारे आयुर्वेद में कही गयी। आयुर्वेद में एक ही भोजन किसी को लाभ देता है, किसी को नहीं। व्यक्ति को अपने तासीर और मौसम अनुरूप भोजन करना चाहिए। वात, पित्त, कफ प्रकृति के अनुसार अन्न का सेवन होना चाहिए।
हितभू की व्याख्या ऐसे करता हूं। हमारे यहां दादी-नानी को भोजन के इस तासीर के बारे में पता था। जैसे किसी दादी के चार बच्चे उसके साथ बैठे हैं। वो तीन को मुंगफली खाने को देती है लेकिन चौथे को बोलेगी-तुम मत खाना, तुमको नुकसान करेगा। दादी को पता है, माँ जानती है कि किस बच्चे को क्या नहीं खाना है। बच्चे की प्रकृति माँ-दादी को पता है।
मितभू भूख से कम भोजन करने का नियम है। बैठ के खाओ, खड़े होकर नहीं खाना चाहिए। खाना कैसे बनाना है, इसका भी ध्यान रखना होता है। ऋतु के अनुसार खाओ। अपने सुना होगा चैत्र के बाद खरबूज और तरबूज खाया जाता है। मूली, दही शाम के बाद नहीं खाना है। इस हितभू, मितभू और ऋतुभू में मोटा अनाज का उपयोग भी लिखा है। हमारे यहां एकादशी को भजन और उपवास की बात कही गई है। इसको जानने के लिए जापान के वैज्ञानिक को 14 साल लगे। हमारे यहां हजार वर्षों से वेद-पुराण आदि में इसका वर्णन है। अगर उपवास में भूखे नहीं रह सकते तो सांबा खाओ। शरीर से मोटे हैं तो कोदो का चावल खाओ। मोटे अनाज का उपयोग आयुर्वेद में है लेकिन इसका नियम है। गर्भवती महिला को मोटा अनाज नहीं दिया जा सकता। लेकिन रजस्वला स्त्री का आहार क्या है, मेनोपॉज वाली महिला का आहार क्या है, इन सब का विस्तार से आयुर्वेद में वर्णन है। चातुर्मास में 45 से 50 उम्र की महिला नमक नहीं खाती। वो चावल या गेहूं का आटा नहीं खाती। सभी एक समय भोजन करती रही है। क्यों? बच्चा होने के बाद महिला को 45 दिन तक गुड़, घी, सोंठ आदि का उपयोग करने की विधि बताई गई है। पहले की दादी-नानी को यह बात पता थी। आज की लड़कियों और माताओं को नहीं पता। ऐसा क्यूं हुआ? परंपरा ब्रेक हो गई है। सबको पता है बच्चा होने के बाद मसाज करो, मिलेट्स खाओ। गर्भाशय सिकुड़ता है, स्तन दूध बनाता है।

आयुर्वेद कहता है जो स्वस्थ है, उसका स्वास्थ्य कैसे उत्तम बना रहे, हम इस बात पर जोर देते हैं। हम बीमारी वाला समाज नहीं थे। आज फोर्टिस, मैक्स आदि अस्पताल घास की तरह हजारों जगह बन रहे। बीमारी के इलाज के लिए रिसर्च हो रहा हजारों मेडिकल कॉलेज में। लेकिन रोग, बीमारी कम हुए क्या? उसकी भी तो बाढ़ आ गई है।
सच यह है कि रोग कम नहीं होंगे। आने वाले सालों में स्वास्थ्य की पटरी नीचे जा रही है। भारत की आबादी में 45 प्रतिशत लोग अभी वृद्ध हैं। 25 साल बाद 72 प्रतिशत आबादी वृद्ध होगी। सोचो, हमें कितना जागरूक होने की जरूरत है। वृद्धावस्था के जुड़े रोग बढ़ने वाले हैं। अर्थरायटिस, अलजाईमार, डिमेन्सिया आदि। आयुर्वेद में ऐसे लोगों का इलाज पंचकर्म से करते हैं।
दुनिया वेलनेस की ओर जा रही है। आप यूएस में 10 युवा से पूछो कौन सी पैथी से इलाज कराओगे वो आयुर्वेद पंचकर्म कराएगा। हमारे देश में हर गली में एम्स खुल रहा, उसका क्या लाभ है। लोगों का स्वास्थ्य लाभ कहां हो रहा है। पहले वृद्धावस्था को रोकने के लिए हम आशीर्वाद क्या मांगते थे? 100 वर्ष तक जीने का। जीवामी सौ दशकम, हे प्रभु भोगमि सौ दशकम। सौ साल तक मेरे कान सुनें और सौ साल तक अंग स्थिर रहे। ऐसी हमारी ईश्वर से प्रार्थना होती थी। हमें उसी को फॉलो करना है। किसी का पिछलग्गू नहीं बनना है।

संपादन : अजय वर्मा

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