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कला और संस्कृति को संवर्धित करती नई शिक्षा नीति

डॉ अनु सिन्हा

नयी दिल्ली। किसी भी देश की पहचान है वहां की कला और संस्कृति। भारत सदियों से अपनी कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है, जिसे विकसित होने में सदियां लगी हैं। संस्कृति का एक हिस्सा कला और भाषा भी है। विगत कई शिक्षा नीतियों में भारत की कला, संस्कृति और भाषा को उचित स्थान नही मिला अतः यह प्रभावित होती रही है।

नई नीति में कला, सृजन को भी स्थान

अभी इन दिनों नई शिक्षा नीति के तहत भारतीय भाषाओं को पुनर्जीवित करने के लिए त्रिभाषा सूत्र दिया गया है। वहीं कला को भी संवर्धित करने के लिए भी विभिन्न नीतियां बनाई गई हैं। स्कूलों में, सभी कक्षाओं में कला संगीत और हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देने की बात कही गई है। इसके लिए उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों और कुशल प्रशिक्षकों की नियुक्ति की भी अनुशंसा की गई है। भारतीय कलाओं का प्रचार एवं प्रसार केवल राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। कला किसी भी बच्चे में सांस्कृतिक जागरूकता और उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता को सुदृढ करती है। इसलिए भारतीय कला को छात्रों को उनके हर स्तर पर सीखाना चाहिए। कला के विकास के लिए भाषा को प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि भाषा इसको बढ़ाने में सशक्त माध्यम का काम करती है। नई शिक्षा नीति में भाषा और कला, दोनों पर ध्यान दिया गया है और इन्हें प्राथमिक कक्षाओं से ही आगे बढ़ाया जा रहा है जो निःसंदेह आने वाले समय में एक सुदृढ सामाजिक संरचना को स्थापित करेगी।

(लेखिका अंतरराष्ट्रीय कत्थक नृत्यांगना और नृत्य प्रशिक्षिका हैं।)

 

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