नयी दिल्ली। गुजरे 7- 8 दिसंबर को सिताबदियारा मे भोजपुरी समागम का आयोजन हुआ। इसमें विभिन्न प्रदेशों से आए भोजपुरी भाषी, राजनेता, साहित्यकार, कलाकार, संगीतकार आदि ने भी भाग लिया। काठमांडू से आए फोटो जर्नलिस्ट नवीन बराल ने कैलाश मानसरोवर के अलग सरयू के उद्गम (मयूर मुख) से सिताबदियारा तक जहां सरयू की धार गंग धार से एक होती है, की यात्रा विवरण की प्रस्तुति दी।
दो दिनों के इस आयोजन में दिन में कई सत्रों में भाषा, संस्कृति और भाषा समाज का जीवन, नदी, पर्यावरण आदि विषयों पर पैनल डिस्कशन हुए तो रात में लोकगीत, नाटक मंचन और कवि सम्मेलन हुआ। बलिया की नाट्य मंडली संकल्प द्वारा आशीष त्रिवेदी के निर्देशन में भिखारी ठाकुर के प्रसिद्ध नाटक गबर घिचोर का मंचन किया गया। कवि सम्मेलन में मिथिलेश गहमरी, पांडे रसराज (बलिया), शशि प्रेम देव (बलिया) सत्येंद्र प्रियदर्शी, हृदयानंद विशाल व अन्य कवियों। इसका संचालन प्रो शकील अनवर ने तथा अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य डॉ शमीम परवेज ने की।
समागम के मुख्य संयोजक प्रो. पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य भोजपुरी भाषा, संस्कृति और इस जनपद के जनजीवन को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों पर विमर्श मूलक संवाद स्थापित करना है। साथ ही भाषा के सुघर अश्लीलतामुक्त मूल स्वरूप को भी प्रदर्शित करना है।
प्रथम साहित्यिक सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. सदानंद साहिब ने कहा कि सिताब दियारा की भूमि बिहार और उत्तर प्रदेश के सिवान पर स्थित है, इसके दोनों ओर विस्तृत भोजपुरी क्षेत्र हैं। तिब्बती अध्ययन केंद्र सारनाथ से आए प्रो. राम सुधार सिंह ने कहा कि लोक साहित्य को समृद्ध करने में जनपदीय बोलियों का बहुत योगदान है। भोजपुरी सभी क्षेत्रों से आई अभिव्यक्तियों को स्वीकार कर आगे बढ़ रही है। यह अपने बल पर बिना किसी सरकारी सहायता के विश्व की सबसे तेजी से विकसित होने वाली भाषा है। सरकारी संरक्षण मिलते ही इसका स्वरूप खिल उठेगा। इसलिए संविधान में इसे अवश्य स्थान दिया जाना चाहिए।
स्थानीय सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, विधायक सी. एन. गुप्ता, विधान पार्षद डॉ. वीरेंद्र नारायण यादव और बलिया के पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि वे भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने की बात हर प्लेटफार्म पर उठाते रहे हैं और पुनः उठाएंगे।
प्रो. पृथ्वीराज सिंह ने अपने बीज वक्तव्य में इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समागम भोजपुरी भाषा की उन्नति इसके संवैधानिक मान्यता के साथ-साथ भोजपुरी जनपद की सभी प्रासंगिक समस्याओं और विषयों पर विमर्श का पक्षधर है। केवल मात्र भोजपुरी की बात उठाने से अपने पड़ोस की अन्य भाषाओं और बोलियां से संवाद सीमित होने का खतरा हो सकता है। इसलिए पड़ोसी अन्य भाषाओं और बोलियां से भी आवाजाही और संवाद का भोजपुरी समागम पक्षधर है।
वर्ष 2024 के आयोजन की मुख्य विशेषताओं के बारे में उन्होंने बताया कि इस बार काठमांडू के नवीन बराल आए । उनकी टीम ने तिब्बत में सरयू के उद्गम नाम मयूरमुख से सिताब दियारा में गंगा से मिलन तक की यात्रा की थी। यह यात्रा 2018 में की गई थी।
समागम के लिए फोटो जर्नलिस्ट नवीन बराल द्वारा दिए गए सरयू के उद्गम की तस्वीर को शीशे में फ्रेम कराकर आगंतुक अतिथियों को स्मृति चिन्ह के रूप में दिया गया। सरयू के उद्गम का समागम के पटल से देश में पहली बार प्रकाशन किया गया। यह एक अनूठी उपलब्धि भोजपुरी समागम 2024 की है। एक सत्र में जैविक खेती, मृदा एवं जलवायु परिवर्तन विषय पर आईआईटी, कानपुर के प्रोफेसर शिव शंकर राय ने अपने अध्ययनों को रखा। जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार गुप्ता ने भी अपने विचार रखे।
अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बृजभूषण मिश्रा, महामंत्री प्रो. जयकांत सिंह जय आदि ने भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता और इसके शास्त्रीय भाषा के रूप में दावेदारी के भी पक्ष में अपने विचारों को रखा। प्रो. पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि भोजपुरी साहित्य की परंपरा सिद्ध और नाथ संतों से शुरू होती है और इसका काल 8वीं से 12वीं शताब्दी तक बताया जाता है। ये संत भोजपुरी जनपद में विचरण करते थे और लोक भाषा में अपने शिक्षाओं को प्रकाशित करते थे। इस दिशा में व्यापक शोधकर, तार्किक आधार तैयार आधार पर दस्तावेज तैयार कर केंद्र सरकार को भोजपुरी के शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता के लिए भेजा जाना चाहिए।