(एक डॉक्टर के मनोभाव)
डॉ. मनीष कुमार
मैंने यह कभी नहीं कहा, कि मेरे घर पर बावन बीघे में सिर्फ़ पुदीना बोया जाता था।
भाषा और साहित्य से प्रेम है लेकिन बहुत मतलब नहीं रहा सो सीधा सीधा बोलने की मजबूरी है . . .
हम ख़ुद को नाचीज़ और सामने वाले को लक्ष्मीपति बोलते हैं। हक़ीक़त भी…
कुछ ऐसी ही हो सकती है . . .उलट होने के चांसेस नहीं के बराबर ही मान कर चलते हैं . . .आदत है. .
बचपन में गाँव में जीते हुए पहले डॉक्टर (वैद्य या झोला छाप नहीं), फिर सर्जन और फिर न्यूरोसर्जन बनने की सोचा और भगवान ने घुमाते-फिरते गाड़ी के सबसे पिछले डब्बे में ही सही. . .इस देहाती को अपनी राह पर बनाए रखा और जैसे-तैसे पंहुंचा दिया. . .पंहुंचने तक बहुत चमत्कार किया. . .और चमत्कार जारी है. . .
बिहार के समस्तीपुर में पैदा हुआ था। बचपन से कभी भी ज्ञान या भावना में किसी स्थान से चिपका नहीं महसूस किया। मां और मातृभूमि के लिए तड़प दिल के कोने में संजो कर, उनसे दूर रहकर भी उनके लिए सबकुछ करते हुए. . . उन्नीस वर्ष की उम्र से भारतवर्ष के सबसे सुदूर स्थित भू भागों से जुड़ा रहा हूँ और इस दौड़ में बिहारी मतलब भिखारी सुनने का आदी रहा हूँ लेकिन उससे भी ज्यादा हमारी सस्कारों के कारण, विनम्रता हमारी साँसों में है. . .
जब मैं यहाँ फेसबुक पर या कहीं भी अपनी न्यूरोसर्जरी के बारे में कुछ लिखता हूँ तो कारण मात्र भगवान के चमत्कार को याद करना होता है. . .ब्रेन और स्पाइन की सर्जरी सिर्फ मेरी रोजी-रोटी नहीं, मेरी पूजा है. . .दिल-दिमाग-शरीर-पूरी तरह उपयोग करके करता हूँ. . .इस कारण अपने आप से सबसे अच्छा रहने और करने की उम्मीद लिए रहता हूँ. . . इसीलिए जिम्मेवार लोगों द्वारा हमेशा पसंद किया गया. . .चेन्नई में रहते हुए और छोड़ने पर भी तीन बार मैं दो-दो बड़े कोर्पाेरेट अस्पतालों से सैलरी पाता था (कैसे मत पूछना यहाँ). . .बहुत लोगों की बहुत कोशिश के बावजूद इस बिहारी को तमिलनाडु के तेईस साल में बहुत कुछ बहुत ही अच्छा मिला. . .बॉस बोलते थे कि यू आर अ सेल्फ ड्राईवेन पर्सन. . .और यह वाक्य मेरे लिए सर्टिफिकेट, हेड लाइट और ईंधन तीनों है. . . भगवान का चमत्कार जारी है और मेरी कोशिश भी. . .जारी रहेगी. . .
फेसबुक, गूगल या कोई भी. . .मेरी पोस्ट को चाहे जितना भी ढँक ले. . .जन कल्याण के लिए समर्पित है. . .भगवान चमत्कार जरूर करेगा. . . ज़िंदा रहूंगा तब तक अवसर बढ़ाने की कोशिश करते रहेंगे।