नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। मेटाबॉलिक सिंड्रोम यानी कम उम्र में पेट का आकार सेब जैसा होना। अनियमित लाइफस्टाइल से पिछले कई सालों से ऐसा हुआ है। इसमें शरीर का ऊपरी हिस्सा पतला होता है जबकि कमर के निचले हिस्से पर मोटापा दिखने लगता है। इसे नजरअंदाज करना दिल पर बोझ बढ़ा देता है जिससे अचानक दिल का दौरा आने की आशंका रहती है। अब तो हर चैथा व्यक्ति ऐसा ही मिल रहा है। एक्सपर्ट के मुताबिक बचाव के लिए नियमित व्यायाम, स्वस्थ भोजन, संतुलित जीवनशैली व सक्रिय लाइफ स्टाइल होना चाहिए। हेल्दी बाॅडी के लिए कमर का आकार पुरुषों में 90 सेंटीमीटर तो महिलाओं में 80 सेमी होना चाहिए।
दवा या इंजेक्शन, किससे जल्द राहत?
दवा या इंजेक्शन, कौन ज्यादा प्रभावी होता है? सवाल कठिन है लेकिन यह सब रोग के प्रकार और मरीज पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि इंजेक्शन और टैबलेट दोनों प्रभावी हैं। जो मरीज टैबलेट लेने में सक्षम नहीं होते हैं उन्हें इंजेक्शन लगाया जाता है। इंजेक्शन दवा को सीधे ब्लड फ्लो या मसल्स में पहुंचाते हैं, जिससे ओरल दवा की तुलना में प्रभाव तेजी से शुरू होता है। गोलियां या कैप्सूल को ब्लड फ्लो में प्रवेश करने से पहले पाचन तंत्र से अवशोषित करने की जरूरत होती है जिसमें कुछ समय लग सकता है। इसी से इंजेक्शन की तुलना में दवा का प्रभाव होने में देरी हो सकती है।
महामारी कानून में हो संशोधन
विधि आयोग ने महामारी रोग अधिनियम में महत्वपूर्ण खामियों की पहचान कर सरकार से सिफारिश की है कि इसे दूर करने के लिए कानून में संशोधन किया जाए। सरकार को सौंपी रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना ने भारतीय स्वास्थ्य ढांचे के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की है। इस संकट से निपटने के दौरान स्वास्थ्य से जुड़े कानूनी ढांचे की कुछ सीमाएं महसूस की गईं। संसद ने 2020 में 1897 के महामारी रोग अधिनियम में संशोधन किया था। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था।