स्वस्थ भारत मीडिया
समाचार / News

विकास और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी

नयी दिल्ली (स्वस्थ भारत मीडिया)। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने विकास और प्रदूषणमुक्त पर्यावरण के बीच संतुलन पर बल दिया और कहा कि बिना विनाश के विकास की धारणा विकसित करनी होगी। वे चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, मोहाली में पर्यावरण विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र पर चल रहे सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भारत अग्रणी

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के क्रियान्वयन में अग्रणी रहा है जो 1972 में हुए स्टॉकहोम सम्मेलन में की गई थीं। इसके बाद जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 लागू किया गया था। उन्होंने कहा कि हम वर्तमान में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना (NCAP) लागू कर रहे हैं जिसका उद्देश्य स्थानीय से लेकर वैश्विक कई हस्तक्षेप के माध्यम से भारत की वायु को स्वच्छ बनाना है। श्री यादव ने कहा कि रियो घोषणा के अंतर्गत हमारी प्रतिबद्धता के क्रम में भारत ने एक मजबूत पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्रक्रिया तैयार की है।

भारत का कार्बन उत्सर्जन सबसे कम

श्री यादव ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के दौरान सरकार ने जैव विविधता संरक्षण को व्यवस्थित बनाने के लिए काम किया है। हर स्थानीय निकाय में पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR) के रूप में अपनी जैव विविधता के प्रबंधन और लेखनीबद्ध करने के लिए एक निर्वाचित विभाग है, जहां हमारे समाज के सबसे ज्यादा कमजोर तबके को गरिमापूर्ण जीवन उपलब्ध कराने के हमारे विचार को केंद्र में रखा जाता है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस धारणा को इस विश्वास के साथ स्थापित किया गया है कि पर्यावरण की सुरक्षा का अनुचित बोझ उन लोगों के कंधों पर नहीं पड़ना चाहिए, जो इस समस्या के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। अगर पर्यावरण संरक्षण उपायों का सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़े जो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं तो कोई पर्यावरणीय न्याय और समानता नहीं हो सकती। भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन दुनिया में सबसे कम (दो टन) है और इसलिए पश्चिमी औद्योगिक देशों को जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए ज्यादातर वित्तीय बोझ उठाना चाहिए।

पर्यावरण कानून प्रारंभिक अवस्था में

उन्होंने कहा कि पर्यावरण कानून अभी भी प्रारंभिक अवस्था में हैं, हालांकि हाल के दिनों में इनका विकास हुआ है। पर्यावरण न्यायशास्त्र में अभी तक स्थानीय स्तर पर प्रदूषण फैलाने वालों या शिकारियों को दंडित करने पर जोर है जबकि जलवायु परिवर्तन, महासागरों और वायु के प्रदूषण की वास्तविकता के लिए हमें एक तंत्र विकसित करने की जरूरत है जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे नजर डाल सके। यदि प्रदूषण का मूल देश के भीतर नहीं है तो प्रदूषण फैलाने को जवाबदेह ठहराने का कोई तंत्र नहीं है।

Related posts

स्वस्थ भारत यात्रियों ने पूरे किए 50 दिन

Ashutosh Kumar Singh

हेल्थ सेक्टर में भारत के प्रयासों को बिल गेट्स ने सराहा

admin

हेल्थ सप्लीमेंट की गुणवत्ता के लिए कमेटी गठित

admin

Leave a Comment