स्वस्थ भारत मीडिया
नीचे की कहानी / BOTTOM STORY

मिट्टी और जलवायु पर पशुओं की एंटीबायोटिक दवाओं का असर घातक

नयी दिल्ली। मिट्टी को कार्बन अवशोषित करने वाला एक विश्वसनीय सिंक माना जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण है। बड़े स्तनधारी जंतुओं द्वारा चरने से घास के मैदानों की मिट्टी में कार्बन का भंडारण होता है। लेकिन दुनियाभर में जंगली शाकाहारी जंतुओं का स्थान धीरे-धीरे पालतू पशु ले रहे हैं। हिमालय के स्पीति क्षेत्र में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC) के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने पाया है कि शाकाहारी वन्यजीवों द्वारा घास के मैदानों में चराई की तुलना में पालतू पशुओं द्वारा चरने से मिट्टी में कार्बन का भंडारण कम होता है। पशुओं की टेट्रासाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को इसके लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है।

मिट्टी के लिए हानिकारक

गोबर और पशुओं के मलमूत्र के माध्यम से एंटीबायोटिक दवा अवशेष मिट्टी में पहुँचकर मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव समुदाय को रूपांतरित कर देते हैं, जो कार्बन पृथक्करण प्रक्रिया लिए हानिकारक है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र में सुधार और मिट्टी की ‘रिवाइल्डिंग’ एंटीबायोटिक दवाओं के कारण नष्ट हुए लाभकारी रोगाणुओं को बहाल कर सकती है। इसके साथ-साथ जिन मवेशियों को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं, उन्हें तब तक एकांत में रखना आवश्यक है, जब तक कि उनके जैविक तंत्र से दवाएं बाहर न निकल जाएं।

जलवायु शमन पर बड़ा प्रभाव

सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज, IISC में एसोसिएट प्रोफेसर और शोध पत्रिका ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ता सुमंत बागची कहते हैं- पशुधन पृथ्वी पर आज सबसे प्रचुर मात्रा में पाये जाने बड़े स्तनधारी हैं। यदि पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में संग्रहीत कार्बन को थोड़ी मात्रा में भी बढ़ाया जा सके, तो इसका जलवायु शमन पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। पिछले अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दिखाया था कि कैसे एक ही क्षेत्र में मिट्टी में कार्बन पूल को स्थिर करने में शाकाहारी जंतुओं की चराई एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान अध्ययन में उन्होंने पता लगाने का प्रयास किया है कि भेड़ और अन्य मवेशी कैसे अपने वन्य संबंधियों जैसे याक और आइबेक्स की तुलना में मिट्टी के कार्बन स्टॉक को प्रभावित करते हैं।

16 साल से अधिक मिट्टी की स्टडी

शोधकर्ताओं ने क्रमशः जंगली शाकाहारी जीवों और पालतू मवेशियों द्वारा चराई वाले क्षेत्रों में 16 वर्षों से अधिक समय तक मिट्टी का अध्ययन किया और सूक्ष्मजीव संरचना, मिट्टी के एंजाइम, कार्बन स्टॉक और पशु चिकित्सा में उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाओं की मात्रा सहित विभिन्न मापदंडों का विश्लेषण किया है। बागची बताते हैं, यह पहल हिमालय में पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों और जलवायु परिवर्तन पर एक दीर्घकालिक अध्ययन का हिस्सा है, जिसे 2005 में शुरू किया गया था।

इंडिया साइंस वायर से साभार

Related posts

insomnia and its homeopathic remedies

admin

AIIMS समेत कई अस्पतालों में AI से मरीजों को राहत

admin

यह कोरोना गीत हो रहा है वायरल, स्वस्थ भारत किया है जारी

Ashutosh Kumar Singh

Leave a Comment