नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। कैंसर आज एक गंभीर समस्या बन चुका है लेकिन यह रोग अब बच्चों में भी बढ़ रहा है और उनकी मौत हो रही है। इस पर WHO ने गंभीर चिंता जाहिर की है। उसके अनुसार दक्षिण एशियाई देशों में 2022 में कैंसर के 24 लाख नए मामलों की पुष्टि हुई थी, जिसमें से 56 हजार मामले बच्चों के थे। यह बच्चों में कैंसर की बढ़ती समस्या को उजागर करता है।
बच्चों में कैंसर पहचानना कठिन
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में कैंसर के मुख्य प्रकार हर साल लगभग चार लाख बच्चे और किशोर कैंसर का शिकार होते हैं और यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। बच्चों में होने वाले कैंसर के मुख्य प्रकारों में ल्यूकीमिया (रक्त कैंसर), ब्रेन ट्यूमर, लिम्फोमा (लसिका ग्रंथि का कैंसर), न्यूरोब्लास्टोमा और विल्म्स ट्यूमर शामिल हैं। बच्चों में होने वाले कैंसर का समय पर पता लगाना और उसे रोकना बेहद मुश्किल है क्योंकि इस तरह के कैंसर की पहचान आमतौर पर स्क्रीनिंग से नहीं की जा सकती। हालांकि, समय पर इलाज और उपचार के जरिए बच्चों का इलाज किया जा सकता है, जिनमें सर्जरी, रेडियोथेरेपी और दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। उच्च आय वाले देशों में बेहतर इलाज की स्थिति उच्च आय वाले देशों में कैंसर से प्रभावित बच्चों का इलाज अधिकतर सफल रहता है। आंकड़ों के अनुसार यहां 80 फीसद से ज्यादा बच्चों का इलाज संभव है और वे कैंसर से ठीक हो जाते हैं।
बच्चों के कैंसर की दवा का भी अभाव
उधर निम्न और मध्य आय वाले देशों में यह आंकड़ा केवल 30 फीसद के आसपास है। इन देशों में बच्चों को इलाज की कमी, इलाज की गुणवत्ता में कमी और इलाज में देरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण कई बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं। उच्च आय वाले देशों में जहां कैंसर की दवाइयां और उपचार उपलब्ध हैं, वहीं निम्न आय वाले देशों में यह 29 फीसद बच्चों के लिए भी उपलब्ध नहीं हो पाता है। मलेरिया भी बच्चों में कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। कैंसर की शुरुआत शरीर की कोशिकाओं में जेनेटिक बदलाव से होती है, जो बाद में ट्यूमर या गांठ का रूप ले सकती है।
बच्चों में कैंसर के जेनेटिक कारण भी
एक्सपर्ट बताते हैं कि यह किसी भी उम्र में हो सकता है और शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। बच्चों में कैंसर होने के मुख्य कारणों में जेनेटिक कारण प्रमुख होते हैं, और लगभग 10 फीसद बच्चों में कैंसर का खतरा जेनेटिक बदलावों के कारण होता है। इसके अलावा कुछ पुराने संक्रमण जैसे एचआईवी, एपस्टीन-बार वायरस (EBV) और मलेरिया भी बच्चों में कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। यह संक्रमण बच्चों के वयस्क होने पर कैंसर का कारण बन सकते हैं इसलिए बच्चों को समय पर टीके लगवाना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि इन संक्रमणों से बचाव किया जा सके।
बच्चों में कैंसर को रोकेंगी सावधानियां
कैंसर की रोकथाम के लिए कुछ उपायों को अपनाकर 30 से 50 प्रतिशत कैंसर मामलों को रोका जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सलिला पुष्य श्रीवास्तव के अनुसार कैंसर की रोकथाम के लिए साक्षी आधारित रणनीतियों को लागू किया जा सकता है। इसके अलावा एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से भी कैंसर से बचाव संभव है। इसमें ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार का सेवन महत्वपूर्ण है और प्रोसेस्ड फूड और मीठे पदार्थों के सेवन को कम करना चाहिए। कैंसर के इलाज के लिए शोध और जागरूकता पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) कैंसर की रोकथाम और उपचार के क्षेत्र में बड़े शोध पर काम कर रहे हैं। अगले तीन सालों में इन इसी पर फोकस होगा।