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स्वास्थ्य संसद-2023 फ्रंट लाइन लेख / Front Line Article

ऐसे बेहतर होगी बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था

(स्वास्थ्य संसद-2023 के तीसरे दिन 30 अप्रैल को एक सत्र राज्यों में हेल्थ सिस्टम के नाम समर्पित रहा। इसमें MCU के छात्रों ने अपनी रिसर्च प्रस्तुत की। पेश है बिहार पर रिपोर्ट का सारांश।)

विकास के अलग-अलग आयामों के संदर्भ में जब भी बिहार की चर्चा की जाती है तो अमूमन इसे संघर्षशील और पिछड़ा ही कहा जाता है। आजादी के अमृतकाल में भारत के कंठहार बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था से राज्य के अंतिम घर और अंतिम व्यक्ति तक को जोड़ने की आवश्यकता है और ज़रूरी है कि इसके लिए परंपरागत व्यवस्था में तीव्रता और नीतिगत तरीके से बदलाव किया जाए।
बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण स्तर पर अस्पतालों की कमी है। दरअसल किसी भी राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पहली कड़ी ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र ही होते हैं। इसके बाद पंचायत स्तर पर मौजूद प्राथमिक अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र, प्रखंड स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर जिला स्तर पर बनाए गए सदर अस्पताल या रेफरल अस्पताल। गौरतलब है कि बिहार में ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य केंद्र अभी भी अपर्याप्त हैं और जो हैं वे कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। पूर्वी चंपारण में जहां 1000 प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए वहां केवल 400 हैं। मुजफ्फरपुर में 960 उपस्वास्थ्य केंद्र के बदलें केवल 500 हैं। यह स्थिति कमोबेश हर इलाके की है।

जिला स्तर पर सदर अस्पतालों की संख्या में भी ऐसी ही कमी है। पूर्वी चंपारण में जहां 50 रेफरल केंद्र होने चाहिए वहां केवल 5 हैं। मुजफ्फरपुर में 58 रेफरल केंद्र के अनुपात में केवल एक मौजूद है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि राज्य सरकार ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या और स्थिति सुधारने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी करे। ग्रामीण स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने सदर अस्पताल या रेफरल केंद्र पर भी कम भार पड़ेगा और साथ ही गांव के अंतिम घर को भी त्वरित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो पाएगी।
अस्पतालों में डॉक्टर्स और मेडिकल उपकरणों को चलाने के लिए तकनीशियन की कमी भी बड़ी समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बिहार में कथित तौर पर 2792 डॉक्टर हैं, मतलब 43788 लोगो को प्रभावी ढंग से एक डॉक्टर। इस अनुपात को सुधारना बड़ी चुनौती है। आंकड़ो के मुताबिक पूरे राज्य में 1899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। इनमें महज 439 केंद्र पर ही MBBS डॉक्टर तैनात हैं। डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी है तो सरकार द्वारा हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज के साथ नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र भी खुलना चाहिए और डॉक्टरों और नर्सों को उच्च गुणवत्ता के साथ प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
कई बार ऐसा देखा जाता है कि वरीय अधिकारियों के निरीक्षण में डॉक्टर अनुपस्थिति पाए जाते है और उनको बर्खास्त भी कर दिया जाता है। अधिकारियों द्वारा डॉक्टर के ऊपर नकेल कसने चाहिए ताकि प्रतिदिन ईमानदारी पूर्वक ड्यूटी करें।
कुपोषण बिहार के लिए हमेशा से एक चुनौती रहा है। इससे प्रभावित जिले पोषण की रैंकिंग में देश के आखिरी तीस जिलों में शामिल हैं। शिवहर 57.3 प्रतिशत के कुपोषण स्टनिंग प्रतिशत के साथ देश भर में सबसे आखिरी पायदान पर है। कुपोषण दूर करने के लिए उठाए गए सरकारी प्रयास नाकाफी है। इस समस्या से निदान के लिए ही आंगनबाड़ी की शुरुवात की गई थी लेकिन ये विडंबना ही है कि बिहार के आंगनबाड़ी केंद्रों के पास आज भी अपना आंगन नहीं है। लिहाजा वहां आधी अधूरी सुविधाएं मिलती हैं। रिपोर्ट बताते हैं कि कई बार तीन-तीन महीनों के लिए सरकार की तरफ से पोषण आहार की आपूर्ति बंद कर दी जाती है। इसके अलावा इन केंद्रों पर भ्रष्टाचार की अपनी समस्या है। गर्भावस्था में माताओं को मिलने वाले टेकहोम राशन में अक्सर मात्रा की कमी की शिकायत मिलती है और कई बार ये बांटी भी नहीं जाती। इसलिए जरूरी है कि सबसे पहले आंगनबाड़ी केंद्रों को भवन मिले और साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों पर पहुंचें।
बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए जरूरी है कि आंगनवाड़ी, जीविका और आशा कर्मियों को गुणवतापूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वो और बेहतर तरीके से अपनी भागीदारी निभा सकें।
भारत में स्वास्थ्य सस्ता नहीं है। उसके लिए तो बिल्कुल भी नहीं जिनकी दुपहरी खेतों और मेढ़ों पर कटती है। ऐसे में जरूरी है कि केंद्रीय बीमा योजना के अलावा राज्य सरकार एक ऐसी स्वास्थ्य बीमा योजना लाने की पहल करें जिसके नियम और प्रारूप इतने सरल हो कि निरक्षर और मजदूर वर्ग के लोग भी उसका लाभ उठा सकें। एम्बुलेंस के पहिए आज भी ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंच पाते। राज्य सरकार इसके लिए जिलावार ‘आपातकाल एम्बुलेंस कंट्रोल रूम’ बनाने पर विचार करे। यह इस बात के लिए जवाबदेह होगा कि ग्रामीण स्तर के उप स्वास्थ्य केंद्रों पर भी एम्बुलेंस की उपलब्धता सुनिश्चित रहे।
हाल के समय में राज्य में फर्जी डिग्री वाले डॉक्टरों की संख्या भी काफी बढ़ी है और ये एक नए किस्म के ‘मेडिकल टेररिज्म’ को पैदा कर रहे हैं। कभी बच्चेदानी ऑपरेशन के नाम पर किडनी निकालने की खबर सामने आती है तो कहीं मोतियाबिंद के ऑपरेशन के नाम पर अंधा बनाने की खबर। इसलिए फर्जी डॉक्टरों पर तत्काल करवाई करना भी बहुत जरूरी है।

प्रस्तुति-आकांक्षा हर्ष, अभिनंदन पांडे, आकांक्षा राज, स्नेहल चौरसिया और भारत सूरज

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